व्याख्यानमाला : 100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज | RSS Shatabdi Year

व्याख्यानमाला : 100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज | RSS Shatabdi Year 

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का उद्घाटन व्याख्यान

(विज्ञान भवन, नई दिल्ली – 26 अगस्त 2025)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला "100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज" का शुभारंभ सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधन से हुआ। यह आयोजन केवल स्मृति का अवसर नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक यात्रा और भविष्य की दिशा का गहन मंथन भी सिद्ध हुआ।

भारत का योगदान और RSS का उद्देश्य

अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा –

“प्रत्येक राष्ट्र का विश्व के प्रति योगदान होता है, भारत का भी अपना योगदान है। इसलिए भारत को बड़ा होना है, यही संघ का प्रयोजन है।”

RSS का उद्देश्य केवल संगठन निर्माण नहीं, बल्कि भारत को उसकी मूल सांस्कृतिक चेतना के आधार पर विश्व में अग्रगण्य स्थान दिलाना है।

‘हिंदू’ शब्द का वास्तविक अर्थ

डॉ. भागवत ने ‘हिंदू’ शब्द का गहरा अर्थ समझाते हुए कहा कि यह किसी जाति, भाषा या संप्रदाय का नाम नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति और सभ्यता है। यही भारतीयता का सार और भारत की आत्मा है।

उनके अनुसार –

“हिंदू, सिख और बौद्ध – इस देश में आपस में नहीं लड़ेंगे। वे इसी देश के लिए जिएंगे और इसी के लिए मरेंगे।”

नेतृत्व और चरित्र का महत्व

RSS व्याख्यान में डॉ. भागवत ने कहा कि भारत को मार्गदर्शन देने के लिए ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जिनका चरित्र बेदाग हो, जो समाज से जुड़े हों और जिन पर समाज विश्वास कर सके। रवींद्रनाथ ठाकुर के “स्वदेशी समाज” का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सच्चा नेतृत्व समाज और राष्ट्र के लिए जीने-मरने का संकल्प मांगता है।


राष्ट्रीय एकता और आत्मगौरव

डॉ. भागवत ने विभाजनकारी प्रवृत्तियों से सावधान करते हुए राष्ट्रीय एकता पर बल दिया। उन्होंने कहा –

“अपना देश है, उसकी जय-जयकार होनी चाहिए। हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि भारत को विश्व में अग्रगण्य स्थान मिले।”

RSS और संघ के बारे में सत्य और तथ्य

संघ के बारे में प्रचलित भ्रांतियों पर उन्होंने कहा –

“संघ के बारे में बहुत सारी चर्चाएँ चलती हैं। ध्यान में आया कि जानकारी कम है। जो जानकारी है, वह ऑथेंटिक कम है। इसलिए अपनी तरफ से संघ की सत्य और सही जानकारी देना चाहिए। संघ पर जो भी चर्चा हो, वह परसेप्शन पर नहीं बल्कि फैक्ट्स पर हो।”

इसी उद्देश्य से यह व्याख्यानमाला आयोजित की गई है ताकि समाज में RSS की सही छवि पहुँच सके।

वैश्विक दृष्टि और विविधता का महत्व

RSS शताब्दी व्याख्यान में डॉ. भागवत ने कहा कि भारत अब विश्व के अधिक निकट आ गया है और इसलिए हमें वैश्विक दृष्टि अपनानी होगी।

“सारे विश्व का जीवन एक है, मानवता एक है। फिर भी वह एक जैसी नहीं है। उसके अलग-अलग रूप और रंग हैं, और यही विविधता विश्व की सुंदरता को बढ़ाती है।”

सांस्कृतिक प्रेरणा और भारतीय विचार

स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और रवींद्रनाथ ठाकुर जैसी विभूतियों का उल्लेख करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीय समाज को उनके आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम के बाद जिस राष्ट्रीय स्वप्न का उदय हुआ था, उसे आज पुनः जीवंत करना समय की मांग है।

अंतरराष्ट्रीय सहभागिता

RSS व्याख्यानमाला की विशेषता यह रही कि इसमें श्रीलंका, वियतनाम, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, इज़रायल, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी सहित कई देशों के दूतावासों और उच्चायोगों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। यह दर्शाता है कि संघ की शताब्दी वर्ष यात्रा केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर भी चर्चा और आकर्षण का केंद्र है।

RSS व्याख्यान का केंद्रीय संदेश

अपने व्याख्यान के अंत में डॉ. भागवत ने संघ की प्रार्थना की अंतिम पंक्ति का स्मरण कराया –
“भारत माता की जय।”

और कहा कि यही RSS का मूल उद्देश्य है – भारत की जय-जयकार हो, भारत को विश्व में अग्रणी स्थान मिले और भारतीय समाज आत्मगौरव के साथ मानवता की सेवा करे।

यह व्याख्यानमाला संघ की शताब्दी वर्ष यात्रा का केवल उद्घाटन नहीं था, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी संस्कृति और उसके भविष्य का गहन दिग्दर्शन भी था। इसमें राष्ट्रीय एकता, आत्मगौरव, सांस्कृतिक प्रेरणा और वैश्विक दृष्टि का स्पष्ट संदेश निहित था।

डॉ. मोहन भागवत का यह RSS व्याख्यान न केवल स्वयंसेवकों बल्कि समूचे राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भारत की नई उभरती भूमिका का घोष भी है।


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