मातृभाषा दिवस: शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीय उन्नति का आधार
"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"
भारतेंदु हरिश्चंद्र
21 फरवरी को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस हमें अपनी भाषा, संस्कृति और शिक्षा प्रणाली पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है। मातृभाषा न केवल संवाद का माध्यम होती है, बल्कि यह हमारी सोच, मानसिक विकास और सृजनात्मकता को भी गहराई से प्रभावित करती है।
मातृभाषा में शिक्षा: वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विगत दशकों में कई शोधों से स्पष्ट हुआ है कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी अधिक बौद्धिक क्षमता और सृजनात्मकता प्रदर्शित करते हैं।
राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की डॉ. नंदिनी सिंह के अध्ययन के अनुसार, अंग्रेजी पढ़ने से मस्तिष्क का केवल एक हिस्सा सक्रिय होता है, जबकि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में अध्ययन करने से मस्तिष्क के दोनों भाग सक्रिय होते हैं।
भारतीय वैज्ञानिक सी.वी. श्रीनाथ शास्त्री के अनुसार, भारतीय भाषाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थी विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक प्रगति करते हैं।
जापान, चीन, रूस, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देकर तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में अग्रणी बने हैं।
महापुरुषों के विचार
महात्मा गांधी कहते थे, "बच्चों के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही आवश्यक है, जितना शारीरिक विकास के लिए माँ का दूध।"
पंडित मदन मोहन मालवीय अंग्रेजी में निपुण थे, लेकिन वे मानते थे कि राष्ट्र की प्रगति केवल अपनी भाषा में ही संभव है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संविधान सभा में संस्कृत और हिंदी के समर्थन में कहा था कि "संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की ज्ञान-विज्ञान की विरासत है।"
डॉ. भीमराव अंबेडकर भी संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने के पक्ष में थे।
मातृभाषा और आधुनिकता
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि अंग्रेजी के बिना आधुनिक शिक्षा और तकनीकी विकास संभव नहीं है। लेकिन इतिहास गवाह है कि विकसित देश अपनी मातृभाषा में अध्ययन करके ही उन्नति की ओर बढ़े हैं।
ब्रिटेन में 1362 तक फ्रेंच का दबदबा था, लेकिन अंग्रेजों ने अपनी भाषा को प्राथमिकता दी।
रूस, फिनलैंड, जापान जैसे देशों ने विदेशी भाषा की गुलामी छोड़कर अपनी भाषा को प्राथमिकता दी, जिससे वे आज विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में शामिल हैं।
भारत में भी यदि उच्च शिक्षा और अनुसंधान मातृभाषा में हो, तो विज्ञान और तकनीकी विकास आमजन तक अधिक प्रभावी रूप से पहुंचेगा।
हमारी जिम्मेदारी
यदि हमें अपनी भाषा, संस्कृति और राष्ट्र को समृद्ध बनाना है, तो हमें स्वयं पहल करनी होगी।
हस्ताक्षर अपनी भाषा में करें।
दुकानों, कार्यालयों, स्कूलों में नामपट्ट अपनी भाषा में लिखें।
बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा दिलाएं।
संवाद, पत्राचार और डिजिटल माध्यमों में अपनी भाषा का प्रयोग करें।
मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी पहचान और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक भी है। शिक्षा, अनुसंधान और सरकारी कार्यों में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देना ही सही मायनों में स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का मार्ग है। आइए, इस मातृभाषा दिवस पर अपनी भाषा के प्रति सम्मान और जागरूकता का संकल्प लें।
"जिस राष्ट्र की अपनी भाषा नहीं, वह राष्ट्र स्वयं कभी खड़ा नहीं हो सकता।"
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