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केजरीवाल विधेयक 2025: अब जेल से नहीं चलेगी सत्ता

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नया कानून और राजनीति का भविष्य Meta Description भारत सरकार ने 2025 में ऐतिहासिक कानून पास किया। ‘केजरीवाल विधेयक’ के नाम से चर्चित यह संशोधन अब अपराधियों को जेल से सत्ता चलाने से रोकेगा। जानिए इस कानून का असर, राजनीति और लोकतंत्र पर प्रभाव। केजरीवाल विधेयक 2025: राजनीति की नई सुबह भारत की राजनीति में 2025 ऐतिहासिक साल बन गया है। अब कोई भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जेल की सलाखों के पीछे रहते हुए सत्ता पर काबिज़ नहीं रह सकेगा। संविधान 130वां संशोधन: क्या बदलेगा? नए कानून के अनुसार – किसी भी जनप्रतिनिधि को यदि गंभीर अपराध में पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा होती है और वह 30 दिन से ज्यादा जेल में रहता है, तो उसका पद अपने आप खत्म हो जाएगा। अब से अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेता जेल से शासन नहीं चला पाएंगे। क्यों कहा जा रहा है इसे “केजरीवाल विधेयक”? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मामला इस कानून की पृष्ठभूमि बना। महीनों जेल में रहने के बावजूद वे पद पर बने रहे। जनता और मीडिया में सवाल उठे – “क्या जेल से सरकार चलेगी?” यही कारण है कि यह कानून लोकप्रिय ...

वाह! टोल टैक्स से मिली राहत, अब यात्रा होगी और भी मजेदार!

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वाह! टोल टैक्स से मिली राहत, अब यात्रा होगी और भी मजेदार! ​क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें हाईवे पर हर बार टोल प्लाजा पर रुकना और पैसे कटवाना पसंद नहीं? हर बार फास्टैग रिचार्ज करने की चिंता और टोल पर लगने वाली लंबी लाइन से परेशान हो चुके हैं? अगर हाँ, तो आपके लिए एक शानदार खबर है! ​भारत सरकार ने हम जैसे नियमित यात्रियों के लिए एक कमाल की योजना शुरू की है: फास्टैग-आधारित वार्षिक टोल पास! ​यह कोई सामान्य पास नहीं है; यह एक ऐसा पास है जो आपकी यात्रा को और भी आसान, तेज और किफायती बना देगा। ₹3,000 के मामूली शुल्क पर, आप एक साल या 200 टोल क्रॉसिंग के लिए टोल की चिंता से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे। ​कैसे काम करेगा यह जादुई पास? ​यह पास आपके मौजूदा फास्टैग के साथ ही काम करेगा। आपको कोई नया टैग खरीदने की जरूरत नहीं। जब आप टोल प्लाजा से गुजरेंगे, तो सिस्टम आपके फास्टैग को स्कैन करेगा और आपके 200 टोल क्रॉसिंग की लिमिट से एक ट्रिप कम कर देगा। कोई पैसे नहीं कटेंगे, कोई रुकना नहीं पड़ेगा। बस, अपनी गाड़ी सरपट दौड़ाइए! ​ये है फायदे का सौदा! ​सोचिए, अगर आप हर दिन हाई...

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न

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राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न भारत की आज़ादी का इतिहास केवल राजनीतिक घटनाओं और सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं है, बल्कि यह त्याग, आदर्श और संस्कृति के प्रति निष्ठा की गाथा भी है। इस गाथा में अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने पद और प्रतिष्ठा से अधिक राष्ट्र और समाज को प्राथमिकता दी। उन्हीं महान विभूतियों में एक थे  राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन । वे ऐसे नेता थे जिन्होंने आज़ादी मिलने के बाद भी उसका जश्न नहीं मनाया, क्योंकि उनके लिए बँटा हुआ भारत अधूरा था। जन्म और प्रारंभिक जीवन पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। बचपन से ही वे तेजस्वी और संवेदनशील प्रवृत्ति के थे। शिक्षा के दौरान ही उनमें देशप्रेम की भावना प्रबल हो गई। अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध विचार प्रकट करने पर उन्हें म्योर कॉलेज से निकाल दिया गया। 1906 में उन्होंने सर तेज बहादुर सप्रू के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की, लेकिन उनका मन केवल वकालत तक सीमित नहीं रहा। वे समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए लालायित थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योग...

वीर दुर्गादास राठौड़: स्वाभिमान की अंतिम सांस तक

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वीर दुर्गादास राठौड़: स्वाभिमान की अंतिम सांस तक मारवाड़ की तपती रेत पर सूरज डूब रहा था। लालिमा से भरा आसमान मानो आने वाले संघर्ष का संकेत दे रहा था। दूर कहीं घोड़े की टापों की आवाज गूंज रही थी — यह आवाज थी उस योद्धा की, जिसका नाम आने वाली सदियों तक स्वाभिमान और निष्ठा के प्रतीक के रूप में लिया जाएगा — वीर दुर्गादास राठौड़ । जन्म और बचपन 13 अगस्त 1638। मारवाड़ के प्रतिष्ठित मंत्री आसकरण राठौड़ के घर एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसकी आंखों में बचपन से ही वीरता की चमक थी। बाल दुर्गादास तलवार के वार और घोड़े की लगाम, दोनों में समान दक्षता दिखाते थे। उनकी दृष्टि दूर तक देख सकती थी — केवल रणभूमि ही नहीं, राजनीति के गहरे षड्यंत्र भी। औरंगज़ेब का षड्यंत्र महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद दिल्ली का बादशाह औरंगज़ेब अपने साम्राज्य को और फैलाने के लिए लालायित था। उसने नन्हें उत्तराधिकारी अजीत सिंह और उनकी माता जादम को दिल्ली बुलाकर कैद कर लिया। मंसूबा साफ था — अजीत सिंह को इस्लाम कबूल करवाना और मारवाड़ को मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बना लेना । लेकिन दिल्ली की गलियों में ए...

"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण"

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"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण" लो फिर, आज का अख़बार हाथ में लिया और मुझे लगा जैसे कोई व्यंग्य-देवता ने दो न्यूज़ एक ही दिन पर चिपका दी हों। पहली — कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का “धरना” कि भाई साहब, मतदाता सूचियों से फर्जी वोट मत हटाओ! दूसरी — सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि 8 हफ़्तों में NCR से सारे आवारा कुत्ते पकड़ो और डिटेंशन सेंटर में डालो। अब सोचिए, एक तरफ चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की सफाई करना चाहता है — मतलब जो फर्जी वोट, डुप्लिकेट वोट, बांग्लादेशी घुसपैठियों के नामों वाले वोट हैं, उन्हें काट देना। यह तो लोकतंत्र का स्वच्छता अभियान हुआ। लेकिन मज़ा देखिए, जिनके वोट बैंक में ऐसे फर्जी वोटों की मलाई है, वही धरने पर बैठ गए! जैसे मोहल्ले का वो दुकानदार, जो अपनी दुकान के सामने से नाला साफ होने पर चिल्लाए कि “अरे! इससे मेरा बिज़नेस डूब जाएगा!” और उधर कोर्ट कह रहा है — “दिल्ली में आवारा कुत्तों को पकड़ो, सबको डिटेंशन में रखो।” सुनने में तो अलग मामला है, पर गूढ़ार्थ एक ही है — जो बेकाबू, असली मालिक के बिना, कानून-कायदे से बाहर घूम रहे हैं, वो चाहे वोटर लिस...

11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..

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 11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..  दुनियाँ में ऐसा कोई देश नहीं जो कभी न परतंत्रता के अंधकार में न डूबा हो । उनमें अधिकांश का स्वरूप ही बदल गया । उन देशों की अपनी संस्कृति का आज कोई अता पता नहीं है । लेकिन दासत्व के लंबे अंधकार के बाद भी भारत की संस्कृति पुष्पित और पल्लवित हो रही है । तो यह ऐसे लाखों बलिदानियों के कारण है, जिन्हें सत्ता की कोई चाहत नहीं थी । उनका संघर्ष राष्ट्र, संस्कृति, स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए था । ऐसा ही बलिदान क्राँतिकारी खुदीराम बोस का था । जो सोलह वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़कर क्राँतिकारी बने और उन्नीस वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही फाँसी पर चढ़ गये ।  अमर बलिदानी क्रान्ति कारी खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के ग्राम बहुबैनी में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था । शिक्षा, संस्कार और स्वाभिमान का भाव उनकी पारिवारिक विरासत में था । माता लक्ष्मीप्रिया देवी की दिनचर्या धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन  से ओतप्रोत थी तो पिता त्रैलोक्यनाथ बोस संस्कृत के विद्व...

अमेरिका के 50% टैरिफ और भारत की अर्थव्यवस्था: चुनौतियाँ, अवसर और आगे का रास्ता

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अमेरिका के 50% टैरिफ और भारत की अर्थव्यवस्था: चुनौतियाँ, अवसर और आगे का रास्ता हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत के कुछ प्रमुख निर्यात उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगाने की खबर ने व्यापार जगत और नीति-निर्माताओं के बीच हलचल मचा दी है। यह फैसला "One World Outlook Report" के संदर्भ में चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें अमेरिका और अन्य देशों के बीच आर्थिक तनाव की आशंका जताई गई थी। सवाल यह है कि यह निर्णय भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों के भविष्य को किस दिशा में ले जाएगा और भारत के पास इस चुनौती का सामना करने के लिए क्या विकल्प हैं? भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों की मौजूदा तस्वीर भारत और अमेरिका के बीच पिछले दो दशकों में व्यापारिक संबंध काफी मजबूत हुए हैं। 2024 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार $191 बिलियन तक पहुंच गया। भारत अमेरिका को मुख्य रूप से टेक्सटाइल, ज्वेलरी, फार्मा, आईटी सेवाएं और ऑर्गेनिक केमिकल्स निर्यात करता है। अमेरिका से भारत क्रूड ऑयल, रक्षा उपकरण, उच्च तकनीकी मशीनरी और कृषि उत्पाद आयात करता है। टैरिफ बढ़ने का सीधा असर इन निर्यात क्षेत्रों, ...

श्रावणी उपाकर्म और रक्षा बंधन: परंपरा, पवित्रता और प्रेम की अनंत डोर

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श्रावणी उपाकर्म और रक्षा बंधन: परंपरा, पवित्रता और प्रेम की अनंत डोर बारिश की पहली बूँदें जब सूखी धरती पर गिरीं, तो मिट्टी की सौंधी खुशबू पूरे गाँव में फैल गई, मानो धरती अपनी प्यास बुझाकर गहरी साँस ले रही हो। आसमान में घने बादल थे, लेकिन उनके बीच से झाँकती सूरज की हल्की किरणें मंदिर के कलश पर सुनहरी आभा बिखेर रही थीं। चारों ओर चहल-पहल थी—कहीं यज्ञ की तैयारी, कहीं रंग-बिरंगी राखियों की सजावट। यह वही दिन था जब श्रावणी उपाकर्म और रक्षा बंधन का पावन संगम होता है। श्रावणी का तात्पर्य केवल नयी पुस्तक खोलने से नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की शुद्धि से है। “स्वाध्यायान्मा प्रमदः” का उच्चारण बार-बार होता रहा—जीवन में पढ़ाई और प्रवचन से प्रमाद नहीं करना, यही निर्देश घर-घर गूंज रहा था। सुबह-सवेरे गुरु के साथ हेमाद्रि स्नान का संकल्प लिया गया; गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गौमूत्र से स्नान कर वह शुद्धि योग आरंभ हुई, फिर ऋषि-पूजन, सूर्योपस्थान और यज्ञोपवीत पूजन से पुराना यज्ञोपवीत उतारकर नया धारण किया गया। बच्चों के चेहरे पर वह गर्व था जो दूसरा जन्म पाने पर महसूस होता है—यज्ञोपवीत सिर्फ धाग...

रक्षाबंधन: सामाजिक समरसता और समाज रक्षा के संकल्प का महापर्व

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रक्षाबंधन: सामाजिक समरसता और समाज रक्षा के संकल्प का महापर्व रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के स्नेह का त्योहार नहीं, अपितु सामाजिक समरसता और समाज की रक्षा के संकल्प का उत्सव है। यह भारतीय संस्कृति में “रक्षा” के भाव को व्यापक रूप में प्रस्तुत करने वाला ऐसा पर्व है, जो केवल व्यक्तिगत रिश्तों तक सीमित न होकर पूरे समाज को जोड़ने, सहभाव का संदेश देने और धर्म-संरक्षण के महान उद्देश्य से ओतप्रोत है। रक्षा का अर्थ व्यापक है "रक्षा" का अर्थ मात्र बाह्य संकट से सुरक्षा नहीं, बल्कि मूल्य, परंपरा, आस्था, संस्कृति और समाज की समग्र चेतना की रक्षा है। रक्षाबंधन इस रक्षा को प्रतीकात्मक रूप से एक सूत्र के माध्यम से सम्पूर्ण समाज से जोड़ता है। राखी वह सूत्र है जो हमें एक-दूसरे के दुःख-सुख का सहभागी बनाता है। यह बंधन दायित्वबोध का प्रतीक है – सामर्थ्यवान अपने से निर्बल के प्रति रक्षक की भूमिका निभाएगा। समाज का सशक्त वर्ग ले संकल्प रक्षाबंधन के मूल भाव में यह दर्शन निहित है कि समाज का सशक्त वर्ग—चाहे वह भौतिक, बौद्धिक, या नैतिक दृष्टि से समर्थ हो—अपने सामर्थ्य का उपयोग वंचितों, उपेक्...

खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात

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खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात कहते हैं, “जिसका पेट भरा हो, वही देश का नाम रोशन कर सकता है।” भारत में यह काम सदियों से किसान कर रहा है। धरती मां को सींचकर, सूरज की तपन और बारिश की बूंदें अपने माथे पर लेकर, किसान ने ही देश को भूखा नहीं सोने दिया। 7 अगस्त 2025 को दिल्ली में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी सम्मेलन हुआ। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी साफ बात कही – “किसान, पशुपालक और मछुआरों के साथ कोई समझौता नहीं होगा।” उन्होंने जैविक खेती, डेयरी, मत्स्य पालन और कुटीर उद्योग को नई ताकत देने के फैसले सुनाए। किसानों ने क्यों किया स्वागत भारतीय किसान संघ, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित संगठन है, ने कहा – “ये फैसले सिर्फ कागज़ी नहीं, खेत-खलिहान में असर दिखाएंगे।” सोचिए, अगर गांव में दूध का उत्पादन बढ़े, तो सिर्फ शहर को ही नहीं मिलेगा, गांव की माली हालत भी सुधरेगी। अगर तालाब में मछली पालन बढ़े, तो खेत के किनारे से ही आमदनी का नया रास्ता खुलेगा। जैविक खेती – मिट्टी की ताकत बनी रहेगी, पानी साफ रहेगा, और खाने में ज़हर नहीं मिलेगा। ...

"दबाव की राजनीति ध्वस्त: भारत ने राहुल से ट्रंप तक सबको दिया करारा जवाब"

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भारत की दृढ़ता: दबाव की राजनीति के सामने अडिग संकल्प मनमोहन पुरोहित की कलम से भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला पुराना है, लेकिन हाल के दिनों में यह एक नए रंग में सामने आया है—दबाव की राजनीति। कर्नाटक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो “एटम बम” कहकर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगाए, वह चुनाव आयोग की चिट्ठी के बाद कुछ ही मिनटों में “फुस्स” हो गया। वहीं, वैश्विक मंच पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत पर शुल्क बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों घटनाओं में एक समानता साफ दिखती है— दबाव की रणनीति , परंतु भारत की प्रतिक्रिया में भी एक समानता है— दृढ़ता और आत्मविश्वास । कर्नाटक का ‘एटम बम’ और चुनाव आयोग की सख्ती कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा की थी कि राहुल गांधी 5 अगस्त को वोट चोरी का सबूत देंगे। यह बम 5 को नहीं, 7 अगस्त को फोड़ा गया, लेकिन चुनाव आयोग ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी को नोटिस भेजा और उनसे शपथपत्र में सबूत मांगे। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा—यदि आपके आरोप सही हैं, तो उन्हें लिखित रूप...

उत्तरकाशी: भोलेनाथ का तांडव या विकास की त्रासदी?

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भोलेनाथ का तांडव या विकास की त्रासदी? उत्तराखंड में आपदा बनाम अंधा विकास - मनमोहन पुरोहित (लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं) उत्तरकाशी की त्रासदी धरती पर देवों की भूमि कही जाने वाली उत्तराखंड एक बार फिर प्रलय की चपेट में है। उत्तरकाशी जिले के धराली और खीर गंगा घाटी में बादल फटने और तेलगाड़ नाले में अचानक आई बाढ़ ने जो तबाही मचाई, वह दिल दहला देने वाली है। धराली गांव में 50 से अधिक घर, 30 होटल और 30 होमस्टे मलबे में तब्दील हो गए। 10 मीटर चौड़ी खीरगंगा नदी का प्रवाह 39 मीटर तक फैल गया और रास्ते में जो भी आया, उसे निगलती चली गई। प्रशासन भले ही केवल 4 मौतों और 100 से अधिक लोगों के लापता होने की बात कह रहा हो, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे कहीं अधिक भयावह प्रतीत होती है। क्या यह भोलेनाथ का क्रोध है? 2013 में केदारनाथ में आई प्रलयंकारी आपदा से लेकर आज तक उत्तराखंड एक के बाद एक आपदाओं से जूझ रहा है। यह मानना आसान है कि यह भोलेनाथ का प्रतीकात्मक "तांडव" है, लेकिन असल में यह हमारे विकास मॉडल की असफलता और प्रकृति से छेड़छाड़ का प्रत्यक्ष परिणाम है। राज्य...

मालेगांव केस: न्याय की प्रतीक्षा से विजयी सत्य तक

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✍️ मनमोहन पुरोहित 🔷 प्रस्तावना: 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीखू चौक पर हुए बम विस्फोट ने न केवल निर्दोष नागरिकों की जान ली, बल्कि देश की सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका, राजनीतिक स्वार्थों और मीडिया की विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इस घटना के 16 वर्षों बाद 2024 में NIA विशेष अदालत ने इस मामले में सभी आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। यह निर्णय न केवल न्याय की पुनर्स्थापना है, बल्कि उन वर्षों की पीड़ा और सामाजिक लांछनों का जवाब भी, जो निर्दोषों पर थोपा गया। ⚖️ न्यायालय का निर्णय: आरोपों की पुष्टि नहीं विशेष NIA न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा। जिस बाइक को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से जोड़ा गया, उसकी नंबर प्लेट जाली पाई गई और इंजन-चेचिस नंबरों को मिटा दिया गया था। कर्नल प्रसाद पुरोहित पर कश्मीर से आरडीएक्स लाकर बम बनाने का आरोप लगाया गया, लेकिन इसका कोई भौतिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। सुधाकर चतुर्वेदी के घर विस्फोटक मिलने की बात की गई, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि उसे वहाँ किसने रखा। साक्ष्य के अभाव ने अदालत...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: हिन्दू समाज और राष्ट्र जागरण का महा अभियान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: हिन्दू समाज और राष्ट्र जागरण का महा अभियान परिचय विजयदशमी 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे करेगा। यह एक ऐसा संगठन है, जो न केवल समय की कसौटी पर खरा उतरा, बल्कि अपने मूल लक्ष्य और कार्यशैली को अक्षुण्ण रखते हुए विश्व का सबसे विशाल संगठन बन गया। मनमोहन पुरोहित के शब्दों में, “हिन्दू समाज जीवन की विषमताओं के बीच राष्ट्र जागरण का महा अभियान” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की कहानी है। यह ब्लॉग संघ के गठन की पृष्ठभूमि, इसके उद्देश्यों, और उस समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है, जिन्होंने इस संगठन को जन्म दिया। संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि: एक ऐतिहासिक संदर्भ संसार में कोई भी विचार, व्यक्ति, या संगठन अकस्मात जन्म नहीं लेता। प्रकृति की लंबी प्रक्रिया और सामाजिक परिस्थितियाँ इसके लिए आधार तैयार करती हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन भी ऐसी ही एक प्रक्रिया का परिणाम था। 1925 में, जब संघ की स्थापना हुई, भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा था। अंग्रेजी शासन की कुटिल नीतियाँ, हिन्दू समाज में फैला भय और विखराव,...

स्वदेशी भारत के आत्मसम्मान का जागरण

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  स्वदेशी भारत के आत्मसम्मान का जागरण प्रधानमंत्री मोदी के काशी आह्वान से राष्ट्रहित की पुकार आओ संकल्प लें घर में जो भी नया आए वह स्वदेशी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी अगस्त दो हजार पच्चीस काशी की धरती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से जो आह्वान किया वह केवल एक आर्थिक सुझाव नहीं बल्कि भारत की आत्मा को जगाने वाला राष्ट्रमंत्र है मोदी जी ने स्पष्ट कहा कि हम संकल्प लें कि हमारे घर में जो कुछ भी नया सामान आएगा वह स्वदेशी ही होगा और यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं हर नागरिक की भी है यह वक्तव्य सिर्फ बाजार का नहीं यह भारत के स्वत्व का उद्घोष है यह पुकार है आत्मनिर्भरता के उस संकल्प की जो हमारे राष्ट्रनिर्माण की आधारशिला है। स्वदेशी कोई विकल्प नहीं यह भारत का संस्कार है स्वदेशी केवल भारत में बना हुआ उत्पाद नहीं है यह एक विचार है एक दृष्टि है एक संस्कार है जब हम खादी पहनते हैं जब हम हाथ से बनी वस्तुएं खरीदते हैं जब हम भारतीय ऐप और तकनीक का उपयोग करते हैं तो हम न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि अपनी संस्कृति को भी सशक्त बना रहे होते हैं मोदी जी...

संस्कृत: आत्मनिर्भर भारत के 'स्व' की संवाहिका

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🌸 संस्कृत: आत्मनिर्भर भारत के 'स्व' की संवाहिका 🌸 ✍️ लेखक: मनमोहन पुरोहित "संस्कृतं नाम दैवी वाक्" – यह देववाणी केवल एक भाषा नहीं, अपितु भारत की आत्मा की संवाहिका है। 1 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने नागपुर के निकट रामटेक स्थित कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल के उद्घाटन अवसर पर जो उद्बोधन दिया, वह न केवल भाषा चेतना का आह्वान था, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की आत्मा की पुनर्स्थापना का मंत्र भी था। 🇮🇳 आत्मनिर्भर भारत और 'स्व' की पहचान डॉ. भागवत जी ने स्पष्ट कहा – "यदि हमें आत्मनिर्भर बनना है, तो हमें अपने स्व को समझना होगा।" यह 'स्व' क्या है? यह केवल आर्थिक या सैन्य स्वावलंबन नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक, वैचारिक, भाषिक और आध्यात्मिक अस्मिता है। यह भारत का 'स्वभाव', 'स्वधर्म' और 'स्वत्व' है, जिसकी नींव संस्कृत जैसी भाषा और विचारधारा पर टिकी हुई है। 🪔 संस्कृत: भारत की आत्मा की भाषा संस्कृत भारत की न केवल...

थार की अपणायत: चेतावनी और संकल्प

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लेखक: मन मोहन पुरोहित दिनांक: 20 जुलाई 2025 थार के साथ छल क्यों? यह झंडा थार के साथ छल है, थार के इतिहास और संस्कृति के साथ धोखा है। थार का भूगोल पाकिस्तान तक फैला है, परंतु क्या वहां हमारी अपणायत है? नहीं! वहां है तो केवल कट्टरपन, छुरियां, कटारे और पीठ में घोंपे खंजर। 'थार की अपणायत' —यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति और हिंदू स्वभाव की गहरी पैदाइश है। जब तक हिंदू समाज यहाँ बहुसंख्यक और प्रभावशाली है, यह अपणायत जीवित रहेगी। कश्मीर से सीख कश्मीर में भी कभी ‘कश्मीरियत’ नामक सांस्कृतिक आत्मा थी। लेकिन चालाकी और योजनाबद्ध तरीके से कश्मीरी हिंदुओं को उसी ‘कश्मीरियत’ से बाहर कर दिया गया। वह ‘कश्मीरियत’, जो ज्ञान, अनुसंधान और तर्क की आत्मा थी, धीरे-धीरे अरबी सांस्कृतिक प्रतीकों के दबाव में टूट गई। परिणाम—आज वहाँ आतंक, हत्याएँ और निर्दोषों का खून है, पर ‘कश्मीरियत’ नहीं है। आज वही षड्यंत्र थार में दोहराने की कोशिश हो रही है। संस्कृति का स्वभाव संस्कृति मनुष्य के रक्त की तरह है। यदि उसमें किसी दूसरे समूह का आक्रामक और असंगत विचार जबरन मिलाया जाए, ...