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आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी संकल्प और वैश्विक चुनौतियों का जवाब

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आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी संकल्प और वैश्विक चुनौतियों का जवाब "देश उठेगा अपने पैरों निज गौरव के     भान से। स्नेह भरा विश्वास जगाकर जीयें सुख सम्मान से।।" —  नंदलाल 'बाबा जी'  भारत आज जिस मोड़ पर खड़ा है, वहाँ चुनौतियाँ भी हैं और अवसर भी। ट्रंप प्रशासन के 60% आयात शुल्क और H1B1 वीज़ा प्रतिबंधों जैसी वैश्विक परिस्थितियों ने भारत को झकझोरा, लेकिन यह झटका भारत के लिए आत्मविश्वास की नई यात्रा की शुरुआत बना। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान और इसके सहायक मिशन—मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI)—ने इन चुनौतियों को अवसर में बदल दिया। यह कहानी केवल योजनाओं और आंकड़ों की नहीं, बल्कि उस स्वदेशी गौरव की है, जो हमें अपने पैरों पर खड़ा होना और आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ना सिखाती है। स्वदेशी गौरव की नींव बाबा जी के इसी गीत की पंक्ति कितनी सत्य है। “परावलम्बी देश जगत में,  कभी न यश पा सकता है”  यह आत्मनिर्भर भारत का सार है। 2020 में कोविड संकट के बीच इस अभियान की शुरुआत हुई और इसका लक्ष्य आर्थिक, तकनीकी और स...

"शिक्षा नीति : वर्तमान और भविष्य की आधारशिला"

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✍️ "शिक्षा नीति : वर्तमान और भविष्य की आधारशिला"   भारत आज ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ वह "विकसित भारत @2047" की संकल्पना को साकार करने की ओर तेजी से अग्रसर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने "आत्मनिर्भर भारत" और "विकसित भारत" का जो स्वप्न देखा है, उसकी बुनियाद शिक्षा है। महात्मा गांधी ने कहा था, "शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण है।" यह विचार भारत के संपूर्ण विकास के मूल में है। भारतीय शिक्षा : एक गौरवशाली परंपरा भारत की प्राचीन शिक्षा परंपरा विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध परंपराओं में से एक रही है। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी और उज्जयिनी जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों ने भारत को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाया। गुरुकुल परंपरा में विद्यार्थियों को न केवल शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता था, बल्कि जीवन मूल्यों, प्रकृति के प्रति प्रेम, आत्मनिर्भरता और चरित्र निर्माण की शिक्षा भी दी जाती थी। आचार्य चाणक्य का कथन है— "शिक्षा सबसे बड़ा धन है, जिसे कोई चुरा नहीं सकता।" यही भारतीय दर्शन...

राहुल गांधी की चुनावी 'बमबारी' और जेन-Z पर भड़कावे का खेल

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राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति इन दिनों चुनावी प्रक्रिया पर हमले करने की लग रही है, लेकिन उनके हर दावे की हकीकत जल्दी ही सामने आ जाती है। उनकी टीम द्वारा दिए जाने वाले अधपके सबूतों की वजह से ये आरोप जनता के सामने कुछ मिनट भी टिक नहीं पाते। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही इनकी पोल खुल जाती है, और जब वे फंसते हैं, तो राष्ट्रगान गवाकर बात टालने की कोशिश करते हैं – वो भी अधूरा। अब तक उन्होंने तीन बड़े 'धमाके' करने की कोशिश की है, लेकिन हर बार ये फुस्स साबित हुए। सबसे पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने वोटरों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी और आखिरी घंटों में वोटिंग बढ़ने का हल्ला मचाया। लेकिन ये तो कोई नई बात नहीं – पूरे देश में शाम के समय वोटिंग में तेजी आना आम है, और इसके आंकड़े सार्वजनिक हैं। महाराष्ट्र के उनके सभी आरोपों को हिंदुस्तान टाइम्स ने गहन जांच के बाद गलत ठहराया। फिर कर्नाटक की एक विधानसभा सीट पर उन्होंने 'परमाणु बम' जैसा दावा किया, जो बाद में सुतली बम निकला। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाया, लेकिन न तो चुनाव आयोग, डीएम या सीईओ के पास कोई औपचारि...

नेपाल की आग भारत की चिंता

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नेपाल में हाल की अराजकता ने न केवल काठमांडू की सड़कों को, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता को हिला दिया है। एक मामूली सोशल मीडिया प्रतिबंध से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन "Gen Zee" (डिजिटल पीढ़ी) के नेतृत्व में एक बड़े आक्रोश में बदल गया, जिसने सत्ता के हर स्तंभ को निशाना बनाया। ऐसा माना जा रहा है। सच्चाई कुछ और है। दरअसल नेपाल में डीप स्टेट के दंगाई गुर्गों की गुंडागर्दी हुई है, इसको मीडिया द्वारा जेन-जी की क्रांति कहना बंद होना चाहिए । वर्तमान की भयावहता और अराजकता इस आंदोलन ने सबसे पहले कार्यपालिका पर हमला किया। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा, और पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के आवास पर भीड़ ने हमला किया। गृह और वित्त मंत्रियों सहित कई कैबिनेट सदस्यों को सुरक्षित ठिकानों की तलाश में भागना पड़ा, जिससे सरकार का केंद्र बिखर गया। इसके बाद, लोकतंत्र के अन्य स्तंभ भी सुरक्षित नहीं रहे। संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक इमारतों में आग लगा दी गई। नेपाल की प्रशासनिक धड़कन माने जाने वाले सिंग्हा दरबार को ध्वस्त कर दिया गया। यह केवल सरकारी इमारतों का विध्व...

आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि

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आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि हाल ही में, दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में, सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने RSS की भूमिका, इतिहास और उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने 200 से अधिक सवालों के धैर्यपूर्वक और संतोषजनक जवाब भी दिए। यह प्रश्न मन में उठता है कि, जब RSS पिछले कई दशकों से भारत के हर क्षेत्र में सक्रिय है—चाहे राजनीतिक हो या श्रमिक, कृषि हो या शिक्षा, प्रशासन हो या संस्कृति—फिर भी उसे अपने 100 साल पूरे होने के बाद अपने विचारों को साफ करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? वास्तव में, जो संघ अब तक कहता-करता रहा है और जो देश-विदेश में उसकी छवि है, उसमें भारी अंतर है। संक्षेप में कहें, तो संघ आज भी ‘छवि-अभाव’ और ‘नकारात्मक धारणा’ का शिकार है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं। 1. अद्वितीय संगठन और औपनिवेशिक मानसिकता पहला कारण यह है कि संघ एक अद्वितीय संगठन है, जिसका समकक्ष पश्चिमी सभ्यता में कहीं नहीं मिलता। भारतीय समाज का एक वर्ग जो आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है, व...

हल्दी घाटी युद्ध विजय@450 वर्ष : अडिग प्रतिज्ञा, अजेय प्रताप

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हल्दी घाटी युद्ध में अकबर की सेना संख्या में महाराणा प्रताप की सेना से चार गुना अधिक थी। मुगल सेना में मान सिंह सहित कई सेनापति थे, फिर भी वे महाराणा प्रताप के आगे टिक न सके और मैदान छोड़कर भाग गए। आज से 450 वर्ष पूर्व 18 जून, 1576 को हल्दी घाटी में अकबर की साम्राज्यवादी सेना और महाराणा प्रताप का आमना-सामना हुआ था। इस युद्ध में मुगल सेना बुरी तरह पराजित हुई। युद्ध में प्रताप और मानसिंह का भी आमना-सामना हुआ था, पर प्रताप के भाले के वार से वह बच गया। इसके बाद मान सिंह व मुगल सेना भाग खड़ी हुई और गोगुंदा के किले में छिप गई। इस पराजय पर क्रोधित अकबर ने अपने प्रधान सेनापति मानसिंह व उसके सहयोगी आसफ खान की ड्योढ़ी माफ कर 6 माह के लिए दरबार से निष्कासित कर दिया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि अकबर की सेना में मान सिंह के अलावा कई सेनापति थे। घोड़े सहित बहलोल खां के दो फाड़ हल्दीघाटी युद्ध से पहले अकबर ने महाराणा प्रताप को अपनी अधीनता स्वीकार कराने के लिए कूटनीतिक सहित सारे प्रयास किए। महाराणा प्रताप का शत्रु बोध स्पष्ट था। वे कभी अकबर के साथ अपने आत्मसम्मान का समझौता नहीं कर सकते थे। इ...

मेजर ध्यानचंद, हॉकी के जादूगर

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29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे मेजर ध्यानचंद का हॉकी के खेल में पूरी दुनिया में कोई सानी नहीं था, उन्होंने लगभग 22 वर्ष तक भारत के लिए हॉकी खेली और इस दौरान 400 से अधिक अंतरर्राष्ट्रीय गोल दागे। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 29 अगस्त का दिवस भारत के लिए बहुत विशेष है। आज हमारा देश राष्ट्रीय खेल दिवस मना रहा है। इस दिवस को देश के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पहली बार राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त 2012 को मनाया गया था और तब से हर वर्ष इसे बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था मानो गेंद उनकी स्टिक से चिपक जाती थी। ध्यानचंद की उपलब्धियों ने अंग्रेजी राज के दौरान भी भारतीय के खेल के इतिहास को नए शिखर पर पहुंचाया था। उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1928 में एमस्टरडम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 में बर्लिन में भारत को हॉकी के खेल में अपने दम पर स्वर्ण पदक दिलाया था। म...

संघ के बारे में बनाए गए नैरेटिव को तोड़ने का प्रयास

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संघ के बारे में बनाए गए नैरेटिव को तोड़ने का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस अवसर पर संघ ने एक संगठित प्रयास शुरू किया है, ताकि उसके बारे में दशकों से गढ़े गए झूठे नैरेटिव और भ्रांतियों को दूर किया जा सके। लंबे समय से संघ पर दो प्रमुख आरोप लगाए जाते रहे हैं—पहला, कि संघ मुस्लिम विरोधी संगठन है; और दूसरा, कि स्वतंत्रता संग्राम के समय संघ ने कोई भूमिका नहीं निभाई और ब्रिटिश सरकार के साथ खड़ा रहा। संघ ने इन दोनों आरोपों को दस्तावेज़ी तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर चुनौती देने का संकल्प लिया है। वास्तव में यह पहल पहली बार नहीं हुई है। सात वर्ष पूर्व 2018 में भी संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने दिल्ली में तीन दिवसीय व्याख्यानों की शृंखला में इसी उद्देश्य से संघ की विचारधारा और कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला था। उस समय भी मकसद यही था कि समाज को भ्रमित करने वाले झूठे प्रचार का जवाब दिया जाए। अब शताब्दी वर्ष में इस प्रयास को और व्यापक स्वरूप दिया गया है। देश के चार प्रमुख महानगरों में तीन-तीन दिवसीय व्याख्यानों का आयोजन किया जा रहा है,...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा – नए क्षितिज की ओर

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा – नए क्षितिज की ओर पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी का प्रथम दिवस का व्याख्यान (26 अगस्त 2025) “संघ के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। लेकिन जो कमी है, वह है प्रामाणिक जानकारी। चर्चा अनुमान पर नहीं, तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए।” – डॉ. मोहन भागवत संघ का उद्देश्य: भारत से विश्व तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना का मूल उद्देश्य था – भारत की सेवा करना और उसे विश्व के लिए मार्गदर्शक बनाना । डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की प्रासंगिकता और सफलता इसी में है कि वह भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करे। डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण और त्याग संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। बाल्यकाल से ही उनमें राष्ट्रभाव की ज्वाला थी। कोलकाता में मेडिकल शिक्षा के दौरान वे अनुशीलन समिति जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े और उनका कोड नाम “कोकेन” था। उनका मानना था कि भारत को ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो चरित्रवान हो, समाज से गहराई से जुड़ा हो, जनता में विश्वास रखता हो और राष्ट्र के लिए सर्वस्व अर्पित कर सके। ...

व्याख्यानमाला : 100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज | RSS Shatabdi Year

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व्याख्यानमाला : 100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज | RSS Shatabdi Year  सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का उद्घाटन व्याख्यान (विज्ञान भवन, नई दिल्ली – 26 अगस्त 2025) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला "100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज" का शुभारंभ सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधन से हुआ। यह आयोजन केवल स्मृति का अवसर नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक यात्रा और भविष्य की दिशा का गहन मंथन भी सिद्ध हुआ। भारत का योगदान और RSS का उद्देश्य अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा – “प्रत्येक राष्ट्र का विश्व के प्रति योगदान होता है, भारत का भी अपना योगदान है। इसलिए भारत को बड़ा होना है, यही संघ का प्रयोजन है।” RSS का उद्देश्य केवल संगठन निर्माण नहीं, बल्कि भारत को उसकी मूल सांस्कृतिक चेतना के आधार पर विश्व में अग्रगण्य स्थान दिलाना है। ‘हिंदू’ शब्द का वास्तविक अर्थ डॉ. भागवत ने ‘हिंदू’ शब्द का गहरा अर्थ समझाते हुए कहा कि यह किसी जाति, भाषा या संप्रदाय का नाम नहीं, बल...

केजरीवाल विधेयक 2025: अब जेल से नहीं चलेगी सत्ता

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नया कानून और राजनीति का भविष्य Meta Description भारत सरकार ने 2025 में ऐतिहासिक कानून पास किया। ‘केजरीवाल विधेयक’ के नाम से चर्चित यह संशोधन अब अपराधियों को जेल से सत्ता चलाने से रोकेगा। जानिए इस कानून का असर, राजनीति और लोकतंत्र पर प्रभाव। केजरीवाल विधेयक 2025: राजनीति की नई सुबह भारत की राजनीति में 2025 ऐतिहासिक साल बन गया है। अब कोई भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जेल की सलाखों के पीछे रहते हुए सत्ता पर काबिज़ नहीं रह सकेगा। संविधान 130वां संशोधन: क्या बदलेगा? नए कानून के अनुसार – किसी भी जनप्रतिनिधि को यदि गंभीर अपराध में पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा होती है और वह 30 दिन से ज्यादा जेल में रहता है, तो उसका पद अपने आप खत्म हो जाएगा। अब से अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेता जेल से शासन नहीं चला पाएंगे। क्यों कहा जा रहा है इसे “केजरीवाल विधेयक”? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मामला इस कानून की पृष्ठभूमि बना। महीनों जेल में रहने के बावजूद वे पद पर बने रहे। जनता और मीडिया में सवाल उठे – “क्या जेल से सरकार चलेगी?” यही कारण है कि यह कानून लोकप्रिय ...

वाह! टोल टैक्स से मिली राहत, अब यात्रा होगी और भी मजेदार!

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वाह! टोल टैक्स से मिली राहत, अब यात्रा होगी और भी मजेदार! ​क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें हाईवे पर हर बार टोल प्लाजा पर रुकना और पैसे कटवाना पसंद नहीं? हर बार फास्टैग रिचार्ज करने की चिंता और टोल पर लगने वाली लंबी लाइन से परेशान हो चुके हैं? अगर हाँ, तो आपके लिए एक शानदार खबर है! ​भारत सरकार ने हम जैसे नियमित यात्रियों के लिए एक कमाल की योजना शुरू की है: फास्टैग-आधारित वार्षिक टोल पास! ​यह कोई सामान्य पास नहीं है; यह एक ऐसा पास है जो आपकी यात्रा को और भी आसान, तेज और किफायती बना देगा। ₹3,000 के मामूली शुल्क पर, आप एक साल या 200 टोल क्रॉसिंग के लिए टोल की चिंता से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे। ​कैसे काम करेगा यह जादुई पास? ​यह पास आपके मौजूदा फास्टैग के साथ ही काम करेगा। आपको कोई नया टैग खरीदने की जरूरत नहीं। जब आप टोल प्लाजा से गुजरेंगे, तो सिस्टम आपके फास्टैग को स्कैन करेगा और आपके 200 टोल क्रॉसिंग की लिमिट से एक ट्रिप कम कर देगा। कोई पैसे नहीं कटेंगे, कोई रुकना नहीं पड़ेगा। बस, अपनी गाड़ी सरपट दौड़ाइए! ​ये है फायदे का सौदा! ​सोचिए, अगर आप हर दिन हाई...

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न

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राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न भारत की आज़ादी का इतिहास केवल राजनीतिक घटनाओं और सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं है, बल्कि यह त्याग, आदर्श और संस्कृति के प्रति निष्ठा की गाथा भी है। इस गाथा में अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने पद और प्रतिष्ठा से अधिक राष्ट्र और समाज को प्राथमिकता दी। उन्हीं महान विभूतियों में एक थे  राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन । वे ऐसे नेता थे जिन्होंने आज़ादी मिलने के बाद भी उसका जश्न नहीं मनाया, क्योंकि उनके लिए बँटा हुआ भारत अधूरा था। जन्म और प्रारंभिक जीवन पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। बचपन से ही वे तेजस्वी और संवेदनशील प्रवृत्ति के थे। शिक्षा के दौरान ही उनमें देशप्रेम की भावना प्रबल हो गई। अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध विचार प्रकट करने पर उन्हें म्योर कॉलेज से निकाल दिया गया। 1906 में उन्होंने सर तेज बहादुर सप्रू के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की, लेकिन उनका मन केवल वकालत तक सीमित नहीं रहा। वे समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए लालायित थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योग...

वीर दुर्गादास राठौड़: स्वाभिमान की अंतिम सांस तक

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वीर दुर्गादास राठौड़: स्वाभिमान की अंतिम सांस तक मारवाड़ की तपती रेत पर सूरज डूब रहा था। लालिमा से भरा आसमान मानो आने वाले संघर्ष का संकेत दे रहा था। दूर कहीं घोड़े की टापों की आवाज गूंज रही थी — यह आवाज थी उस योद्धा की, जिसका नाम आने वाली सदियों तक स्वाभिमान और निष्ठा के प्रतीक के रूप में लिया जाएगा — वीर दुर्गादास राठौड़ । जन्म और बचपन 13 अगस्त 1638। मारवाड़ के प्रतिष्ठित मंत्री आसकरण राठौड़ के घर एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसकी आंखों में बचपन से ही वीरता की चमक थी। बाल दुर्गादास तलवार के वार और घोड़े की लगाम, दोनों में समान दक्षता दिखाते थे। उनकी दृष्टि दूर तक देख सकती थी — केवल रणभूमि ही नहीं, राजनीति के गहरे षड्यंत्र भी। औरंगज़ेब का षड्यंत्र महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद दिल्ली का बादशाह औरंगज़ेब अपने साम्राज्य को और फैलाने के लिए लालायित था। उसने नन्हें उत्तराधिकारी अजीत सिंह और उनकी माता जादम को दिल्ली बुलाकर कैद कर लिया। मंसूबा साफ था — अजीत सिंह को इस्लाम कबूल करवाना और मारवाड़ को मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बना लेना । लेकिन दिल्ली की गलियों में ए...

"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण"

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"वोटों के आवारा शिकारी और लोकतंत्र का पवित्रीकरण" लो फिर, आज का अख़बार हाथ में लिया और मुझे लगा जैसे कोई व्यंग्य-देवता ने दो न्यूज़ एक ही दिन पर चिपका दी हों। पहली — कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का “धरना” कि भाई साहब, मतदाता सूचियों से फर्जी वोट मत हटाओ! दूसरी — सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि 8 हफ़्तों में NCR से सारे आवारा कुत्ते पकड़ो और डिटेंशन सेंटर में डालो। अब सोचिए, एक तरफ चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की सफाई करना चाहता है — मतलब जो फर्जी वोट, डुप्लिकेट वोट, बांग्लादेशी घुसपैठियों के नामों वाले वोट हैं, उन्हें काट देना। यह तो लोकतंत्र का स्वच्छता अभियान हुआ। लेकिन मज़ा देखिए, जिनके वोट बैंक में ऐसे फर्जी वोटों की मलाई है, वही धरने पर बैठ गए! जैसे मोहल्ले का वो दुकानदार, जो अपनी दुकान के सामने से नाला साफ होने पर चिल्लाए कि “अरे! इससे मेरा बिज़नेस डूब जाएगा!” और उधर कोर्ट कह रहा है — “दिल्ली में आवारा कुत्तों को पकड़ो, सबको डिटेंशन में रखो।” सुनने में तो अलग मामला है, पर गूढ़ार्थ एक ही है — जो बेकाबू, असली मालिक के बिना, कानून-कायदे से बाहर घूम रहे हैं, वो चाहे वोटर लिस...

11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..

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 11 अगस्त 1908 क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का बलिदान : गीता हाथमें लेकर 19 साल की उम्र में चढ़े फाँसी..  दुनियाँ में ऐसा कोई देश नहीं जो कभी न परतंत्रता के अंधकार में न डूबा हो । उनमें अधिकांश का स्वरूप ही बदल गया । उन देशों की अपनी संस्कृति का आज कोई अता पता नहीं है । लेकिन दासत्व के लंबे अंधकार के बाद भी भारत की संस्कृति पुष्पित और पल्लवित हो रही है । तो यह ऐसे लाखों बलिदानियों के कारण है, जिन्हें सत्ता की कोई चाहत नहीं थी । उनका संघर्ष राष्ट्र, संस्कृति, स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए था । ऐसा ही बलिदान क्राँतिकारी खुदीराम बोस का था । जो सोलह वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़कर क्राँतिकारी बने और उन्नीस वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही फाँसी पर चढ़ गये ।  अमर बलिदानी क्रान्ति कारी खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के ग्राम बहुबैनी में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था । शिक्षा, संस्कार और स्वाभिमान का भाव उनकी पारिवारिक विरासत में था । माता लक्ष्मीप्रिया देवी की दिनचर्या धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन  से ओतप्रोत थी तो पिता त्रैलोक्यनाथ बोस संस्कृत के विद्व...

अमेरिका के 50% टैरिफ और भारत की अर्थव्यवस्था: चुनौतियाँ, अवसर और आगे का रास्ता

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अमेरिका के 50% टैरिफ और भारत की अर्थव्यवस्था: चुनौतियाँ, अवसर और आगे का रास्ता हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत के कुछ प्रमुख निर्यात उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगाने की खबर ने व्यापार जगत और नीति-निर्माताओं के बीच हलचल मचा दी है। यह फैसला "One World Outlook Report" के संदर्भ में चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें अमेरिका और अन्य देशों के बीच आर्थिक तनाव की आशंका जताई गई थी। सवाल यह है कि यह निर्णय भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों के भविष्य को किस दिशा में ले जाएगा और भारत के पास इस चुनौती का सामना करने के लिए क्या विकल्प हैं? भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों की मौजूदा तस्वीर भारत और अमेरिका के बीच पिछले दो दशकों में व्यापारिक संबंध काफी मजबूत हुए हैं। 2024 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार $191 बिलियन तक पहुंच गया। भारत अमेरिका को मुख्य रूप से टेक्सटाइल, ज्वेलरी, फार्मा, आईटी सेवाएं और ऑर्गेनिक केमिकल्स निर्यात करता है। अमेरिका से भारत क्रूड ऑयल, रक्षा उपकरण, उच्च तकनीकी मशीनरी और कृषि उत्पाद आयात करता है। टैरिफ बढ़ने का सीधा असर इन निर्यात क्षेत्रों, ...