प्रयागराज महाकुंभ 2025: ‘एक थैला, एक थाली’ अभियान ने दिया हरित और स्वच्छ कुंभ का संदेश



प्रयागराज महाकुंभ 2025: ‘एक थैला, एक थाली’ अभियान ने दिया हरित और स्वच्छ कुंभ का संदेश

— विशेष रिपोर्ट

प्रयागराज महाकुंभ 2025 का नजारा इस बार कुछ अलग था। हर ओर आस्था की लहरें थीं, लेकिन उनके साथ बहने वाले प्लास्टिक और डिस्पोजेबल कचरे की मात्रा नगण्य थी। यह बदलाव आया ‘एक थैला, एक थाली’ अभियान से, जिसने इस विशाल आयोजन को हरित और स्वच्छ बनाने में ऐतिहासिक सफलता हासिल की।

प्रयागराज महाकुंभ 2025 ने न केवल आध्यात्मिक आस्था और भव्यता की परंपरा को बनाए रखा, बल्कि इस बार एक अनोखी सामाजिक एवं पर्यावरणीय क्रांति का साक्षी भी बना। ‘एक थैला, एक थाली’ अभियान ने इसे विशुद्ध धार्मिक आयोजन से आगे बढ़ाकर पर्यावरणीय जागरूकता और सामाजिक सहभागिता का उत्सव बना दिया।

स्वयंसेवी प्रयास से शून्य बजट पर असाधारण उपलब्धि
समुदाय की भागीदारी और संगठनों के समर्पण से इस अभियान को बिना किसी सरकारी बजट के सफलतापूर्वक संचालित किया गया। 43 राज्यों में फैले 7,258 संग्रहण केंद्रों के माध्यम से 2,241 संगठनों ने इस अभियान को मजबूती दी। इस पहल से 14.17 लाख स्टील की थालियां, 13.46 लाख कपड़े के थैले और 2.63 लाख स्टील के गिलास एकत्र किए गए। इनमें से अधिकांश को भंडारों में उपयोग के लिए वितरित किया गया, जिससे महाकुंभ में डिस्पोजेबल वस्तुओं के उपयोग में ऐतिहासिक गिरावट आई।

कुंभ को ‘हरित कुंभ’ बनाने में बड़ी भूमिका
‘एक थैला, एक थाली’ अभियान ने न केवल कुंभ क्षेत्र को साफ-सुथरा रखा, बल्कि यह स्वच्छता के प्रति समाज में स्थायी परिवर्तन का कारक बना। इस पहल से तीन बड़े लाभ हुए—

डिस्पोजेबल कचरे में 80-85% की कमी

महाकुंभ में पारंपरिक रूप से उपयोग होने वाले पत्तल, दोना, प्लास्टिक के गिलासों का उपयोग 80-85% तक घटा, जिससे प्रयागराज को स्वच्छ रखने में बड़ी मदद मिली।
29,000 टन अपशिष्ट में कमी

अगर यह पहल नहीं होती, तो कुंभ में अनुमानित 40,000 टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता। इस अभियान के कारण कचरा 29,000 टन कम हुआ, जो किसी भी धार्मिक आयोजन के इतिहास में सबसे बड़ी सफाई उपलब्धियों में से एक है।
₹140 करोड़ की लागत बचत

डिस्पोजेबल वस्तुओं पर प्रतिदिन ₹3.5 करोड़ की बचत हुई, जिससे 40-दिवसीय आयोजन में कुल ₹140 करोड़ बचाए गए। इस राशि को भोजन, स्वच्छता और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं में लगाया गया।

"उतना ही लो थाली में, जो व्यर्थ न जाए नाली में"— खाद्य अपशिष्ट में 70% की कमी
महाकुंभ में भोजन वितरण की इस बार की योजना भी क्रांतिकारी रही। आयोजकों और स्वयंसेवकों ने "उतना ही लो थाली में, जो व्यर्थ न जाए नाली में" का संदेश फैलाया, जिससे खाद्य अपशिष्ट में 70% तक कमी आई। भोजन को सम्मान देने की इस परंपरा ने कुंभ को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूक महायज्ञ में बदल दिया।

धार्मिक आयोजनों में हिंदू समाज की आत्मनिर्भरता का उदाहरण
दुनिया भर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, लेकिन प्रयागराज महाकुंभ जैसा आत्मनिर्भर आयोजन विरले ही देखने को मिलता है। जहां अन्य समुदायों के बड़े धार्मिक आयोजनों में सरकार या कॉर्पोरेट फंडिंग पर अधिक निर्भरता रहती है, वहीं हिंदू समाज ने महाकुंभ में स्वेच्छा से अपने तंत्र को विकसित किया।

हज यात्रा और वेटिकन में ईसाई सम्मेलनों की तुलना में अनूठी पहल

हज यात्रा में मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा सरकारी सब्सिडी, एयरलाइंस, और सरकारी अनुदानों पर निर्भर करता रहा है। वेटिकन में भी चर्च का केंद्रीय वित्तीय सहयोग रहता है। इसके विपरीत, महाकुंभ में "एक थैला, एक थाली" जैसी पहल पूरी तरह से समाज की भागीदारी और सहयोग से संभव हुई, बिना किसी सरकारी सहायता के।
सांस्कृतिक नेतृत्व की ओर कदम

महाकुंभ की यह पहल भविष्य में "बर्तन बैंक" जैसी स्थायी व्यवस्थाओं को जन्म दे सकती है। यह केवल कुंभ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि हिंदू समाज के अन्य आयोजनों—ग्राम मेलों, विवाह समारोहों, और मंदिर उत्सवों में भी लागू किया जा सकता है।
लंबे समय तक रहने वाला प्रभाव
इस आयोजन में वितरित सवा दस लाख स्टील की थालियां, 13 लाख कपड़े के थैले, और 2.5 लाख स्टील के गिलास वर्षों तक उपयोग में लाए जाएंगे। इससे भविष्य के आयोजनों में भी अपशिष्ट में कमी आएगी। यह कदम न केवल महाकुंभ को हरित और सतत विकास के रास्ते पर ले गया, बल्कि समाज में स्थायी बदलाव की नींव भी रखी।

महाकुंभ 2025: स्वच्छता और सतत विकास की नई परिभाषा
इस बार का कुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह सामाजिक जागरूकता और आत्मनिर्भरता की मिसाल बना। हिंदू समाज ने यह दिखा दिया कि बड़े आयोजन भी बिना किसी बाहरी सहायता के, केवल संगठित समाज की भागीदारी से सफल हो सकते हैं।

यह केवल शुरुआत है। यदि यह मॉडल पूरे देश में लागू किया जाए, तो धार्मिक और सामाजिक आयोजनों को अधिक स्वच्छ, संगठित और पर्यावरण-अनुकूल बनाया जा सकता है। प्रयागराज महाकुंभ 2025 ने यह प्रमाणित कर दिया कि धर्म केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि पर्यावरण-संरक्षण और समाज सुधार का माध्यम भी बन सकता है।

टिप्पणियाँ

  1. आपका आलेख कुम्भ के बारे में एक ऐसे सत्य को प्रकाशित करता है जो सनातन संस्कृति की विशेषताओं को समेटे हुए है जो आलेख बताता है कैसे एक विशाल जनसंख्या वाला आयोजन भारतीय संस्कृति के मूल्यों के साथ वैश्विक संकटों को दूर तो
    कर सकता है।

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  2. परिवर्तन का शुभ संकेत

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  3. अच्छी शुरआत हुई जिससे इतने बड़े कार्यक्रम में कचरा बहुत कम रहा सब को साधुवाद

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  4. अच्छी शुरूआत के लिए आप सभी का धन्यवाद करते हैं जी 🙏🙏

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  5. पर्यावरण बचाने के लिए बहुत अच्छी पहल की गई जो सफल रही

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  6. पर्यावरण बचाने के लिए बहुत अच्छी पहल की गई उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है इस पहल को करने वाली सभी टीम सदस्यों को मेरा सादर प्रणाम नमन

    आपका अपना

    गोपुत्र अवधेश अवस्थी महुआ जिला दौसा राजस्थान

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