खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात
खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात
कहते हैं, “जिसका पेट भरा हो, वही देश का नाम रोशन कर सकता है।”
भारत में यह काम सदियों से किसान कर रहा है। धरती मां को सींचकर, सूरज की तपन और बारिश की बूंदें अपने माथे पर लेकर, किसान ने ही देश को भूखा नहीं सोने दिया।
7 अगस्त 2025 को दिल्ली में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी सम्मेलन हुआ। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी साफ बात कही – “किसान, पशुपालक और मछुआरों के साथ कोई समझौता नहीं होगा।”
उन्होंने जैविक खेती, डेयरी, मत्स्य पालन और कुटीर उद्योग को नई ताकत देने के फैसले सुनाए।
किसानों ने क्यों किया स्वागत
भारतीय किसान संघ, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित संगठन है, ने कहा – “ये फैसले सिर्फ कागज़ी नहीं, खेत-खलिहान में असर दिखाएंगे।”
सोचिए, अगर गांव में दूध का उत्पादन बढ़े, तो सिर्फ शहर को ही नहीं मिलेगा, गांव की माली हालत भी सुधरेगी।
अगर तालाब में मछली पालन बढ़े, तो खेत के किनारे से ही आमदनी का नया रास्ता खुलेगा।
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जैविक खेती – मिट्टी की ताकत बनी रहेगी, पानी साफ रहेगा, और खाने में ज़हर नहीं मिलेगा।
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कुटीर उद्योग – बुनकर, बढ़ई, लोहार, कुम्हार… सबका चूल्हा जलेगा और हुनर को दुनिया देखेगी।
अमेरिकी टैरिफ का जवाब देसी अंदाज़ में
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो टैरिफ लगाया, उस पर किसान संघ ने साफ कह दिया – “विनाश काले विपरीत बुद्धि”।
किसानों का कहना है – जब हमारे खेत अन्न से लबालब हैं, तो डर कैसा?
आज भारत गेहूं-चावल में आत्मनिर्भर है, और खेती 46% लोगों को रोज़गार देती है।
अगर बाहर से दबाव आएगा, तो हम अपने ही बनाये सामान को खरीदेंगे और गांव की दुकानें फिर से आबाद होंगी
किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, देश के रखवाले भी हैं
गांव का किसान खेत में बीज बोता है, लेकिन उसके साथ वह उम्मीद, आत्मसम्मान और देश का भविष्य भी बोता है।
किसान की मेहनत से ही शहर के कारखाने चलते हैं और देश की थाली भरती है।
भारतीय किसान संघ की यह बात – “सरकार की लड़ाई में किसान साथ खड़ा रहेगा” – नारे से ज्यादा, गांव की मिट्टी की खुशबू है।
कृषिमित् कृषस्व – खेती करो, देश बचाओ
जब खेत हरे-भरे होंगे, तब ही भारत का तिरंगा ऊंचा लहराएगा।
और किसान, अपने हल, बैलों और पसीने के साथ, इस देश को आत्मनिर्भर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
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