खगोलविज्ञान और ज्योतिषी के ज्ञाता थे महर्षि वाल्मीकि
भारत वर्ष ॠषि, मुनियों, महर्षियों की जन्म भूमि एवं देवी-देवताओं की लीला भूमि है। हमारी सनातन संस्कृति विश्व मानव समुदाय का मार्गदर्शन करती है, यहाँ वेदों जैसे महाग्रंथ रचे गए तो रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्य भी रचे गये, जिनको हम द्वितीयोSस्ति कह सकते हैं क्योंकि इनकी अतिरिक्त विश्व में अन्य कोई महाकाव्य नहीं रचे गये जो जन-जन तक प्रसारित हुए तथा आज भी जन-जन में लोकप्रिय हैं।
ऐसे ही एक महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि हुए हैं। महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है क्योंकि वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं विस्तारित विवरण काव्य रूप में किया गया है।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे ‘वाल्मीकीय रामायण’ कहा जाता है।
वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत ‘वाल्मीकीय रामायण’ ही है। ‘वाल्मीकीय रामायण’ के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को ‘आदिकवि’ माना जाता है।
महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर संस्कृत के इस आदि कवि तथा ‘रामायण के रचियता के बारे में यह जान कर आपको आश्चर्य होगा कि महर्षि वाल्मीकि कवि ही नहीं अपितु एक महान खगोलशास्त्री थे। खगोलशास्त्र पर उनकी पकड़ उनकी कृति ‘रामायण’ से सिद्ध होती है। आधुनिक साफ्टवेयरों के माध्यम से यह साबित हो गया है कि रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भ शब्दश: सही हैं।
भारतीय वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान की पूर्व निदेशक सुश्री सरोज बाला ने इस संदर्भ में 16 साल के शोध के बाद एक पुस्तक ‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’ में कई दिलचस्प तथ्य उजागर किए हैं। आईए इनमें से कुछ पर नज़र डालते हैं।
अगर हम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को ध्यान से पढ़ें तो पता चलता है कि इस ग्रंथ में श्रीराम के जीवन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं के समय पर आकाश में देखी गई खगोलीय स्थितियों का विस्तृत एवं क्रमानुसार वर्णन है।
सरोज बाला की पुस्तक के अनुसार उन्होंने प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर —संस्करण 4.1 का उपयोग किया क्योंकि यह साफ्टवेयर समय, तारीख और स्थान के साथ—साथ उच्च रिज़ोल्यूशन वाले आकाशीय दृश्य प्रदान करती है।
इसी प्रकार शोधकर्ताओं ने महर्षि वाल्मीकि की रामायण के खगोलीय संदर्भों की सत्यता को मापने के लिए स्टेलेरियम साफ्टवयेर का भी उपयोग किया। इसके इस्तेमाल से भी यही पता चला कि रामायण में वर्णित ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति, तत्कालीन आकशीय स्थिति व खगोल से जुड़ी सभी जानकारियां अक्षरश: सत्य थीं। जो वर्णन रामायण में जिस वर्ष, तिथि और समय पर दिया गया है, उन्हें इन साफ्टवेयर्स में डालने पर हूबहू वैसे ही तस्वीरें सामने आती हैं।
आप चाहें तो स्टेलेरियम एक ओपन सोर्स साफ्टवेयर को निशुल्क इंटरनेट से डाउनलोड कर सकते हैं जिसपर आप स्वयं भी इसे जांच सकते हैं।
सरोज बाला के अनुसार, स्काई गाइड साफ्टवेयर भी स्टेलेरियम साफ्टवेयर द्वारा दर्शाए गए इन क्रमिक आकाशीय दृश्यों की तिथियों का पूर्ण समर्थन करता है। इन दोनों साफ्टवेयरों के परिणाम भी एक जैसे पाए गए हैं।
‘प्लेनेटेरियम सिमुलेशन साफ्टवेयरों का उपयोग करते हुए रामायण के संदर्भों की इन क्रमिक खगोलीय तिथियों का पुष्टिकरण आधुनिक पुरातत्व विज्ञान, पुरावनस्पति विज्ञान, समुद्र विज्ञान, भू—विज्ञान, जलवायु विज्ञान, उपग्रह चित्रों और आनुवांशिकी अध्ययनों ने भी किया है।’
रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भ की सटीकता का एक उदाहरण श्री राम के जन्म के समय के वर्णन से मिलता है। महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम के जन्म समय के ग्रहों, नक्षत्रों , राशियों का इस प्रकार वर्णन किया है:-
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट् समत्ययु:
ततश्रच द्वादशे मसो चैत्रे नावमिके तिथौ ।।
नक्षत्रे दितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पुंचसु।
ग्रहेषु कर्कट लगने वाक्पताविन्दुना सह ।।
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम।
कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षणंसंयुतम।।
इसका अर्थ है कि जब कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया उस समय सूर्य, शुक्र, मंगल, शनि और बृहस्पति, ये पांच ग्रह अपने—अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। यह वैदिक काल से भारत में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति बताने का तरीका रहा है। बिना किसी परिवर्तन के आज भी यही तरीका भारतीय ज्योतिष का आधार है।
जो वर्णन रामायण में है वही साफ्टवेयर में डाला जाए तो जो तस्वीर सामने आती है उसमें इन सभी खगोलीय विन्यासों को अयोध्या के अक्षांश और रेखांश —27 डिग्री उत्तर और 82 डिग्री पूर्व— से 10 जनवरी ए 5114 वर्ष ईसा पूर्व को दोपहर 12 से 2 बजे के बीच के समय में देखा जा सकता था।
यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। यह बिल्कुल वही समय व तिथि है जिसमें समस्त भारत में आज तक रामनवमी मनाई जाती है। ध्यान रहे कि ऐसे खगोलीय विन्यास पिछले 25000 सालों में नहीं बन पाए हैं जैसे श्रीराम के जन्म के समय थे जो लगभग 7000 साल पहले हुआ था।
ऐसे सैंकडों वर्णनों को रामायण से लेकर साफ्टवेयर में जांचने से पता चला है कि हर वर्णन इसी प्रकार खगोलशास्त्र की कसौटी पर खरा उतरता है।
इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि राम कोई मिथक नहीं, न ही रामायण कोई कल्पना की उड़ान है। श्रीराम सूर्यवंशी राजकुल के 64वें यशस्वी शासक थे। महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे। आदिकवि वाल्मीकि ने अयोध्या के राजा के रूप में श्रीराम का राज्यारोहण होने के बाद रामायण की रचना आरंभ कर दी थी।
इस ग्रंथ में श्रीराम का जीवनचरित संस्कृत के 24000 श्लोकों के माध्यम से दिया गया है। रामायण में उत्तरकांड के अलावा छ: और अध्याय हैं: बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड तथा युद्धकांड।
महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य और कर्त्तव्य से परिचित कराने वाले पवित्र संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। रामायण में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्रों की स्थितियों का वर्णन किया गया है, जो आज भी सटीक है। इससे पता चलता है कि वे ज्योतिषशास्त्र और खगोलशास्त्र के भी प्रकांड पंडित भी थे।
महर्षि वाल्मीकि रामायण में दर्शन, राजनीति, नैतिकता, शासन कुशलता, खगोलशास्त्र तथा मनोविज्ञान का विशद वर्णन होना सिद्ध करता है कि महर्षिवाल्मीकि विविध विषयों के ज्ञाता तथा प्रकाण्ड पण्डित थे।
वाल्मीकि त्रेता युग के त्रिकालदर्शी ऋषि थे और अपने अन्तःचक्षुओं तथा बाह्य चक्षुओं से राम के वनगमन से रावण का वध कर सीता को साथ ले अयोध्या वापस आने तक लीला देख चुके थे। फलस्वरूप उन्होंने रामायण रची और उसके माध्यम से संस्कृति, मर्यादा व जीवनपद्धति को गढ़ा और इस तरह महर्षि वाल्मीकि प्रथम आदि कवि भी बने।
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