गांधी को गांधी ब्रांड से बचाना आज की चुनौती है
महात्मा गांधी अब एक ब्रांड बन चुके हैं, समय के साथ महात्मा धुँधला होता जा रहा है और पीछे परिवार शब्द जुड़ गया है। बोले तो गांधी परिवार।
हमें नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहिए कि वे इसे फिर से प्रासंगिक बना रहे हैं अन्यथा 1948 के बाद गांधीवाद धीरे से नेहरूवाद में समा चुका था।
नोटों पर उनके चेहरे से लोग पहचान लेते हैं और कतिपय पुराने कांग्रेसी, सर्वोदयी, खादी भंडार या सरकारी लायब्रेरी में उनकी पुस्तकें मिल जाती हैं, सरकारी कार्यालयों में चित्र और सरकारी आयोजनों में उन पर कुछ भाषण वगैरह!!
सोशल मीडिया की दुनिया में उन पर लेखों से ज्यादा चुटकुले हैं। कभी वामपंथियों ने ही कहा था कि सोशल मीडिया ही जनता की असली आवाज है और वास्तविक जनसंवाद भी यही है। यह वह समय था जब सर्वत्र उनकी तूती बोलती थी। खैर सोशल मीडिया पर विषैला_वामपंथ बहस के जनसंवाद बनते ही, आज वे (वामी) खुद ही रूठकर जा रहे हैं और कमेंटबॉक्स बन्द कर दिए हैं।
अभी जो भी गांधीजी पर लिखा बोला जा रहा है, वह सब टेक्निकल फॉर्मलटी है, नहीं लिखा तो लोग क्या सोचेंगे, ऐसी भावना के साथ, न कि मन से, .... श्रद्धा से कोई भी गांधी दर्शन को न पढ़ता है न शेयर करता है।
उपनिषदों के देश में, आप हद से ज्यादा यदि किसी दर्शन को थोपेंगे तो वह उबाऊ और कृत्रिम हो जाता है। इसमें भी आपने उनकी हिन्द स्वराज या स्वदेशी जैसी बातें छिपा दी और गांधी के नाम से हिंदुओ पर प्रहार करने वाली सामग्री आगे बढाते गए तो यह हश्र होना ही था!!
इस तरह गांधी अभिजात्य वर्ग के आडम्बर प्रदर्शन, बौद्धिक जुगाली, पाप ढंकने, दूसरों पर हमला करने, चिढ़ जाहिर करने, अपनी मानसिक विकलांगता छिपाने, और भरी गर्मी में कोट टाई पहनने की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं।
मन या श्रद्धा से उन्हें याद करने वाला अनुयायी कोई नहीं दिखता। यह एक चेतावनी भी है। भारत जैसे देश में आप बड़े से बड़े व्यक्ति को भी पोलिटिकल यूज करके उसके प्रति अश्रद्धा निर्माण कर रहे हैं।
इस देश मे लोग एक गुमनाम से देवता पर जंगल के एक हिस्से का नाम रखते हैं और वह सदियों तक सुरक्षित हो जाता है, जिसे ओरण कहते हैं, जबकि तमाम सरकारी प्रतिष्ठा और तामझाम के, अनंत बजट व्यय करके भी किसी महात्मा को स्थापित नहीं कर पाते या स्थापित है तो वह उखड़ जाता है।
इसका यही कारण है कि आप भारत की आत्मा नहीं जानते।
आप यूज एन्ड थ्रो की नीति पर चल रहे हैं। निष्ठाएं बदल रहे हैं। एक संत की बची खुची कुछ अच्छी चीजों को भी प्रदूषित कर हेय बना रहे हैं। क्योंकि आप हद से ज्यादा राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं। यही गाँधी की दुर्गति का कारण है।
पूर्वोक्त, 'जनसंवेदना' की धारा को रोका नहीं जा सकता, इसकी कसौटी पर जो खरा उतरेगा वही रहेगा, वही टिकेगा।
मैं अम्बेडकर के अनुयायियों को भी यह चेतावनी देता हूँ कि वे सावधान हो जाएं। सभी जातिवादी संगठन भी अपने अपने महापुरुषों का राष्ट्रीय चरित्र, उसी रूप में सामने लाएं, जैसा भारत चाहता है। भारत सोचता है। भारत की जरूरत है।
जिस जिस स्थान से भी बहुमूल्य रत्न हैं, उन्हें ग्रहण करो, वे सब बचेंगे तो गांधी भी बच जाएंगे।
किसी अकेले सन्त, पीर, फकीर, या पैगम्बर की पूंछ से भारत को बांधने चले तो पूंछ तो क्या जलेगी, पाप की लंका जरूर दग्ध हो जाएगी!!
#ks_कुमार
अच्छा प्रकाश डाला है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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