11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..
11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..
दुनियाँ में ऐसा कोई देश नहीं जो कभी न परतंत्रता के अंधकार में न डूबा हो । उनमें अधिकांश का स्वरूप ही बदल गया । उन देशों की अपनी संस्कृति का आज कोई अता पता नहीं है । लेकिन दासत्व के लंबे अंधकार के बाद भी भारत की संस्कृति पुष्पित और पल्लवित हो रही है । तो यह ऐसे लाखों बलिदानियों के कारण है, जिन्हें सत्ता की कोई चाहत नहीं थी । उनका संघर्ष राष्ट्र, संस्कृति, स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए था । ऐसा ही बलिदान क्राँतिकारी खुदीराम बोस का था । जो सोलह वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़कर क्राँतिकारी बने और उन्नीस वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही फाँसी पर चढ़ गये ।
अमर बलिदानी क्रान्ति कारी खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के ग्राम बहुबैनी में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था । शिक्षा, संस्कार और स्वाभिमान का भाव उनकी पारिवारिक विरासत में था । माता लक्ष्मीप्रिया देवी की दिनचर्या धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन से ओतप्रोत थी तो पिता त्रैलोक्यनाथ बोस संस्कृत के विद्वान थे । अपनी परंपरा के अनुरूप उन्होने बालक को पढ़ने भेजा । विद्यालय का वातावरण अंग्रेजों की दासता से भरा था जहाँ प्रतिदिन प्रार्थना में अंग्रेज शासक के प्रति नमन् की प्रार्थना होती थी । यह बात खुदीराम बोस के पिता को पसंद न थी । पर कोई विकल्प न होने की विवशता के चलते बालक को वहीं प्रवेश दिलाया । खुदीराम विद्यालय जाते रहे पर पिता ने न केवल अपने बेटे खुदीराम अपितु उस विद्यालय में जाने वाले आसपास के सभी बच्चों को घर में संस्कृत और संस्कारों की शिक्षा घर में आरंभ कर दी ।
बंगाल ही नहीं पूरे भारत में अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार किसी से छिपा नहीं था । कोई स्वाभिमानी भारतीय मन ही मन उद्वेलित होता था । इसकी अभिव्यक्ति समय समय पर होती भी रही है । इसी बीच 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल के विभाजन का निर्णय किया । इस निर्णय का आधार नगरीय क्षेत्रों में साम्प्रदायिक तुष्टीकरण और वनवासी क्षेत्रों में मिशनरीज की जड़े जमाना था । बंगाल विभाजन के समय खुदीराम सोलह वर्ष के थे और नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे । बंगाल विभाजन का विरोध आरंभ हुआ और पुलिस ने इस विरोध को शक्ति से दबाना शुरू किया । संघर्ष और दमन के चलते पूरे बंगाल में तनाव हो गया । किशोर वय खुदीराम बोस पढ़ाई छोड़ कर इस आँदोलन में जुड़ गये । उन्होंने रिवोल्यूशनरी पार्टी की सदस्यता ले ली । वे भले पन्द्रह सोलह वर्ष के थे लेकिन उनकी कदकाठी बहुत दुबली थी इस कारण वे अपनी आयु चार पाँच साल छोटे लगते थे । इस कारण पार्टी ने उन्हें पर्चे बांटने, पिस्तौलें और संदेश यहाँ वहाँ भेजने के काम में लगाया । इसका आरंभ वंदेमातरम के पोस्टर बांटने और उन्हें चिपकाने के काम से हुआ । वे एक बार खुदीराम पोस्टर चिपकाते हुये पकड़े गए आयु से कम दिखने के कारण थानेदार ने छोटा बच्चा समझा । दो चार चांटे लगाये और चेतावनी देकर छोड़ दिया । पर पुलिस के चाँटे और भविष्य का भय किशोरवय खुदीराम बोस को डिगा न सकी । समय के साथ आगे बढ़े और पोस्टर लगाने के साथ बम बनाना और फेकना सीखा । खुदीराम ने पहला बम 28 फरवरी 1906 को उस ट्रेन पर फेका जिसमें वायसराय निकलने वाले थे । लेकिन निशाना चूक गया । खुदीराम बंदी बना लिये गये लेकिन वे कैद से निकल भागे । कुछ दिन अज्ञातवास में रहे और फिर वे क्राँतिकारी युवकों के दल "युगान्तर" से भी जुड़ गये । उन दिनों बंगाल में एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड पदस्थ हुआ वह क्राँतिकारी आँदोलन से ही नहीं, अंग्रेजों के विरुद्ध की जाने वाली किसी भी असहमति पर कठोर यातनाएं देता था । पहले अदालत में अपमानित करता और फिर जेल में यातना देने के खुलेआम आदेश करता था । युगान्तर पार्टी ने इस मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया । किसी भेदिये से इसकी खबर सरकार को लग गयी । इसलिये उस मजिस्ट्रेट का तबादला मिदनापुर से मुजफ्फरपुर कर दिया गया । मुजफ्फरपुर इन दिनों बिहार में है । पहले यह बंगाल में ही हुआ करता था । युगान्तर पार्टी ने उस मजिस्ट्रेट को वहीं जाकर सबक सिखाने का निर्णय लिया । इस काम के लिये खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को चुना गया । दोनों क्राँतिकारी मुजफ्फरपुर पहुँचे । उन्होंने उसकी दिनचर्या का पता लगाया । और 20 अप्रैल 1908 को उसे क्लब के बाहर बम से उड़ाने की योजना बनाई । बम फेकने का काम खुदीराम बोस को दिया गया जबकि प्रफुल्ल चाकी पिस्तौल लेकर चला । ताकि यदि वह मजिस्ट्रेट बम से बच जाय तो गोली मारी जा सके । निर्धारित तिथि पर रात साढ़े आठ बजे मजिस्ट्रेट की बग्गी निकली । लेकिन उसमें मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड नहीं था । बग्गी में दो ब्रिटिश महिलायें मिसेज केनेडी और उसकी बेटी बैठीं थीं । मजिस्ट्रेट ने क्यों अपनी बग्गी बदली और क्यों अपनी बग्गी में दो यूरोपियन महिलाओं को बिठाकर बाहर भेजा । इस रहस्य से कभी पर्दा न उठ सका । अनुमान है इस हमले की सूचना भी किसी विश्वासघाती ने दे दी होगी । जो हो बग्गी प्रतिदिन के नियत समय पर ही पहुँची। और अपने निर्धारित स्थान पर ही रुकी । बग्गी की प्रतीक्षा दोनों क्राँतिकारी कर रहे थे । जैसे ही बग्गी उनकी पहुँच के भीतर आयी, खुदीराम ने बम फेक दिया । बम निशाने पर लगा । बग्गी के चिथड़े उड़ गये । बम कितना जबरदस्त था इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी आवाज तीन मील तक सुनी गयी । पूरा इलाका दहल गया । दोनों क्राँतिकारी भागे । भागकर वैनी स्टेशन आये । क्लब से लेकर स्टेशन तक पूरी नाकाबंदी थी । दोनों क्राँतिकारी क्लब से निकल आये । पर स्टेशन पर न बच सके । पुलिस से घिर गये । अपने बचने का कोई मार्ग न देख प्रफुल्ल चाकी ने पिस्टल से स्वयं को गोली मार ली । खुदीराम बंदी बना लिये गये । उन्हें जेल में भारी प्रताड़ना दी गयी ताकि वे अपने अन्य क्राँतिकारियों के नाम बता दें । पर खुदीराम ने मुँह न खोला । और अंततः 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दी गयी । तब उनकी आयु पूरे उन्नीस वर्ष भी न थी । वे श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ करते थे और फाँसी के समय भी वे गीता अपने साथ ले गये थे ।
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