कविता

सोचो
अगर तालिबान न होता
आतंकवाद न होता
तो क्या मलाला "मलाला" होती।
आज पाक सेना को मलाल है
अपनी करनी पर।
ऐसे ही थोड़े ही मिलता है।
शांति का नोबल
बहुत मलालाएं खोनी पड़ती है
एक शांति के नोबल पर।
सत्य की अर्थी से उठकर
निज सुख को सुला अर्थी पर
कोई सत्यार्थी जब निकलता है।
तब जाकर किसी किसी को
शांति का नोबल मिलता है।

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