राहुल गांधी की चुनावी 'बमबारी' और जेन-Z पर भड़कावे का खेल


राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति इन दिनों चुनावी प्रक्रिया पर हमले करने की लग रही है, लेकिन उनके हर दावे की हकीकत जल्दी ही सामने आ जाती है। उनकी टीम द्वारा दिए जाने वाले अधपके सबूतों की वजह से ये आरोप जनता के सामने कुछ मिनट भी टिक नहीं पाते। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही इनकी पोल खुल जाती है, और जब वे फंसते हैं, तो राष्ट्रगान गवाकर बात टालने की कोशिश करते हैं – वो भी अधूरा। अब तक उन्होंने तीन बड़े 'धमाके' करने की कोशिश की है, लेकिन हर बार ये फुस्स साबित हुए। सबसे पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने वोटरों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी और आखिरी घंटों में वोटिंग बढ़ने का हल्ला मचाया। लेकिन ये तो कोई नई बात नहीं – पूरे देश में शाम के समय वोटिंग में तेजी आना आम है, और इसके आंकड़े सार्वजनिक हैं। महाराष्ट्र के उनके सभी आरोपों को हिंदुस्तान टाइम्स ने गहन जांच के बाद गलत ठहराया।

फिर कर्नाटक की एक विधानसभा सीट पर उन्होंने 'परमाणु बम' जैसा दावा किया, जो बाद में सुतली बम निकला। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाया, लेकिन न तो चुनाव आयोग, डीएम या सीईओ के पास कोई औपचारिक शिकायत दर्ज हुई, न ही लोकसभा चुनाव हारने वाले 10 उम्मीदवारों में से किसी ने चुनाव याचिका दाखिल की। कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी – जो खुद एक आईएएस अधिकारी हैं और वहां कांग्रेस की सरकार है – ने स्पष्ट किया कि चुनाव से पहले हर मान्यता प्राप्त पार्टी के साथ वोटर लिस्ट साझा की जाती है। ये लिस्ट राजनीतिक दलों को इसलिए दी जाती है ताकि उनके बूथ लेवल एजेंट इन्हें जांच सकें और कोई आपत्ति हो तो दर्ज कराएं। इतनी पारदर्शी प्रक्रिया के बावजूद राहुल गांधी का मकसद सिर्फ चुनाव आयोग को बदनाम करना लगता है।

18 सितंबर को उन्होंने 'हाइड्रोजन बम' जैसा बड़ा दावा किया, लेकिन वो कांग्रेस मुख्यालय में ही फेल हो गया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने चुनावी प्रक्रिया पर अपनी जानकारी की कमी भी जाहिर कर दी। राहुल गांधी अब तक सात चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन वोट जोड़ने-कटाने की बुनियादी प्रक्रिया तक नहीं समझते। उन्होंने कर्नाटक के अलंग विधानसभा क्षेत्र में 6018 वोट हटाने की कोशिश का आरोप लगाया, फिर कहा कि उन्हें नहीं पता कितने वोट कटे। जबकि हकीकत में सिर्फ 24 वोट कटे थे, और ये कोई नया खुलासा नहीं था – बल्कि जनता को गुमराह करने की कोशिश। 2023 में जब किसी ने ऑनलाइन वोट कटाने की कोशिश की, तो चुनाव आयोग ने खुद पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई। भारत में ऑनलाइन वोट कटाने की कोई सीधी प्रक्रिया नहीं; फॉर्म भर सकते हैं, लेकिन बीएलओ की जांच के बाद ही वोट कटता है। उस घटना के बाद चुनाव आयोग ने सॉफ्टवेयर में बदलाव किया, अब कोई व्यक्ति अधिकतम 6 फॉर्म ही ऑनलाइन भर सकता है।

राहुल गांधी ने दावा किया कि पुलिस जांच अधिकारी ने चुनाव आयोग को 18 नोटिस दिए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। ये सरासर झूठ निकला, क्योंकि एफआईआर खुद चुनाव आयोग ने दर्ज कराई थी और जांच में पूरा सहयोग दिया गया। अब नया जांच अधिकारी नियुक्त हुआ है, और कांग्रेस सरकार ने जल्दबाजी में नए नोटिस भिजवाए। चुनाव आयोग के पास कोई अतिरिक्त जानकारी होगी, तो वो साझा करेगा। राहुल गांधी की देश में अशांति फैलाने की कोशिशें हद पार कर रही हैं। उन्हें चुनाव आयोग में बुलाया जाता है, तो जाते नहीं; लिखित शिकायत दर्ज करने को कहा जाता है, तो करते नहीं – क्योंकि उनके आरोपों में दम ही नहीं। उन्होंने चुनाव आयोग को सात दिन में जवाब देने की धमकी दी। जब कोर्ट जाने का सवाल उठा, तो बोले कि लोकतंत्र बचाना उनकी जिम्मेदारी नहीं। फिर दो साल से संविधान और लोकतंत्र बचाने का नाटक क्यों? भारतीय संविधान की नींव ही लोकतंत्र है, अगर लोकतंत्र बचाना उनकी ड्यूटी नहीं, तो संविधान की प्रति जेब में क्यों रखते हैं?

जो बात पिछले एक साल से उनके लेखन में झलक रही थी, वो अब खुलकर सामने आ गई – वे अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने जेन-Z, यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवाओं को नेपाल और बांग्लादेश जैसी हिंसक क्रांति के लिए उकसाया है, मोदी सरकार के खिलाफ। तीन बार चुनाव हारने के बाद वे शहरी नक्सली जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जो किसी लोकतांत्रिक देश के विपक्षी नेता से उम्मीद नहीं की जाती। इतिहास में किसी विपक्षी नेता ने ऐसा नहीं किया। उनकी चुनाव आयोग को धमकी संविधान और लोकतंत्र को ही चुनौती है। जयप्रकाश नारायण ने तो सिर्फ इतना कहा था कि सेना और पुलिस अवैध आदेश न मानें, लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें और सारे विपक्ष को जेल में डाल दिया, आपातकाल लगा दिया। अब राहुल गांधी, जो युवाओं को संविधान उखाड़ फेंकने का आह्वान कर रहे हैं, उनके साथ क्या सलूक होना चाहिए? हालांकि, 56 साल के राहुल को, जो सत्ता को अपनी पैतृक संपत्ति समझते हैं, भारत का जेन-Z भाव नहीं देता। लेकिन अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट, सरकार और चुनाव आयोग संविधान की रक्षा के लिए कदम उठाएं। राहुल गांधी को जल्द ही सबसे गंभीर एफआईआर का सामना करना पड़ सकता है – चुनाव आयोग कानूनी सलाह ले रहा है।

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