राहुल गांधी का हिंदू बहिष्कार: अविमुक्तेश्वरानंद की साजिश या सुनियोजित रणनीति?
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राहुल गांधी का हिंदू बहिष्कार: अविमुक्तेश्वरानंद की साजिश या सुनियोजित रणनीति?
धर्म और राजनीति के रिश्ते हमेशा से जटिल रहे हैं, लेकिन जब कोई संत धर्म के नाम पर राजनीति करने लगे, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। हाल ही में, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की, जिसे लेकर देशभर में बहस छिड़ गई। क्या यह निर्णय धर्म की रक्षा के लिए था, या फिर इसके पीछे कोई और बड़ा खेल चल रहा था? क्या सचमुच राहुल गांधी हिंदू हैं? क्या अविमुक्तेश्वरानंद हिंदू समाज को बांटने की साजिश का हिस्सा बन चुके हैं? इन सवालों के जवाब हिंदू समाज के वर्तमान और भविष्य, दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राहुल गांधी: हिंदू धर्म से जुड़े या उससे परे?
राहुल गांधी के हिंदू होने का दावा जितना कमजोर है, उससे कहीं अधिक गंभीर सवाल यह है कि क्या उनके हिंदू होने या न होने से वास्तव में हिंदू समाज पर कोई फर्क पड़ता है? राहुल का जन्म एक पारसी पिता और विदेशी मूल की ईसाई मां से हुआ, लेकिन उन्हें गांधी उपनाम और हिंदू पहचान देकर कांग्रेस ने अपने राजनीतिक हित साधे। न कभी उन्हें हिंदू मंदिरों में आस्था व्यक्त करते देखा गया, न कभी हिंदू धर्मग्रंथों के प्रति श्रद्धा जताते। वे हिंदू धर्म के अनुष्ठानों में केवल तब दिखाई देते हैं, जब चुनावी मौसम आता है। फिर भी, अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा उन्हें हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की नौटंकी किस उद्देश्य से की गई?
हिंदू समाज की एकता पर वार
यह कोई संयोग नहीं कि जब प्रयागराज महाकुंभ में करोड़ों हिंदू जातिगत भेदभाव भुलाकर संगम में स्नान कर रहे थे, तभी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह बयान दिया। क्या यह हिंदू समाज की एकता को कमजोर करने की कोशिश थी?
हिंदू समाज को हमेशा जाति, भाषा, क्षेत्र और उपासना पद्धतियों के नाम पर विभाजित करने के षड्यंत्र हुए हैं। नेहरू से लेकर इंदिरा, राजीव, सोनिया और अब राहुल तक, कांग्रेस का इतिहास ही रहा है हिंदू समाज को कमजोर करने का। लेकिन जब कांग्रेस के इस अभियान को हिंदू संतों का ही समर्थन मिलने लगे, तो यह और भी खतरनाक संकेत है।
मनुस्मृति विवाद और दोहरा मापदंड
अविमुक्तेश्वरानंद ने राहुल गांधी को मनुस्मृति पर दिए गए विवादास्पद बयान के आधार पर हिंदू धर्म से बाहर करने का ऐलान किया। लेकिन इसी तर्क से तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और उनके गुरुभाई दिग्विजय सिंह को सबसे पहले बहिष्कृत किया जाना चाहिए था। दिग्विजय सिंह ने तो अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सनातन धर्म को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। फिर उनके खिलाफ ऐसा कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया? क्या इसलिए कि कांग्रेस और उनके हिंदू विरोधी एजेंडे के प्रति एक विशेष धड़ा हमेशा से नरम रहा है?
राहुल का बहिष्कार या हिंदू समाज को भ्रमित करने की साजिश?
राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का निर्णय जितना निरर्थक था, उससे कहीं अधिक खतरनाक इसकी मंशा थी। क्या यह हिंदू समाज को बांटने की एक सोची-समझी योजना थी? जब अखिलेश यादव समेत कई राजनीतिक चेहरे प्रयागराज भगदड़ की त्रासदी पर चिंता जता रहे थे, तब कांग्रेस खेमे में सोनिया, राहुल और प्रियंका के चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी।
हिंदू समाज के लिए चेतावनी
हिंदू समाज को ऐसे षड्यंत्रों से सावधान रहना होगा। हमें यह समझना होगा कि जो लोग हिंदू धर्म को विभाजित करने के प्रयास में लगे हैं, वे ही असली विघ्नसंतोषी हैं। अविमुक्तेश्वरानंद जैसे लोग धर्म के नाम पर राजनीति कर हिंदू समाज को कमजोर करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। राहुल गांधी हिंदू नहीं हैं, और न ही वे कभी हिंदू समाज के लिए हितकारी रहे हैं। ऐसे में उनके बहिष्कार का नाटक सिर्फ हिंदू समाज को भ्रमित करने की चाल है, जिससे हमें सतर्क रहना होगा।
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