क्योंकि भारत यदि विश्व की आत्मा है, तो प्रयागराज उसका प्राण!
प्रयागराज की पवित्र धरती पर…
सर्दी की हल्की ठिठुरन के बीच प्रयागराज की त्रिवेणी तट पर हलचल बढ़ चुकी थी। गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम पर आस्था का महासमुद्र उमड़ पड़ा था। दूर-दूर से आए संत, महात्मा, गृहस्थ, सन्यासी, विदेशी श्रद्धालु और कल्पवासी—सबकी आंखों में एक ही लक्ष्य था—महाकुंभ में संगम स्नान और पुण्य लाभ।
वह माघी पूर्णिमा की शुभ घड़ी थी। सूरज धीरे-धीरे क्षितिज पर उग रहा था, और उसी के साथ ही आस्था की लहरें संगम में प्रवाहित होने लगीं। श्रद्धालु गंगा मैया की गोद में डुबकी लगा रहे थे, और हर डुबकी के साथ ‘हर हर गंगे’, ‘जय श्रीराम’, ‘हर हर महादेव’ के गगनभेदी जयघोष गूंज रहे थे।
कल्पवास: तप, त्याग और साधना का अनूठा अनुभव
माघ महीने में लाखों श्रद्धालु अपनी सांसारिक जिंदगी को छोड़कर यहां कल्पवास के लिए आते हैं। एक महीने तक संगम तट पर रहकर ध्यान, जप और तपस्या करते हैं। इस बार भी ऐसे हजारों परिवार आए थे, जिनमें से एक थे बनारस के रामस्वरूप जी। वे अपनी पत्नी और बेटे के साथ पूरे महीने संगम किनारे एक छोटी सी कुटिया बनाकर रह रहे थे।
"हमारे लिए यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का मार्ग है," उन्होंने कहा। उनकी पत्नी सावित्री देवी, जो रोज सुबह चार बजे उठकर गंगा स्नान करती थीं, ने मुस्कुराते हुए कहा, "यहां की हर सुबह आत्मा को नई ऊर्जा देती है।"
लेकिन अब माघी पूर्णिमा के साथ ही कल्पवास समाप्त होने को था। कल्पवासी अपने घरों को लौटने लगे थे, लेकिन उनकी आत्मा संगम में ही बस गई थी।
हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा: एक अलौकिक दृश्य
सुबह के समय जब सूरज की किरणें गंगा की लहरों को स्वर्णिम आभा दे रही थीं, तभी आसमान में हलचल हुई। ऊपर देखा तो हेलीकॉप्टर उड़ते दिखाई दिए। कुछ ही क्षणों में गुलाब की पंखुड़ियां संगम तट पर गिरने लगीं। स्नान कर रहे श्रद्धालु, संत और महात्मा इस दिव्य क्षण को देखकर गदगद हो उठे।
"यह तो देवताओं का आशीर्वाद है!"—एक वृद्ध साधु ने कहा। पंखुड़ियों की बारिश में डूबे श्रद्धालु "हर हर महादेव" और "जय श्रीराम" का उद्घोष करने लगे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वर्ग से स्वयं देवता इस महायज्ञ में भाग लेने आए हों।
नकारात्मकता बनाम आस्था
जहां एक ओर विश्वभर के श्रद्धालु इस दिव्य आयोजन में सम्मिलित हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी था जो इसे ‘अंधविश्वास’ और ‘ढकोसला’ कहकर नकारात्मकता फैलाने में लगा था। सोशल मीडिया पर कुछ लोग महाकुंभ को लेकर विवादित बातें लिख रहे थे।
लेकिन संगम तट पर खड़े एक युवा ने मुस्कुराते हुए कहा, "जो इस दिव्यता को महसूस करना चाहता है, उसे यहां आना होगा। महाकुंभ कोई धार्मिक आयोजन भर नहीं, यह सनातन संस्कृति की आत्मा है, जो पूरी दुनिया को जोड़ती है।"
मुख्यमंत्री की सतर्कता और प्रशासनिक प्रबंध
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन के दौरान व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने हर स्तर पर चाक-चौबंद व्यवस्था कर रखी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद लखनऊ में बने वार रूम से पूरे आयोजन पर नजर रख रहे थे। हर स्नान घाट पर पुलिस और प्रशासन मुस्तैद था।
सुरक्षा अधिकारी अरुण सिंह ने बताया, "हमारी टीम चौबीसों घंटे संगम तट पर निगरानी रख रही है। हेलीकॉप्टर से सुरक्षा की लाइव मॉनिटरिंग भी की जा रही है।"
विश्व में गूंजता महाकुंभ
विदेशों से आए श्रद्धालु भी इस अद्भुत आयोजन में सम्मिलित थे। अमेरिका से आए जॉन विलियम्स, जो भारतीय संस्कृति के शोधकर्ता थे, भावविभोर होकर बोले, "मैंने दुनिया के कई धार्मिक आयोजन देखे हैं, लेकिन महाकुंभ जैसा अध्यात्म, ऊर्जा और आस्था का संगम कहीं नहीं देखा। यह केवल भारत में ही संभव है।"
जापान से आए योशिरो ताकाहाशी, जो योग और सनातन पर अध्ययन कर रहे थे, ने कहा, "महाकुंभ भारत की आत्मा है। यह केवल एक मेला नहीं, बल्कि मानवता के एकीकरण का अद्भुत माध्यम है।"
अंतिम विचार
जैसे-जैसे दिन ढलने लगा, संगम तट पर लगी दीपमालाएं गंगा की लहरों में झिलमिलाने लगीं। महाकुंभ का यह अध्याय समाप्त हो रहा था, लेकिन आस्था की यह लहरें अनंतकाल तक प्रवाहित होती रहेंगी।
क्योंकि भारत यदि विश्व की आत्मा है, तो प्रयागराज उसका प्राण!
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