वीर बाल दिवस: साहस, बलिदान और धर्म की अद्वितीय गाथा
भारत के इतिहास में ऐसा बलिदान और साहस का उदाहरण दुर्लभ है, जो गुरु गोविन्द सिंह और उनके चार साहबजादों ने प्रस्तुत किया। दिसंबर माह का अंतिम सप्ताह, विशेषकर 21 से 27 दिसंबर, सिख पंथ और भारतीय संस्कृति के इतिहास में अमर है। इस दौरान गुरु गोविन्द सिंह के परिवार ने जिस प्रकार से क्रूरतम यातनाओं का सामना किया और अपने धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बलिदान को स्मरणीय बनाने के लिए 26 दिसंबर को "वीर बाल दिवस" के रूप में मनाने का आव्हान किया। यह दिवस उन साहबजादों के अप्रतिम बलिदान और साहस को नमन करने का अवसर है, जिन्होंने मात्र बाल्यावस्था में धर्मांतरण के क्रूर आदेश को नकारते हुए जीवित दीवार में चुनवाए जाने का साहस दिखाया।
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गुरु गोविन्द सिंह और उनका संघर्षकाल
सिख पंथ के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह, उस समय आनंदपुर साहिब किले में निवास कर रहे थे। औरंगजेब के नेतृत्व में मुगल शासन ने सिख पंथ को जड़ से मिटाने का संकल्प लिया था। मुगल सेना ने छह महीने तक किले का घेरा डाले रखा, जिससे राशन-पानी समाप्त हो गया। गुरु गोविन्द सिंह ने कठिन परिस्थिति में निर्णय लिया कि अंतिम युद्ध करने की बजाय किला छोड़कर संघर्ष को जारी रखा जाए।
21 दिसंबर, 1705 की रात, गुरु गोविन्द सिंह अपने परिवार और विश्वस्त सैनिकों के साथ चमकौर पहुंचे। यह एक पुराना किला था, जिसकी स्थिति लंबे समय तक टिकने योग्य नहीं थी। मुगलों की सेना ने इस किले का घेरा डाल दिया। तीन लाख की विशाल मुगल सेना के मुकाबले किले में मात्र दो हजार लोग थे, जिनमें अधिकांश स्त्रियां और बच्चे थे। सैनिकों की संख्या कुछ सौ ही थी।
चमकौर का अद्वितीय युद्ध
चमकौर में गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में सिख सैनिकों ने अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। यह निर्णय लिया गया कि दस-दस सैनिकों के जत्थे तैयार किए जाएं और युद्ध का नेतृत्व साहबजादों को सौंपा जाए। 23 दिसंबर को बड़े साहबजादे अजीत सिंह (17 वर्ष) ने पहले जत्थे का नेतृत्व किया। उन्होंने मुगल सेना पर टूट पड़ते हुए अदम्य वीरता दिखाई। तीर-कमान और तलवार के सहारे उन्होंने अपने अंतिम तीर और अंतिम सांस तक युद्ध किया।
24 दिसंबर को दूसरे साहबजादे जुझार सिंह (15 वर्ष) ने अपने जत्थे का नेतृत्व किया। उन्होंने भी वही साहस और दृढ़ता दिखाई। दोनों साहबजादों ने मुगल सेना को यह संदेश दिया कि सिख पंथ अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने को सदैव तैयार है।
परिवार का विखराव और छोटी उम्र का बलिदान
24-25 दिसंबर की रात, सरसा नदी पार करते समय गुरु गोविन्द सिंह का परिवार बिखर गया। माता गूजरी और दो छोटे साहबजादे, जोरावर सिंह (7 वर्ष) और फतेह सिंह (5 वर्ष), नदी पार करते समय अलग हो गए। इन तीनों को गंगू नामक व्यक्ति ने अपने घर शरण दी। लेकिन लालच में आकर गंगू ने वजीर खान को सूचना दी और इनाम में सोने की मुहरें प्राप्त कीं।
26 दिसंबर को वजीर खान के दरबार में पेश किए गए दोनों छोटे साहबजादों से इस्लाम कबूल करने को कहा गया। दोनों नन्हें बच्चों ने दृढ़ता से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। वजीर खान ने उन्हें दीवार में जीवित चुनवाने का आदेश दिया। उन्हें भूखा-प्यासा रखा गया, सर्द रातों में बिना कपड़ों के ठिठुरने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन उनके हौसले को तोड़ा नहीं जा सका। अंततः दोनों नन्हें साहबजादों को दीवार में चुन दिया गया।
माता गूजरी, जिन्होंने यह पूरा कष्ट सहन किया, ने भी यातनाओं के बाद अपने प्राण त्याग दिए। यह बलिदान भारत के इतिहास में एक ऐसा उदाहरण है जो धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति की प्रेरणा देता है।
बलिदान की गौरवगाथा
गुरु गोविन्द सिंह के चारों साहबजादों का बलिदान विश्व इतिहास में अद्वितीय है। दो साहबजादों ने युद्धभूमि में अपने प्राणों की आहुति दी, जबकि दो साहबजादों ने छोटी उम्र में ही धर्मांतरण को नकारते हुए मौत को गले लगाया। इनका बलिदान सिख पंथ की गरिमा और राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा का प्रतीक है।
वीर बाल दिवस का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में इस बलिदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए 26 दिसंबर को "वीर बाल दिवस" के रूप में मनाने का आव्हान किया। यह दिवस हमें उन नन्हें वीरों के अदम्य साहस और बलिदान को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन को मनाकर हम न केवल उनके बलिदान को सम्मानित करते हैं, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश भी देते हैं कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटना चाहिए।
इस अवसर पर हमें अपने धर्म और संस्कृति के प्रति समर्पित रहने का संकल्प लेना चाहिए। यह दिवस हमें प्रेरणा देता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों और आदर्शों की रक्षा के लिए अडिग रहना चाहिए।
विदेशीयों की क्रुरता और देश के सपुतो की वीरता को बतलाने वाली वीर गाथा ।
जवाब देंहटाएंएक सडयत्र के तहत हम से यह इतिहास छुपाया गया जो आज की युवा पीढ़ी को बतलाना बेहद आवश्यक है।
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