दिल्ली चुनाव: कांग्रेस का असमंजस और अस्तित्व की लड़ाई

दिल्ली चुनाव: कांग्रेस का असमंजस और अस्तित्व की लड़ाई
           फोटो साभार गूगल

दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी अभियान शुरू कर दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) पूरी ताकत से मैदान में उतर चुकी हैं, जबकि कांग्रेस, जो कभी शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली पर 15 वर्षों तक शासन कर चुकी थी, आज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है।

कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व और संगठन एक अजीब असमंजस की स्थिति में है। पार्टी के असली मालिक माने जाने वाले राहुल गांधी विदेश में छुट्टियां मना रहे हैं, सोनिया गांधी स्वास्थ्य और उम्र के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हैं, और प्रियंका गांधी वाड्रा निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल जैसे वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के लौटने का इंतजार कर रहे हैं।

कांग्रेस का चुनावी अभियान: शुरुआत से ही कमजोर

जहां भाजपा और 'आप' ने अपने चुनावी अभियान तेज कर दिए हैं, वहीं कांग्रेस चुनावी मैदान में स्पष्ट रणनीति के अभाव में पिछड़ती नजर आ रही है। अरविंद केजरीवाल की 'आप' ने 'महिला सम्मान योजना' के तहत दिल्ली की महिलाओं को प्रतिमाह 2,100 रुपये देने का वादा किया है। इसके जवाब में कांग्रेस ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के माध्यम से 'प्यारी दीदी योजना' का ऐलान किया, जिसमें महिलाओं को 2,500 रुपये देने का वादा किया गया।

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हालांकि, इस योजना की घोषणा के साथ ही कांग्रेस पर सवाल उठने लगे। दिल्ली जैसे संवेदनशील और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में इस योजना की घोषणा एक ऐसे नेता ने की, जिसकी दिल्ली में राजनीतिक स्वीकार्यता नगण्य है। शिवकुमार का दिल्ली के मतदाताओं के साथ कोई जुड़ाव नहीं है, और उनकी छवि कांग्रेस के लिए चुनावी मजबूती के बजाय कमजोरी साबित हो सकती है।

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'इंडिया' गठबंधन में खटास का डर

कांग्रेस इस समय 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा है, जिसमें आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल भी शामिल हैं। लेकिन इस गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति कमजोर दिख रही है। राहुल गांधी को आप और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल पहले ही गंभीरता से नहीं लेते। राहुल को लेकर दोनों दलों की राय लगभग एक सी है – तृणमूल कांग्रेस उन्हें 'कार्टून' कहती है और आप उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाती रही है।

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह किस पर हमला करे। अगर कांग्रेस भाजपा पर हमला करती है, तो उसका सीधा फायदा अरविंद केजरीवाल की 'आप' को हो सकता है। वहीं, अगर कांग्रेस 'आप' पर निशाना साधती है, तो 'इंडिया' गठबंधन में खटास आ सकती है। यह असमंजस कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर कर रहा है।

मुस्लिम वोट बैंक की उलझन

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दिल्ली में कांग्रेस का एक समय पर मजबूत मुस्लिम वोट बैंक था। लेकिन आम आदमी पार्टी के उदय के बाद कांग्रेस का यह वोट बैंक कमजोर हो गया। मुस्लिम मतदाता अब या तो 'आप' के साथ हैं या फिर अन्य छोटे दलों की ओर रुख कर रहे हैं।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि वह किस रणनीति के साथ अपने पुराने वोट बैंक को वापस लाए। 'आप' पर हमला करने से मुस्लिम मतदाता नाराज हो सकते हैं, क्योंकि 'आप' ने खुद को भाजपा के विरोधी के रूप में स्थापित किया है। ऐसे में कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक खोने का जोखिम नहीं उठा सकती।

शीला दीक्षित युग की यादें और वर्तमान स्थिति

एक समय था जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने दिल्ली में 15 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन किया। वह दौर कांग्रेस के सुनहरे युग के रूप में जाना जाता है। शीला दीक्षित ने विकास और शहरीकरण को कांग्रेस की पहचान बना दिया था।

लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के पास न तो ऐसा कोई नेता है और न ही कोई स्पष्ट चुनावी एजेंडा। पार्टी संगठन पूरी तरह से नेतृत्वविहीन और दिशाहीन दिखाई देता है।

भाजपा और 'आप' के बीच मुकाबला

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इस बार के चुनाव में असली मुकाबला भाजपा और 'आप' के बीच है। भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन है। वहीं, 'आप' अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में स्थानीय मुद्दों और मुफ्त योजनाओं के सहारे मैदान में है।

कांग्रेस के पास न तो स्थानीय नेतृत्व है और न ही उसे अपने संगठन पर भरोसा है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष की स्थिति पार्टी के कमजोर संगठन को और उजागर करती है।

राहुल गांधी की भूमिका

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कांग्रेस के मौजूदा संकट का सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी की राजनीति को लेकर अस्पष्टता है। राहुल बार-बार विदेश यात्राओं पर चले जाते हैं और महत्वपूर्ण चुनावी समय पर अनुपस्थित रहते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से सवाल पूछने या निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं।

राहुल की गैरमौजूदगी में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य नेता भी कोई बड़ा निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। कांग्रेस की निर्णय प्रक्रिया पूरी तरह से राहुल गांधी पर निर्भर है, जो पार्टी को और कमजोर कर रही है।

कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण समय

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दिल्ली में चुनावी मैदान में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर है। पार्टी नेतृत्व और संगठन की अनिर्णय की स्थिति ने इसे हाशिये पर ला खड़ा किया है।

कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन और स्पष्ट रणनीति बनाने का है। उसे शीला दीक्षित जैसे नेताओं के समय से प्रेरणा लेनी होगी और स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करना होगा

अगर कांग्रेस समय रहते अपने संगठन को सक्रिय नहीं करती और स्पष्ट चुनावी रणनीति नहीं बनाती, तो यह चुनाव उसके लिए अस्तित्व की लड़ाई साबित हो सकता है।

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