जल-थल के महानायक लाचित बरफुकन: वह सेनापति जिसने ब्रह्मपुत्र को अपनी ढाल बनाया


⚓️ जल-थल के महानायक लाचित बरफुकन: वह सेनापति जिसने ब्रह्मपुत्र को अपनी ढाल बनाया
जब हम भारतीय इतिहास के महानतम वीरों की बात करते हैं, तो लाचित बरफुकन (जन्म: 24 नवंबर 1622) का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है। वह सिर्फ एक साहसी योद्धा नहीं थे, बल्कि एक ऐसे विलक्षण रणनीतिकार थे, जिन्होंने असम की जान—ब्रह्मपुत्र नदी—को ही अपनी सबसे बड़ी ढाल और सबसे घातक हथियार बना दिया।
उनका जीवन बताता है कि देशभक्ति और बुद्धिमत्ता का मेल हो जाए, तो कोई भी शक्तिशाली दुश्मन आपके सामने टिक नहीं सकता।
✨ पृष्ठभूमि: संघर्षों के बीच उभरा नेतृत्व
लाचित का पालन-पोषण अहोम साम्राज्य के शीर्ष सैन्य परिवार में हुआ। उनके पिता, मोमाई तमुली, बरबरुआ (सेनापति) थे। लाचित ने सैन्य प्रशिक्षण में न केवल तलवार चलाना सीखा, बल्कि असम की भूगोल को भी समझा। उन्हें पता था कि मुगलों के पास विशाल घुड़सवार सेना और तोपखाने हैं, लेकिन असम की ताकत उसके बीहड़ जंगल और उसकी जीवन रेखा—असीम ब्रह्मपुत्र (लुइत) नदी—है।
1667 में, जब मुगलों से अपनी खोई हुई धरती वापस लेने का समय आया, तो लाचित को सेना की कमान सौंपी गई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी सेना केवल जमीन पर नहीं, बल्कि नदी के जलमार्ग पर भी पूरी तरह से हावी हो।
🌊 लाचित का नौसेना कौशल: नदी का जादूगर
लाचित की सबसे बड़ी प्रतिभा यह थी कि उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी को सिर्फ यातायात का माध्यम नहीं, बल्कि एक युद्ध का मैदान बना दिया।
 * रणनीतिक पकड़: उन्होंने गुवाहाटी के आसपास के हर जलमार्ग और नदी के किनारे बने किलों (जैसे इटाखुली) को अपनी रणनीति का केंद्र बनाया। वह जानते थे कि मुगलों की विशालकाय फौजें जमीन पर तो जीत सकती हैं, लेकिन नदी की संकरी धाराओं और तेज बहाव में उनकी बड़ी नावें (जहाज) बेकार हो जाएंगी।
 * छोटी नावों की ताकत: लाचित ने अहोम की छोटी, फुर्तीली युद्ध नौकाओं का इस्तेमाल किया। इन नावों पर सवार उनके कुशल सैनिक (जिन्हें बाद में 'चोर-बाचा' नामक विशेष दस्ते में बदला गया) अचानक हमला करने, जासूसी करने और दुश्मन के भंडारों को नष्ट करने में माहिर थे।
 * जल-थल का समन्वय: जब उन्होंने मुगलों से इटाखुली किला छीना, तो उन्होंने अपने सैनिकों को दो हिस्सों में बांटा: एक दल को जमीनी हमला करने का आदेश दिया गया, जबकि वह स्वयं अपनी नौकाओं के साथ नदी की ओर से आगे बढ़े। मुगलों ने अपने जहाजों से जवाबी हमला करने की कोशिश की, लेकिन लाचित के नौसैनिकों ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया।
दरअसल, लाचित ने इस धारणा को सच साबित किया कि एक सेनापति को विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति तैयार करनी चाहिए। उनके नेतृत्व में असमिया नौसेना ने इतनी जबरदस्त ताकत हासिल की कि वह मुगलों की हार में सबसे निर्णायक कारक बनकर उभरी।
🚢 सराईघाट (1671): जहाँ पानी ने इतिहास बदल दिया
इतिहास प्रसिद्ध सराईघाट का युद्ध लाचित के नौसेना कौशल का सर्वोच्च प्रदर्शन था। यह मुगल सेनापति राम सिंह के अहंकार और लाचित के रणनीतिक धैर्य के बीच का संघर्ष था।
मुगल सेना विशाल थी, लेकिन लाचित ने युद्ध के लिए ब्रह्मपुत्र के उस हिस्से को चुना जहाँ नदी संकरी थी, जिससे मुगलों के बड़े जहाज maneuver नहीं कर सकते थे। लाचित जानते थे कि मुगल सेना पानी में कमजोर है।
जब अंतिम निर्णायक युद्ध छिड़ा, लाचित बरफुकन तेज बुखार से कांप रहे थे। उनका शरीर जवाब दे रहा था, लेकिन जब उन्होंने देखा कि असमिया सेना कुछ क्षण के लिए पीछे हट रही है, तो वह बीमार शरीर के साथ ही अपनी नाव में खड़े हो गए।
> "अगर तुम भागते हो, तो राजा के लिए तलवार मैं उठाऊंगा। एक राष्ट्र तब तक नष्ट नहीं होता जब तक उसका एक भी व्यक्ति जीवित है!"
उनके इस अदम्य संकल्प ने सेना को ऐसा प्रेरित किया कि उन्होंने मुगलों पर अंतिम वार किया। संकरी नदी में फंसी मुगल नौसेना हार गई, और राम सिंह की विशाल सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पानी में डूबना पड़ा। इस शानदार जीत ने असम को हमेशा के लिए मुगलों के हाथों में जाने से बचा लिया।
🌟 लाचित का सम्मान, राष्ट्र का गौरव
सराईघाट की जीत के बाद लाचित बरफुकन बीमारी के कारण जल्द ही इस दुनिया से चले गए, लेकिन वह हमें सिखा गए कि राष्ट्र प्रेम से बड़ा कोई बल नहीं होता।
आज लाचित बरफुकन को न केवल असम में, बल्कि पूरे भारत में वह सम्मान मिल रहा है जिसके वह हकदार हैं। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिया जाने वाला स्वर्ण पदक उनकी वीरता का राष्ट्रीय प्रतीक है, और उनकी 125 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण उनकी गाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहा है।
लाचित बरफुकन—जल और थल, दोनों पर अपनी रणनीति का लोहा मनवाने वाले—वास्तव में भारतीय इतिहास के वह महानायक हैं, जिन्होंने अपने देश को बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

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