"होर्मुज़ जलडमरूमध्य संकट: ईरान-अमेरिका टकराव और भारत की ऊर्जा सुरक्षा की अग्निपरीक्षा"



"होर्मुज जलडमरूमध्य की घेराबंदी: ईरान-अमेरिका टकराव का वैश्विक असर और भारत की रणनीति"

प्रस्तावना

दुनिया एक बार फिर उस बिंदु पर खड़ी है जहाँ एक समुद्री जलडमरूमध्य से निकलने वाला संकट तेल की धाराओं को रोक सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था की नब्ज को झकझोर सकता है।
ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव ने अब एक निर्णायक मोड़ ले लिया है। अमेरिका द्वारा ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों — फोर्डो, नतांज़ और इस्फ़हान — पर भारी बमबारी के जवाब में, ईरानी संसद ने 'स्ट्रेट ऑफ होरमुज' को बंद करने की मंजूरी दे दी है।

यह एक ऐतिहासिक और संभावित रूप से खतरनाक निर्णय है, क्योंकि यह जलमार्ग विश्व ऊर्जा आपूर्ति का मेरुदंड माना जाता है। भारत जैसे देश, जो आयात पर निर्भर हैं, के लिए यह संकट बहुआयामी है — आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक

स्ट्रेट ऑफ होरमुज: दुनिया की ऊर्जा नाड़ी

स्ट्रेट ऑफ होरमुज — फारस की खाड़ी को अरब सागर और हिंद महासागर से जोड़ने वाला यह संकीर्ण जलमार्ग — मात्र 33 किलोमीटर चौड़ा है, लेकिन इसका महत्व असीमित है।
यह जलडमरूमध्य, एक तरफ ईरान और दूसरी तरफ ओमान व UAE के बीच स्थित है, और यहाँ से:

  • दुनिया का लगभग 20% तेल और

  • प्राकृतिक गैस का एक बड़ा हिस्सा
    हर दिन होकर गुजरता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हर दिन 33 करोड़ 39 लाख लीटर से अधिक कच्चा तेल इसी मार्ग से पार होता है।
यह जलमार्ग न केवल तेल टैंकरों के लिए एक जीवनरेखा है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा मूल्य निर्धारण को भी नियंत्रित करता है।



ईरान का निर्णय: क्यों यह महत्वपूर्ण मोड़ है?

ईरान पहले भी इस मार्ग को बंद करने की धमकियाँ देता रहा है, लेकिन अब अमेरिकी हमलों के जवाब में उसकी संसद द्वारा आधिकारिक मंजूरी देना इसे एक रणनीतिक कार्रवाई बना देता है।

ईरान का दावा है कि यदि उसकी संप्रभुता और सुरक्षा से छेड़छाड़ होगी, तो वह होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करके पश्चिमी देशों को उनकी निर्भरता का अहसास कराएगा।

यह कदम न केवल अमेरिका बल्कि पूरे विश्व के लिए ऊर्जा संकट का कारण बन सकता है।

अमेरिका की प्रतिक्रिया और चीन की भूमिका

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने चीन से आग्रह किया है कि वह ईरान को यह कदम उठाने से रोके। उनका तर्क है कि:

"अगर ईरान होर्मुज को बंद करता है, तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए आपदा और खुद ईरान के लिए आर्थिक आत्महत्या होगी।"

रुबियो का बयान चीन को ईरान पर दबाव डालने की कोशिश का हिस्सा है क्योंकि चीन स्वयं भी इस मार्ग से बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है।

भारत पर प्रभाव: संकट के बीच रणनीति

भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, अपनी कुल जरूरत का लगभग:

  • 85% कच्चा तेल आयात करता है

  • जिसमें से लगभग 40% तेल और आधी से अधिक गैस होर्मुज जलमार्ग से आती है।

अगर यह मार्ग बाधित होता है तो भारत को निम्नलिखित संकटों का सामना करना पड़ सकता है:

1. तेल की कीमतों में भारी उछाल

तेल की कीमतें $80–100 प्रति बैरल या उससे अधिक तक जा सकती हैं, जिससे पेट्रोल, डीज़ल, गैस, ट्रांसपोर्टेशन और खाद्य वस्तुएं महंगी हो जाएंगी।

2. मुद्रास्फीति और बजट पर दबाव

ईंधन महंगाई सीधे आमजन के जीवनस्तर को प्रभावित करेगी। सब्सिडी बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है।

3. चालू खाता घाटा और रुपये पर दबाव

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और रुपये की स्थिरता संकट में आ सकती है।

4. सुरक्षा रणनीति और नौसेना की सक्रियता

भारत को अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ाकर जलमार्गों की निगरानी और रक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

भारत की रणनीतिक तैयारी: आशा की किरण

हालांकि संकट गंभीर है, भारत की ऊर्जा आपूर्ति रणनीति अपेक्षाकृत मजबूत और विविधतापूर्ण है:

  • रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है, जिसने पश्चिम एशियाई देशों को पीछे छोड़ दिया है।

  • भारत अमेरिका, ब्राजील, अफ्रीका, और दक्षिण एशिया से भी आयात कर रहा है।

  • सरकार ने दीर्घकालीन LNG अनुबंध, वैश्विक रणनीतिक भंडारण, और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर अग्रसरता दिखाई है।

यह दर्शाता है कि भारत तत्काल संकट से निपटने की क्षमता रखता है, भले ही लागत बढ़े।

वैश्विक असर और सामरिक दृष्टिकोण

अगर ईरान ने इस जलमार्ग को पूर्णतः अवरुद्ध कर दिया:

  • तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति बाधित होगी।

  • NATO, अमेरिका और मित्र देशों की नौसेनाएं इस मार्ग को खुला रखने के लिए सैन्य हस्तक्षेप कर सकती हैं।

  • एक सीमित युद्ध या अंतरराष्ट्रीय सैन्य संघर्ष की संभावना भी बन सकती है।

 संकट, संकल्प और सबक

'स्ट्रेट ऑफ होरमुज' भले ही भौगोलिक रूप से संकरा हो, लेकिन आर्थिक और सामरिक दृष्टि से इसका महत्व समुद्र से भी गहरा है।

ईरान-अमेरिका टकराव यदि युद्ध का रूप लेता है, तो केवल पश्चिम एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की ऊर्जा आपूर्ति, व्यापार संतुलन, और आर्थिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

भारत को इस स्थिति से कई सबक भी मिलते हैं:

  • ऊर्जा आत्मनिर्भरता का मार्ग अनिवार्य है।

  • बहुस्तरीय कूटनीति और त्वरित सैन्य सजगता समय की आवश्यकता है।

  • आमजन को जागरूक और तैयार रखना, ताकि संकट के समय संयम और सहयोग बना रहे।


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