प्रकृति को नष्ट कर व्यक्तिगत लाभ हमारा दर्शन नही है: डॉ भागवत


डॉ भागवत कार्यक्रम के दौरान


कोटा, 6 अक्टूबर। हमें संपूर्ण ब्रह्मांड का पोषण करने वाला कृषि का आधार बनाना चाहिये। यही हमारी संस्कृति है। कृषि व्यापार करने का साधन मात्र नहीं है, हमने कृषि को वैभव की देवी लक्ष्मी की आराधना के रूप में देखा है। कृषि किसान का धर्म है, कृषि कर्म ही उसका धर्म है। यह केवल आजीविका का साधन नहीं है। कृषि समाज जीवन के लिए आवश्यक कार्य है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅ मोहनराव भागवत ने मंगलवार को श्रीरामशांतिता सत्तार स्वामी विद्या निकेतन में बोलते हुए कही। वे भारतीय किसान संघ की ओर से आयोजित श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी वर्ष समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में गऊघाट आश्रम के संत निरंजननाथ अवधूत, राष्ट्रीय अध्यक्ष आईएन वस्वेगौड़ा, राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी, प्रदेश अध्यक्ष मनिलाल लबाना भी मंच पर मौजूद रहे। इससे पहले डाॅ भागवत ने भगवान बलराम, भारत माता, हल, गौ का पूजन और कृषि माडल का अवलोकन किया।

डाॅ भागवत ने कहा कि कृषि उपज के मूल्य बढ़ाने के कई उपाय हैं, जो भारतीय पद्धति है उसे हमें अपनाना चाहिए। हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले लाभ को नहीं अपनाते हैं। केवल मूल्य बढ़ाने के लिए प्रकृति और पर्यावरण से छेड़छाड़ अंततोगत्वा हमें नुकसान ही पहुंचती है। प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर लाभ लेना हमारा भारतीय दर्शन नहीं है। हमें अनुभव और पक्के प्रमाणों के आधार पर आदर्श कृषि आधार खडा करना होगा। हमारा 10 हजार साल का कृषि का अनुभव है, फिर पश्चिम से प्रकृति विरोधी सिद्धांत लेने की हमें जरूरत नहीं है। हमने अपने दर्शन के आधार पर कृषि यात्रा की है। आदर्श कृषि व्यवस्था खड़ी करने के लिए हमें अपने दर्शन के अनुरूप प्रारंभ और प्रस्थान बिंदु तय करने होंगे। हमारे ग्रंथों में संग्रहित ज्ञान को देशकाल और परिस्थिति के अनुसार लागू करके हम कृषि का आधुनिक माडल खड़ा कर सकते हैं इसमे को संदेह नहीं। इस अवधारणा को गलत सिद्ध करना होगा कि जो हमारा है, वह गलत है और सब कुछ पश्चिम से ही लेना है। इस पश्चिम गुलाम मानसिकता को छोड़ना होगा।



उन्होंने कहा कि आज विज्ञान ने करवट ली है। हम जिन तत्वों का उद्घोष पूर्व काल से करते आए हैं, उन्हें मान्यता देने के अलावा विज्ञान के पास कोई विकल्प भी नहीं बचा है। पचास साल पहले जैविक कृषि के जिस माडल को सरकारों के द्वारा कचरे के ढेर में फें दिया गया था, आज वहीं सर्वमान्य हो गया है। जैविक कृषि आज पुनः पल्लवित हो रही है, किसानों का रुझान बढ़ रहा है। आज कोरोना के कारण भी विश्व फिर से भारतीय मूल तत्वों की ओर लौट रहा है। हम संगठित कार्यशक्ति, परिश्रम और विचारों से संस्कारित प्रेरणा से ऐसी कृषि खड़ी करेंगे जो सम्पूर्ण विश्व का पोषण करने वाली होगी। पर्यावरण और प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले तरीके हम नहीं अपनाएंगे।

सफल साधना का त्योहार भी कोटा में होगा


डाॅ भागवत ने कहा कि भारतीय किसान संघ किसानों के लिए संघर्ष करने वाला सर्वमान्य संघठन है। जिन्होंने इसकी स्थापना की आज हम उन दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जन्म जयंती मना रहे है। यह उनकी साधना का ही परिणाम है।

भारतीय कृषि परंपरा के पोषण के लिए जन्म हुआ


डा भागवत ने कहा की भारतीय कृषि परंपरा का पोषण और संरक्षण करने के लिए दत्तोपंत ठेंगड़ी ने किसान संघ की स्थापना की। वे एक तपस्वी थे। ठेंगड़ी ने अपने जीवन में सफल खेती का प्रयोग किया और उद्यम करने की परंपरा का विकास किया। भारतीय किसान संघ का वैचारिक अधिष्ठान और दर्शन दत्तोपंत ठेंगड़ी के मन की उपज है। कृषि को नया दर्शन और नई पद्धति देने का काम उन्होंने किया।

देश काल और परिस्थिति के अनुसार निरंतर प्रयोग और परिवर्तन करने का काम भारतीय किसान संघ अपनी स्थापना काल से ही करता आ रहा है। कालांतर में पश्चिमी प्रभाव के कारण कृषि पर हमारी धारणा में परिवर्तन आया। इसी कारण से पारंपरिक कृषि कके नाम से ही लोग पलायन करने लगे। भारतीय कृषि पद्धति से मोहभंगता की स्थिति से निकाल कर उसे स्वस्थ रूप देने का काम भारतीय किसान संघ ने किया। नितांत अनदेखी और विरोध की अवस्था से किसान संघ को आज की स्थिति में पहुंचाना ठेंगड़ी का विचार रहा।

अतीत का स्मरण जरूरी


डाॅ भागवत ने कहा कि किसी भी कार्य को करते हुए अपना अतीत हमें स्मरण होना ही चाहिए। तभी उस कार्य को हम सफलतम रूप दे पाते हैं। भारतीय किसान संघ कृषि के क्षेत्र में आज निरंतर शोध और प्रयोग करता आ रहा है और इसी तरह साधना का प्रतिफल रहा कि विज्ञान ने भी हमारी परंपरा व परिकल्पना की सराहना की है। आज जैविक खेती की ओर से सभी विश्व का ध्यान गया है। यह परिवर्तन हमारे अनुकूलता की ओर संकेत करता है। हमारा विस्तार ध्येयवाद के आधार पर हुआ है।


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