आओ सही इतिहास जानें: वीरों/वीरांगनाओं की शौर्य गाथा





राणा संग्राम सिंह सिसोदिया, जिन्हें हम राणा सांगा के नाम से जानते हैं। १६वीं शताब्दी (16th Century) के सबसे शक्तिशाली मेवाड़ी शासक थे। इनकी शौर्य गाथा पर मेवाड़ी आज भी गर्व महसूस करते हैं। राणा सांगा को भारतीय इतिहास के महानायक तथा वीर के रूप में,
देशभक्तों द्वारा हमेशा याद किया जाएगा। तो आइए जानते हैं उनके बारे में।

● कौन थे राणा संग्राम सिंह सिसोदिया?

महाराणा संग्राम सिंह, उदयपुर में सिसोदिया राजवंश के राणा रायमल के सबसे छोटे सुपुत्र थे। कुंवर पृथ्वीराज और जगमाल, राणा सांगा के भाई थे। एक दिन भविष्यकर्त्ता ने राणा रायमल से कहा कि आपका यह बेटा (राणा सांगा) मेवाड़ का सबसे प्रसिद्ध शासक बनेगा और अपनी वीरता के लिए इतिहास में याद रखा जायेगा।




यह सुनकर कुंवर पृथ्वीराज व जगमाल अपने भाई राणा सांगा को मारने के लिए षड्यंत्र रचने लगे ताकि राणा सांगा को सत्ता के रास्ते से हटाया जाए। परंतु सांगा को इस बात की भनक लग गई और वो किसी प्रकार राजधानी से बचकर अजमेर पलायन कर गए। कुछ समय अजमेर में बिताने के पश्चात सन् 1509 में अजमेर के कर्मचन्द पंवार की सहायता से राणा सांगा को राज्य प्राप्त हुआ।

सत्ता मिलते ही महाराणा सांगा ने सभी राजपूत राज्यो को संगठित करने का निश्चय किया और अपने प्रयास से सभी राजपूत राज्य को एक छत्र के नीचे लाने में सफल रहे। उन्होंने आस पास के सभी राजपूत राज्यों से संधि की। और इस तरह महाराणा सांगा ने अपना साम्राज्य उत्तर में पंजाब, सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीतकर नर्मदा नदी तक स्थापित कर लिया। पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में बयाना भरतपुर ग्वालियर तक अपना राज्य विस्तार किया। इस प्रकार मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ वर्ष की सत्ता के पश्चात इतने बड़े क्षेत्रफल में हिंदू साम्राज्य कायम हुआ था।


● कैसे राणा सांगा ने मुस्लिम शासकों को धूल चटाई!

राणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को खातौली व बाड़ी के युद्ध में 2 बार परास्त किया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया। इस युद्ध के कुछ ही समय के बाद राणा ने गुजरात के सुल्तान को हराया व मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोककर उसे पीछे हटने के लिए विवश कर दिया।

फरवरी 1527 ई. में खानवा केे युद्ध से पूर्व बयाना केे युद्ध में राणा सांगा ने लुटेरे बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीत लिया था। इतिहासकार कहते हैं कि इस युद्ध में राणा का तलवार गरज़ा था, इस सब से बाबर के सैनिक इतने डर गए थे कि उनमें अधिकतर सैनिक युद्ध भूमि से भाग खड़े हुए।

राणा सांगा अदम्य साहसी थे। 1528 के खानवा के युद्ध में एक भुजा, एक आंख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना धेर्य और पराक्रम नहीं खोया और वो युद्ध लड़ते रहे। इतिहासकार कहते हैं कि राणा जब युद्ध लड़ने उतरते तो दुश्मन सेना में डर पैदा कर देते थे। अफ़सोस की बात है कि एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध हार गए, अन्यथा हिंदुस्तान में कभी मुगलिया सल्तनत की स्थापना नहीं हो सकता था।

बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि “राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था। उसके साथ 7 राजा और 104 छोटे सरदार थे। अगर हम उसके विश्वसनीय को अपने साथ न मिलाते और साथ ही उसके तीन उत्तराधिकारी भी यदि वैसे ही वीर और योग्य होते तो मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में कभी नहीं पनप सकता था।"


ये कहना गलत नहीं होगा कि राणा सांगा ने हिन्दू की कमियों को पहले ही भाँप लिया। यही कारण है कि विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध लड़ने के लिए उन्होंने पहले सभी राजपूतों को एकजुट किया, उन्हें एक छत्र के नीचे लाए। तब जाकर आक्रांताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
राणा सांगा सही मायनों में एक बहादुर योद्धा एवं कुशल नेतृत्वकर्ता थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुए। उनका नाम हमेशा के लिए इतिहास के स्वर्णिम पन्नो पर अंकित हो गया है।
जिनकी गाथा हम और आप जैसे देशभक्त बड़े गर्व से पढ़ेंगे एवं अपने आने वाली पीढ़ी को भी बताएंगे।

“घाव खाया चौरासी एक भुजा एक आँख खोई,
सांगा के तलवार के आगे मुगल फौज घबराई”

                जय हिन्दुत्व 🚩

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