शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द का राहुल गांधी पर प्रस्ताव यानी "नूरा कुश्ती"
क्या आपने कभी नूरा कुश्ती देखी है? मैनें तो देखी और समझी भी है। आज जब सुना कि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिविर में राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का प्रस्ताव पारित किया गया है, मुझे "नूरा कुश्ती" याद आ गई। जानते हो क्यों?
हिन्दू धर्म से बहिष्कृत करने का अर्थ है कि आप राहुल गांधी हिन्दू है इसे दूसरे मार्ग से स्थापित करते है, चाहे उनके पिता फ़ारसी माता इसाई क्यों न हो।
प्रयागराज महाकुंभ में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिविर में आयोजित परम धर्म संसद में दो प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए—अमेरिकी प्रशासन के हिंदू विरोधी कृत्यों की निंदा और राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का प्रस्ताव। इस घटनाक्रम को यदि "नूरा कुश्ती" (पूर्व नियोजित संघर्ष) के रूप में देखा जाए, तो इसके पीछे कई ठोस तर्क दिए जा सकते हैं, कुछ तर्क मैं लिख रखा हूँ।
1. कांग्रेस और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का संबंध
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं।
उन्होंने कई मौकों पर भाजपा की नीतियों की आलोचना की है और कांग्रेस को एक उदारवादी दल के रूप में देखा है।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और कई अन्य नेताओं से उनके करीबी संबंध रहे हैं।
कांग्रेस का झुकाव हमेशा वामपंथी विचारधारा की ओर रहा है, जो पारंपरिक हिंदुत्व को चुनौती देती रही है।
यदि यह प्रस्ताव कांग्रेस समर्थक संत के शिविर में पारित हुआ, तो यह संदेह पैदा करता है कि यह असली विरोध है या कांग्रेस की एक सोची-समझी रणनीति।
2. राहुल गांधी के 'हिंदू धर्म' बनाम 'हिंदुत्व' नैरेटिव को मजबूती
राहुल गांधी ने हाल के वर्षों में "हिंदू बनाम हिंदुत्व" का विमर्श खड़ा किया है।
वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि वे सांस्कृतिक रूप से हिंदू हैं, लेकिन भाजपा का हिंदुत्व कट्टरवादी है।
यह प्रस्ताव उनके नैरेटिव को मजबूत करता है, जिससे वे खुद को "हिंदू धर्म के अंदर एक उदार धारा का प्रतिनिधि" साबित कर सकते हैं।
कांग्रेस अब दावा कर सकती है कि "कट्टरपंथी ताकतें राहुल गांधी को हिंदू धर्म से निकालने की साजिश कर रही हैं।"
3. "पीड़ित हिंदू" की छवि गढ़ने की रणनीति
राहुल गांधी ने केदारनाथ, महाकाल, कैलाश मानसरोवर, रामलला दर्शन, द्वारका शंकराचार्य से भेंट जैसे कदम उठाए हैं ताकि उनकी "हिंदू पहचान" स्पष्ट हो।
यह प्रस्ताव राहुल गांधी को कट्टर हिंदू संगठनों का शिकार दिखाने में मदद कर सकता है।
इससे कांग्रेस समर्थकों में यह धारणा बन सकती है कि भाजपा और हिंदू धर्मगुरु "राहुल गांधी को असली हिंदू नहीं मानते," जिससे उनकी छवि और मजबूत होगी।
4. हिंदू कट्टरता बनाम धर्मनिरपेक्षता का विमर्श
कांग्रेस "कट्टर हिंदू संगठनों" के खिलाफ लगातार बयान देती रही है।
यह प्रस्ताव कांग्रेस के इस दावे को बल देता है कि हिंदू धर्मगुरु अब "राजनीतिक एजेंडा" चला रहे हैं।
कांग्रेस अब इसे एक बड़ा मुद्दा बनाकर "राहुल गांधी को कट्टरता का शिकार" दिखा सकती है।
इससे विपक्षी दलों को भाजपा पर हमला करने का मौका मिल सकता है।
5. भाजपा के खिलाफ ध्रुवीकरण का प्रयास
यह प्रस्ताव कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक हथियार बन सकता है।
वे दावा कर सकते हैं कि भाजपा और उससे जुड़े संगठन धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
इससे कांग्रेस को मुस्लिम, ईसाई और दलित वोटबैंक को लामबंद करने का मौका मिल सकता है।
6. हिंदू धर्मगुरुओं की छवि को धक्का पहुंचाने की साजिश?
यदि यह प्रस्ताव कांग्रेस समर्थक संत के शिविर में पारित हुआ है, तो क्या यह हिंदू धर्मगुरुओं की "साख कमजोर करने की रणनीति" है?
क्या कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि अब हिंदू संत भी राजनीतिक षड्यंत्रों में शामिल हैं?
इससे संत समाज के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर किया जा सकता है।
7. कांग्रेस की "शहीद राजनीति" की रणनीति
अतीत में भी कांग्रेस ने खुद को "संघ और हिंदू संगठनों का शिकार" बताने की रणनीति अपनाई है।
सोनिया गांधी के समय भी कांग्रेस ने दावा किया था कि "भाजपा हमें हिंदू विरोधी बताकर निशाना बना रही है।"
अब राहुल गांधी को "हिंदू धर्म से बहिष्कृत" बताने से कांग्रेस को अपने हिंदू वोटबैंक को बचाने का मौका मिल सकता है।
8. राहुल गांधी के लिए 2024-2029 की रणनीति?
यह विवाद राहुल गांधी के लिए दीर्घकालिक रणनीति हो सकता है।
वे खुद को "हिंदू धर्म के उदारवादी धड़े" का नेता बनाकर पेश कर सकते हैं।
यह उन्हें भाजपा के हिंदुत्व के मुकाबले एक नया नैरेटिव गढ़ने में मदद करेगा।
यदि कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले संत की धर्म संसद में ऐसा प्रस्ताव पारित होता है, तो यह "नूरा कुश्ती" की संभावना को मजबूत करता है। इससे राहुल गांधी को हिंदू विरोधी साबित करने का भाजपा का नैरेटिव कमजोर होता है और कांग्रेस को अपने हिंदू वोटबैंक को साधने का नया अवसर मिलता है।
"क्या यह प्रस्ताव वाकई निष्पक्ष है, या यह कांग्रेस की छवि सुधारने का सोचा-समझा राजनीतिक कदम?"
यह प्रश्न विचारणीय है।
जिनको एक करने का अवसर मिल सकता है वे अभी भी कांग्रेस को ही वोट करते हैं।
जवाब देंहटाएंपरन्तु आपके अन्य बिंदु विचारणीय हैं
सोची समझी रणनीति के तहत ही यह सबकुछ हो रहा है , यह स्पष्ट है ।
जवाब देंहटाएंShi h
हटाएंसंघ और भाजपा के अनुसार हिंदू कोई धर्म नहीं एक जीवन शैली है ।
जवाब देंहटाएंक्या मोदी जी की कुछ नीतियों की आलोचना करने भर से कोई कांग्रेसी हो सकता है।
क्या वही संत सच्चा हिंदुत्ववादी है जो संघ और भाजपा की हां में हां मिलाता हो