"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण"

"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण"

लो फिर, आज का अख़बार हाथ में लिया और मुझे लगा जैसे कोई व्यंग्य-देवता ने दो न्यूज़ एक ही दिन पर चिपका दी हों।
पहली — कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का “धरना” कि भाई साहब, मतदाता सूचियों से फर्जी वोट मत हटाओ!
दूसरी — सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि 8 हफ़्तों में NCR से सारे आवारा कुत्ते पकड़ो और डिटेंशन सेंटर में डालो।

अब सोचिए, एक तरफ चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की सफाई करना चाहता है — मतलब जो फर्जी वोट, डुप्लिकेट वोट, बांग्लादेशी घुसपैठियों के नामों वाले वोट हैं, उन्हें काट देना। यह तो लोकतंत्र का स्वच्छता अभियान हुआ। लेकिन मज़ा देखिए, जिनके वोट बैंक में ऐसे फर्जी वोटों की मलाई है, वही धरने पर बैठ गए! जैसे मोहल्ले का वो दुकानदार, जो अपनी दुकान के सामने से नाला साफ होने पर चिल्लाए कि “अरे! इससे मेरा बिज़नेस डूब जाएगा!”

और उधर कोर्ट कह रहा है — “दिल्ली में आवारा कुत्तों को पकड़ो, सबको डिटेंशन में रखो।” सुनने में तो अलग मामला है, पर गूढ़ार्थ एक ही है — जो बेकाबू, असली मालिक के बिना, कानून-कायदे से बाहर घूम रहे हैं, वो चाहे वोटर लिस्ट में हों या सड़कों पर, उन्हें सिस्टम से हटाना पड़ेगा। वरना काटना, नोचना, डराना — यही रोज़ का काम रहेगा।

असल दिक्कत ये है कि दिल्ली की गलियों में जो कुत्ते खुले घूमते हैं, वो तो फिर भी इंसान देखते ही भौंक देते हैं। पर वोटर लिस्ट में जो “आवारा वोट” घूम रहे हैं, वो चुपचाप EVM में जाकर लोकतंत्र का मांस नोच लेते हैं — और किसी को भनक भी नहीं लगती।

धरनेवालों को शायद डर ये है कि अगर वोटर लिस्ट से ये “प्यारे पालतू” हट गए तो उनके बंगले के लॉन भी सूने पड़ जाएंगे, और 2029 का सपना भी टूट जाएगा। लेकिन भाई, अगर कोर्ट सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए आवारा कुत्ते पकड़ सकता है, तो चुनाव आयोग देश को सुरक्षित बनाने के लिए आवारा वोट क्यों नहीं पकड़ सकता?

कुल मिलाकर मामला साफ़ है — सफाई हर जगह होनी चाहिए। फर्क सिर्फ इतना है कि एक में भूरे-भूरे, पूंछ हिलाने वाले हटेंगे, और दूसरे में बोटिंग कार्ड पर जाली नाम लिखवाने वाले। दोनों ही मामलों में जिनकी दुम पर पैर पड़ेगा, वो जोर-जोर से भौंकेंगे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नियति के क्रूर प्रहार के बीच मानवता की एक छोटी सी कोशिश

16 दिसंबर 1971: भारत का विजय दिवस कैसे तेरह दिन में टूट गया पाकिस्तान

संगम के जल पर भ्रम और वैज्ञानिक सच्चाई