रक्षा बंधन

���� हरिॐ ����
ता-10-08-2014 रविवार
संकल्पशक्ति का प्रतीक : रक्षाबंधन
भारतीय संस्कृति का रक्षाबंधन महोत्सव,
जो श्रावणी पूनम के दिन मनाया जाता हे, आत्मनिर्माण ,
आत्मविकास का पर्व हे . आज के दिन पृथ्वी ने
मानो हरी साडी पहनी है | अपने हृदय
को भी प्रेमाभक्ति से, सदाचार - सयंम से पूर्ण करने के लिए
प्रोत्साहित करने वाला यह पर्व है |
आज रक्षाबंधन के पर्व पर बहन भाई को आयु , आरोग्य और
पुष्टि की वृद्धि की भावना से
राखी बाँधती है | अपना उद्देश्य ऊँचा बनाने का संकल्प
लेकर ब्राह्मण लोग जनेऊ बदलते हैं , समुन्द्र
का तूफानी स्वभाव श्रावणी पूनम के बाद शांत होने
लगता है ,इससे जो समुंद्री व्यापार करते हैं वे नारियल फोड़ते हैं |
रक्षाबंधनका का उत्सव श्रावणी पूनम
को ही क्यों रखा गया ! भारतीय संस्कृति में
संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था हे. ब्राह्मण कोइ
शुभ कार्य कराते हैं, तो कलावा ( रक्षासूत्र ) बाँधते हैं ताकि आपके
शरीर में छुपे दोष या कोइ रोग , जो आपके शरीर
को अस्वस्थ कर रहा हो, उनके कारण आपका मन और
बुद्धि भी निर्णय लेने में थोड़े अस्वस्थ न रह जाये |
सावन के महीने में सूर्य की किरणें
धरती पर कम पड़ती हैं. जिससे
किसी को दस्त, किसी को उल्टियाँ,
किसीको अजीर्ण, किसीको बुखार
हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने लगता है. इसलिए
रक्षाबंधन के दिन रक्षासूत्र बाँध कर तन–मन–
मति की स्वास्थ्य-रक्षा का संकल्प किया जाता है, कितना रहस्य
है !
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढांचे
की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी पूनम
का रक्षाबंधन महोत्सव है | आज के दिन रक्षासूत्र बांधने से वर्ष भर रोगों से
हमारी रक्षा रहे, ऐसा एक – दूसरे के प्रति सत् संकल्प करते हैं
| रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के ललाट पर तिलक – अक्षत लगाकर संकल्प
करती है कि “ जेसे शिवजी त्रिलोचन हैं , ज्ञानस्वरूप
हैं, वेसे ही मेरे भाई में भी विवेक बढ़े, मोक्ष के ज्ञान,
मोक्ष्मय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये. मेरा भाई इस सपने
जैसी दुनिया को सच्चा मानकर न उलझे , मेरा भाई साधारण
चर्मचक्षुवाला न हो , दूरद्रष्टा हो| “ क्षणे रुष्ट: क्षणे तुष्ट : “ न हो ,
जरा – जरा बात में भडकने वाला न हो, धीर – गंभीर
हो. मेरे भाई की सूझबूझ, यश , कीर्ति और ओज –
तेज अक्षुण रहें. भैया को राखी बांधी और मुहँ
मीठा किया , भाई गद् गद् हो गया | बहन का शुभ संकल्प होता है
और भाई का बहन के प्रति सदभाव होता है, भाई को भी बहन के
लिए कुछ करना चाहिए, अभी तो चलो साडी, वस्त्र
या कुछ दक्षिणा दे दी जाती है परन्तु यह रक्षाबंधन
महोत्सव दक्षिणा या कोइ चीज देने से वहीँ संपन्न
नहीं हो जाता. आपने बहन
की शुभकामना ली है तो आप भी बहन के
लिए शुभ भाव रखें कि ‘ अगर मेरी बहन के ऊपर
कभी भी कोई कष्ट , विध्न – बाधा आये तो भाई के नाते
बहन के कष्ट में दौड़कर पहुँच जाना मेरा कर्तव्य है ‘. बहन
की धन – धान्य, इज्जत की दृष्टि से तो रक्षा करें,
साथ ही बहन का चरित्र उज्जवल रहें ऐसा भाई सोचे और भाई
का चरित्र उज्जवल बने ऐसा सोचकर बहने अपने मन को काम में से राम
की तरफ ले जायें. इस भाई – बहन के पवित्र भाव को उजागर
करके न जाने कितने लोगों ने युद्ध टाल दीये,
कितनी नरसंहार की कुचेष्टाएं इस धागे ने
बचा ली |
सर्वरोगोंपशमनम् सर्वा शुभ विनाशनम् I
सक्र्त्क्रते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् I I
‘ इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ
कार्यों का विनाशक है. इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य
रक्षित हो जाता है ,यह पर्व समाज के टूटे हुए मनो को जोड़ने का सुंदर अवसर
है. इसके आगमन से कुटुंब में आपसी कलह समाप्त होने लगते
हैं , दूरी मिटने लगती है, सामूहिक
संकल्पशक्ति साकार होने लगती है |
श्रावणी पूनम अर्थात रक्षाबंधन महोत्सव बहुत
प्राचीन काल से चला आ रहा है | हजार – दो हजार वर्ष , पांच
हजार वर्ष , लाख – दो लाख वर्ष नहीं , करोडों वर्ष
प्राचीन है यह उत्सव , देव - दानव युद्ध में वर्षों के युद्ध के बाद
भी निर्णायक परिस्थितियां नहीं आ
रहीं थी , तब इन्द्र ने गुरु
ब्रहस्पतिजी से कहा कि ‘ युद्ध से भागने
की भी स्थति नहीं है और युद्ध में डटे
रहना भी मेरे बस का नहीं है. गुरुवर ! आप
ही बताओ क्या करें – ‘ इतने में इन्द्र
की पत्नीं शचि ने कहा : “ पतिदेव ! कल मैं
आपको अपने संकल्प – सूत्र में बांधूगी .”
ब्राह्मणों के द्वारा वेदमंत्र का उच्चारण हुआ , ओंकार का गुंजन हुआ और
शचि ने अपना संकल्प जोड़कर वह सूत्र इंद्र
की दायीं कलाई में बांध दिया , तो इन्द्र का मनोबल ,
निर्णयबल , भावबल , पुण्यबल बढ़ गया , उस संकल्पबल ने ऐसा जोहर
दिखाया कि इन्द्र दैत्यों को परास्त करके देवताओं को विजयी बनाने में
सफल हो गये
सब कुछ देकर त्रिभुवनपति को अपना द्धारापाल बनाने वाले
बलि को लक्ष्मीजी ने
राखी बांधी थी |
राखी बाँधनेवाली बहन
अथवा हितैषी व्यक्ति के आगे कृतज्ञता का भाव व्यक्त होता है |
राजा बलि ने पूछा : “ तुम क्या चाहती हो “
लक्ष्मी जी ने कहा : “वे जो तुम्हारे नन्हें – मुन्ने
द्धारापाल है , उनको आप छोड़ दो “.
भक्त के प्रेम से वश होकर जो द्धारापाल की सेवा करते हैं, ऐसे
भगवान नारायण को द्धारापाल के पद से छुडाने के लिए
लक्ष्मीजी ने भी रक्षाबंधन महोत्सव
का उपयोग किया |
बहनें इस दिन ऐसा संकल्प करके रक्षासूत्र बांधें कि ‘ हमारे भाई
भगवत्प्रेमी बनें ‘. और भाई सोचें कि हमारी बहन
भी चरित्र प्रेमी , भगवत्प्रेमी बने ‘.
अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के
लिए अथवा अपने सगे भाई व पडोसी भाई के प्रति ऐसा सोंचे . आप
दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है |
संकल्प में बड़ी शक्ति है , अत: आप ऐसा संकल्प करें
कि हमारा आत्मस्वभाव प्रकटे |

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