""रावण""
रावण बनकर घूम रहा हूँ,
अपने मन से तौल रहा हूँ।
नकली राम जो बन बैठे है,
उनको साथी मान रहा हूँ।
गिद्ध,भेड़िए,पागल कुत्ते
मनुज देह में देख रहा हूँ
माँ दुर्गा के पांडालों में,
उघड़े तन मैं देख रहा हूँ।
बाला संग विधर्मी नाचे,
घोर पाप मैं देख रहा हूँ।
रिश्वत,चोरी और नशे का,
नंगा नाच मैं देख रहा हूँ।
छल,कपट,मक्कारी ओढ़े,
ऐसे रावण देख रहा हूँ।
अपने ही जलते पुतलों में,
लोक-रंजन देख रहा हूँ।
"सागर"किसमे राम देखूँ,
रावण बनकर घूम रहा हूँ।
("सागर"महेंद्र थानवी)
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