प्रखर राष्ट्रभक्त, समाज सुधारक, पत्रकार, महाकवि : सुब्रमण्यम भारती



चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।
जोड़ नहीं धरती पर जिसका वह नगराज हमारा ही है ।
नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा । 
बहती है क्या कहीं और भी, ऐसी पावन कल कल धारा ।। 
सम्मानित जो सकल विश्व में महिमा जिनकी बहुत रही है। 
अमर ग्रंथ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है ।। 
गायेंगे यश हम सब इसका यह है स्वर्णिम देश हमारा । 
आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।

 देशभक्ति से ओतप्रोत तमिल भाषा में दे लिखित और हिंदी में अनुवादित की गई उपरोक्त पंक्तियां महाकवि सुब्रमण्यम भारती को हैं। यह कविता पूरी नहीं है अपितु उसका एक छोटा सा भाग है जो उनको देशभक्ति का एक छोटा सा नमूना भर है। उन्होंने 400 से अधिक रचनाएं लिखीं हैं जो हमारे साहित्य की अमर धरोहर बनकर हमारा उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन कर रहीं हैं।

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव एट्टायापुरम में 11 दिसम्बर, 1882 को जन्मे महाकवि सुब्रमण्यम भारती महान राष्ट्रभक्त विचारक, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, पत्रकार, समाज सुधारक, नारी शिक्षा के प्रखर पक्षधर, साहित्यकार, धर्म ग्रंथों की मीमांसा करने वाले, शिक्षाविद, उत्तर-दक्षिण संस्कृक्ति के सेतु और न जाने क्या क्या थे। वे प्रखर मेधावी, ओजस्वी वक्ता बुद्धिमान, निडर, परिश्रमी सब कुछ थे। जैसे ईश्वर ने समस्त गुण उनमें भर दिये हों। मात्र 11 वर्ष की आयु में उन्हें एक विशाल कवि सम्मेलन में अपनी कविता पढ़ने का सौभाग्य मिला था जिसमें उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें 'देवी सरस्वती' की उपाधि मिली थी। उनकी मेधा और राष्ट्र भक्ति को देखकर उनके क्षेत्र के जींदार ने उन्हें 'भारती' की उपाधि प्रदान की थी।

किशोरावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था और सन् 1897 में वे चेलमल के साथ विवाह बंधन में बंध गए थे। उन दिनों बनारस उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र बना हुआ था। इसलिए वे सन् 1898 में बनारस आ गये थे। उन्होंने बनारस में न केवल हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया अपितु अन्य भाषाओं के भी

सिद्ध हस्त बन गये । बनारस में वे 4 वर्ष रहे। ये चार वर्ष उनके लिए 'खोज के वर्ष' कहलाये। इन वर्षों में उन्होंने आध्यात्म, भारत के गौरवशाली इतिहास, महान संतों विचारकों, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कर्णधारों, राष्ट्रभक्तों और समाज के उत्थान के लिए अन्य लोगों के द्वारा किये गये प्रयासों का अध्ययन किया।

उस समय पूरे जगत में स्वामी विवेकानन्द और उनके राष्ट्रवाद की धूम मची हुई थी। सुब्रमण्यम भारती भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। वे बनारस में भगिनी निवेदिता से मिले और उनसे स्वामी विवेकानन्द के विचारों, दर्शन और कार्यों के बारे में गहन जानकारी प्राप्त की। भगिनी निवेदिता से मिलने के पश्चात उन्हें अहसास हो गया कि नारी को शिक्षा की

कितनी आवश्यकता है। वे नारी शिक्षा के

प्रखर पक्षधर बन गये।

सन् 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया था। इससे पूरे देश में आंदोलन फैल गया। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने 'स्वदेशी' और 'बहिष्कार' का प्रयोग इस आंदोलन में किया था। सुब्रमण्यम भारती लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के अनुगामी बन गये। वे उनसे व्यक्तिगत रूप से भी मिले थे। उनके अतिरिक्त वे एनोबीसेंट, महात्मा गांधी, महर्षि अरविन्द आदि से भी मिले।

जब देश में स्वतंत्रता का इतना बड़ा आंदोलन चल रहा हो तो एक देशभक्त उस आंदोलन से कैसे दूर रह सकता था? सुब्रमण्यम भारती ने देशभक्ति से ओतप्रोत कविताएं लिखकर समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपवाना शुरू कर दिया था। उन्होंने तमिल में 'इंडिया' साप्ताहिक और 'स्वदेश मित्रम' दैनिक पत्रिकाएं निकालनी शुरू कर दीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजों में 'बाला भरतम' जैसी पत्रिका भी निकाली। इन पत्रिकाओं के माध्यम से वे लोगों में देशप्रेम की भावना भरने लगे। उन्होंने देशभक्ति के गीतों का संकलन तमिल भाषा में 'स्वदेश गीतांगल' सन् 1908 में प्रकाशित किया जिससे उनके गीत जन जन के हृदय में गहरे पैठ गये।

उनकी हर सांस मां भारती की सेवा के लिए समर्पित थी - प्रधानमंत्री मोदी
पिछली 11 दिसम्बर को महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जयंती पर दिल्ली में उन्हें श्रद्धाजलि देते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा-
"सुब्रमण्यम भारती जैसा व्यक्तित्व सदियों में एक आध बार जन्म लेता है। उन्होंने न केवल राष्ट्र प्रेम की भावना जगाई बल्कि लोगों की सामूहिक चेतना को भी जागृत किया। सुब्रमण्यम भारती ने भारत के उत्कर्ष और गौरव का सपना देखा था। महाकवि भारती ऐसे विचारक थे जिनकी हर सांस मां भारती की सेवा के लिए समर्पित थी। सुब्रमण्यम भारती जी की गीता के प्रति गहरी आस्था थी। उन्होंने गीता का तमिल में अनुवाद किया। भारती जी ने 1906 में 'इण्डिया वीकली' शुरू कर पत्रकारिता में क्रांति ला दी थी। राजनीतिक कार्टून युक्त यह पहला तमिल समाचार पत्र था। भारती युवा एवं महिला सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे।"
"भारती जी का काशी में बिताया गया समय वहां की विरासत का हिस्सा बन गया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में महाकवि के योगदान को समर्पित एक पीठ की स्थापना की गई है।"
उल्लेखनीय है कि स्व. महाकवि सुब्रमण्यम भारती की संपूर्ण रचनाओं को 23 खण्डों में संग्रहित करने का कार्य भी सीनी विश्वनाथन द्वारा किया गया है जिसका विमोचन महाकवि के जन्म दिवस पर गत 11 दिसम्बर को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में किया।



 उन्होंने 1905 और 1907 में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया और देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अपनी ओजस्वी वाणी और लेखनी के दम पर वे अल्प समय में ही जननायक बन गये।


अंग्रेजों ने दमन चक्र आरम्भ किया और इंडिया पत्रिका के मालिक को गिरफ्तार कर लिया था। अब गिरफ्तारी का अगला शिकार सुब्रमण्यम भारती ही होने वाले थे। इसलिए वे छुप छुपाकर पांडिचेरी पहुंच गये। पांडिचेरी तब फ्रांसीसियों के कब्जे में थी। वे वहां आजाद पंछी की तरह घूमते रहे। इस अवधि में वे महर्षि अरविन्द से मिले और उनसे भारतीय शास्त्रों के बारे में जानकारी प्राप्त की। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के 'वंदेमातरम्' के वे भक्त बन गए और उन्होंने वंदेमातरम् का पद्यवार तमिल भाषा में अनुवाद किया। इस प्रकार उन्होंने वंदेमातरम् को पूरे तमिलनाडु में बच्चे-बच्चे को जुबान पे ला दिया।


सुब्रमण्यम भारती जब बनारस में रह रहे थे तब उन्होंने विद्यार्थियों को पढ़ाया था। इससे उन्हें महसूस हुआ कि बिना शिक्षा के जागरुकता और उनका विकास संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने बच्चों और लड़कियों को शिक्षा पर बहुत बल दिया था।


पांडिचेरी में वे लगभग 10 वर्ष तक रहे। जैसे ही वे पांडिचेरी से निकल कर अंग्रेजों द्वारा शासित भारत में आए, अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेल से छूटने के पश्चात् उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा संचालित 'असहयोग आंदोलन' में भाग लिया। सुब्रमण्यम भारती क्रांतिकारियों की जन्मभूमि बंगाल गये और वहां जाकर उन्होंने बम बनाने, पिस्तौल चलाने और गुरिल्ला युद्ध संचालित करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया।


सुब्रमण्यम भारती ने स्वदेश गीतांगल, जन्मभूमि, कुयिल् पाट्टु, कण्णन् पाटु, चुयचरितै, तेचिय कीतंकठ जैसी 22 पुस्तकों की रचना की।


महर्षि अरविन्द के संपर्क में आने से उन्हें वैदिक धार्मिक साहित्य में रुचि हुई और उन्होंने धार्मिक साहित्य का अध्ययन किया और टीकाएं भी लिखीं। मात्र 38 वर्ष की आयु में 11 सितम्बर, 1921 को सुब्रमण्यम भारती इस लोक से विदा हो गए लेकिन उनकी रचनाएं, उनके विचार और उनके कर्म हमें सदियों तक प्रेरित करते रहेंगे। प्रखर राष्ट्रभक्त महाकवि सुब्रमण्यम भारती को शत शत नमन !


 जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने क्क्तव्य में बताया
सुब्रमण्यम भारती ने तमिल में लिखा था...
एनरु तन्मुय इंधा सुदंधिरा थागम ? एनरु मदियुम एंगल आडिमायिन मोगस ?
जिसका अर्थ है स्वतंत्रता की यह प्यास कब बुझेगी? गुलामी से उबरने की हमारी लालसा कब पूरी होगी?
महाकवि भारती उत्तर-दक्षिण भारत की एकता के कितने बड़े समर्थक थे यह उनकी निम्नांकित पंक्तियों से प्रकट होता है-
काशी नगर, पुलवर पेसुम, उरई तान, कांचियाल, केतपदरकोर, करुवी चेविओम।
इसका अर्थ है कि ऐसा कोई उपकरण होना चाहिए जिसके माध्यम से कांची (तमिलनाडु) में बैठकर बनारस (उत्तर प्रदेश) के संत क्या कह रहे हैं यह सुना जा सके।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

16 दिसंबर 1971: भारत का विजय दिवस कैसे तेरह दिन में टूट गया पाकिस्तान

"बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: इतिहास की गलतियों से सबक लेने का समय"

सिंध और बंगाल के लिए स्वायत्त हिंदू अल्पसंख्यक परिक्षेत्र की आवश्यकता