नरसिम्हा राव: वह प्रधानमंत्री जिसे अपने ही दल से अपमान झेलना पड़ा
उनकी सलाह अपनी जगह है किंतु आइए जानते है भारत 9वें प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हाराव और उनके प्रति कांग्रेस के नेताओ के व्यवहार के बारे में।
भारत के 9वें प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव का कार्यकाल भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर माना जाता है। 1991 से 1996 के बीच, जब देश आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था, नरसिम्हा राव ने देश को एक नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई और भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत की।
लेकिन दुर्भाग्यवश, एक ऐसे नेता, जिन्होंने भारत को बदलने की कोशिश की, उन्हें अपने जीवन के आखिरी दिनों में जिस अपमान का सामना करना पड़ा, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देगा। कांग्रेस पार्टी, जिसकी सेवा उन्होंने दशकों तक की, वही पार्टी उनके निधन के बाद उनके साथ ऐसा व्यवहार करेगी, इसकी कल्पना भी मुश्किल थी।
चित्र साभार गूगलबीमार राव और कांग्रेस नेतृत्व का व्यवहार
24 नवंबर 2004 की बात है। नरसिम्हा राव का स्वास्थ्य दिनोंदिन गिर रहा था। वह एम्स (AIIMS) के स्पेशल वार्ड में भर्ती थे। किडनी, दिल और फेफड़ों की समस्या ने उन्हें बिस्तर पर ला दिया था। उम्र और बीमारी के चलते उनका मनोबल भी टूट चुका था। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उनसे मिलने अस्पताल पहुंचीं। हालांकि राव ने उनसे बातचीत के दौरान अपना आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने सीधे-सीधे कहा, “तुम लोग मुझ पर मस्जिद तुड़वाने का इल्ज़ाम लगाते हो और अब पानी पिलाने का नाटक करते हो।”
यह एक ऐसा बयान था, जो उनके भीतर की पीड़ा को उजागर करता है। वह खुद को बाबरी मस्जिद विध्वंस का दोषी ठहराए जाने से आहत थे, जबकि हकीकत यह थी कि उनके पास उस समय बेहद सीमित विकल्प थे।
अंतिम दिनों की त्रासदी
21 दिसंबर 2004 को राव ने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर के साथ कांग्रेस पार्टी का व्यवहार बेहद असंवेदनशील था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी किताब Courage and Commitment में लिखा है कि राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय (एआईसीसी) के अंदर ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। उनकी अंतिम यात्रा में गन कैरिज को मुख्यालय के गेट के बाहर फुटपाथ पर खड़ा किया गया।
राव, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कांग्रेस को अपनी सेवा दी, उनके साथ ऐसा व्यवहार करना न केवल अमानवीय था, बल्कि यह उनकी उपलब्धियों का भी अपमान था। यह घटना भारतीय राजनीति में उस समय की कटुता और आंतरिक राजनीति का काला अध्याय बन गई।
नरसिम्हा राव की उपलब्धियाँ
नरसिम्हा राव को भारत के आर्थिक उदारीकरण का जनक कहा जाता है। उन्होंने 1991 में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त कर भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला। लाइसेंस राज को खत्म कर, विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले और देश को आर्थिक विकास की राह पर अग्रसर किया।
उनकी विदेश नीति ने भारत को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई। उन्होंने रूस के साथ संबंधों को संतुलित रखते हुए अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ संबंध मजबूत किए।
कांग्रेस के भीतर संघर्ष
हालांकि राव का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा था, लेकिन उनके कार्यकाल के बाद कांग्रेस में उनका विरोध बढ़ता गया। बाबरी मस्जिद विध्वंस और झारखंड मुक्ति मोर्चा मामले जैसे विवादों ने उन्हें पार्टी के भीतर अलग-थलग कर दिया।
यह विडंबना है कि एक ऐसा नेता, जिसने अपनी पूरी जिंदगी कांग्रेस के लिए समर्पित कर दी, उसे जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी पार्टी से ही अपमान झेलना पड़ा।
इतिहास से सबक
नरसिम्हा राव की कहानी बताती है कि इतिहास किसी दल या व्यक्ति का बंधक नहीं होता। उनके कार्यकाल के फैसले और उनकी उपलब्धियाँ भारतीय राजनीति में हमेशा याद की जाएंगी। उनके साथ हुए अपमानजनक व्यवहार को भुला देना आसान नहीं है, लेकिन इससे एक सबक लिया जा सकता है कि किसी व्यक्ति की सेवा और योगदान को उसके जीवन के अंतिम समय में सम्मान मिलना चाहिए।
चित्र साभार गूगलनरसिम्हा राव की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन। उनका योगदान भारत हमेशा को याद रहेगा।
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