संविधान की हत्या के पचास वर्ष-1
एक संकट का बीज – आपातकाल की पृष्ठभूमि
वह समय आज की युवा पीढ़ी के लिए केवल इतिहास की किताबों का हिस्सा है, लेकिन जिन्होंने 1970 के दशक का भारत देखा है, उनके लिए वह दौर एक खौफनाक सच्चाई है – एक ऐसा समय जब लोकतंत्र की सांसें घुटने लगी थीं।
“गरीबी हटाओ” और देश की दुर्दशा
1971 में जब इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर सत्ता हासिल की, तो लोगों को उम्मीद थी कि अब हालात बदलेंगे। लेकिन हुआ इसके उलट। देश चारों ओर से समस्याओं से घिरा था। भ्रष्टाचार हावी था, महंगाई आसमान छू रही थी, बेरोजगारी विकराल हो चुकी थी, और विदेशी मुद्रा भंडार केवल 1.3 बिलियन डॉलर पर सिमट गया था।
भारत को 'गरीब देश' माना जाता था, और सच्चाई यही थी। 1975 में हमारी विकास दर केवल 1.2% थी। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था 15वें स्थान पर थी। आधे से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे थे। युवाओं को रोजगार नहीं था, उद्योग ठप पड़े थे, और सरकार दिशाहीन लग रही थी।
भ्रष्टाचार की अंधी गली में सत्ता
देशभर में कांग्रेस का राज था, लेकिन यह राज अधिकतर घोटालों से रंगा हुआ था। दिल्ली की स्टेट बैंक शाखा से 1971 में रुस्तम नगरवाला ने इंदिरा गांधी की नकल कर फोन पर आदेश दिया और 60 लाख रुपये नकद निकलवा लिए। वह पकड़ा गया, लेकिन न तो पैसे मिले, न ही सच्चाई सामने आई – क्योंकि कुछ ही समय में नगरवाला जेल में रहस्यमय मौत का शिकार हो गया।
इसके बाद आया तुलमोहन राम घोटाला। कांग्रेस सांसद तुलमोहन राम पर आयात-निर्यात लाइसेंस में घोटाले का आरोप लगा। यह वही तुलमोहन राम था, जिसे रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा का शिष्य माना जाता था। और जैसे ही मामला उछला, 3 जनवरी 1975 को ललित नारायण मिश्रा की हत्यात्मक बम विस्फोट में मृत्यु हो गई।
इस तरह कांग्रेस की भ्रष्ट छवि अब खुलकर सामने आने लगी थी। जनता का आक्रोश उबाल पर था।
गुजरात से उठा जनआक्रोश
इस आक्रोश की पहली चिंगारी गुजरात से उठी – छात्रों ने 'नवनिर्माण आंदोलन' शुरू किया। उनका नारा था – "चिमन चोर हटाओ", क्योंकि वे चिमनभाई पटेल की भ्रष्ट सरकार से आजिज आ चुके थे। जनता का समर्थन मिलने पर मोरारजी देसाई अनशन पर बैठे और अंततः इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा। गुजरात विधानसभा भंग हुई, चुनाव हुए और जनता मोर्चा की सरकार बनी।
गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में से 86 पर जनता मोर्चा ने जीत दर्ज की। आठ निर्दलीयों ने उन्हें समर्थन दिया और बाबूभाई पटेल मुख्यमंत्री बने।
बिहार में लोकनायक की हुंकार
गुजरात की सफलता से उत्साहित होकर आंदोलन की लहर बिहार पहुँची। वहाँ छात्रों के आग्रह पर जयप्रकाश नारायण ने नेतृत्व संभाला और देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे देश में फैलने लगा। “लोकनायक” की उपाधि से सम्मानित जेपी का कद तेजी से बढ़ता जा रहा था।
12 जून 1975 – एक ऐतिहासिक फैसला
12 जून को वह धमाका हुआ जिसने सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचा दिया।
राज नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली चुनाव में भ्रष्ट तरीकों का आरोप लगाते हुए मुकदमा किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव शून्य घोषित कर दिया और उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराया।
यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का पहला मौका था जब एक मौजूदा प्रधानमंत्री को चुनावी भ्रष्टाचार के कारण अयोग्य ठहराया गया हो। देशभर में तूफान खड़ा हो गया। लोग सड़कों पर उतर आए – केवल विपक्ष ही नहीं, सामान्य जनता भी इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने लगी।
इस्तीफे का नहीं, साजिश का मूड
लेकिन प्रधानमंत्री निवास पर इस्तीफे की कोई चर्चा नहीं थी। वहाँ रणनीति कुछ और बन रही थी। संजय गांधी और उनके सहयोगी – आर.के. धवन, बंसीलाल, देवकांत बरुआ – मिलकर यह तय कर चुके थे कि इंदिरा गांधी पद नहीं छोड़ेंगी, बल्कि विरोधियों पर कड़ा प्रहार किया जाएगा।
आर.के. धवन, जो कभी एक मामूली क्लर्क थे, अब इंदिरा गांधी के सचिव और विश्वासपात्र बन चुके थे। उन्हें संपूर्ण नियंत्रण दे दिया गया। इंदिरा गांधी के खिलाफ उभरते हर नेता, आंदोलन और विचार को कुचलने की योजना तैयार हो रही थी।
साजिश की जमीन तैयार थी
सच तो यह है कि आपातकाल की भूमिका पहले से ही तैयार हो चुकी थी। 1974 में जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में जबरदस्त रेलवे हड़ताल हुई थी – उसने सरकार को डरा दिया था। तभी से सरकार ने मन बना लिया था कि संघ, जेपी, जनसंघ, समाजवादी, और अन्य विपक्षी ताकतों पर शिकंजा कसना होगा।
30 जनवरी 1975 को अंग्रेज़ी अखबार ‘मदरलैंड’ ने खबर छापी थी कि सरकार जल्द ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध और जेपी की गिरफ्तारी की योजना बना रही है। उसी दिन इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह आशंका जताई।
इसका मतलब था – 12 जून के फैसले के पहले ही, आपातकाल की पटकथा लिखी जा चुकी थी।
1 सफदरजंग रोड से आपात योजना
प्रधानमंत्री निवास से राज्यों के कांग्रेस मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया गया – "जिन्हें गिरफ्तार करना है, उनकी सूची तैयार करो।" कांग्रेस पूरी ताकत से विपक्ष को कुचलने की तैयारी कर रही थी।
विपक्ष भी चुप नहीं बैठा था। जेपी के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बज चुका था। छात्रों, श्रमिकों, किसानों – हर वर्ग ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
अब बस इंतजार था – उस एक रात का, जब लोकतंत्र की सांसें रोकी जाएंगी…
(क्रमशः...)
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