प्रखर राष्ट्रभक्त, समाज सुधारक, पत्रकार, महाकवि : सुब्रमण्यम भारती
चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।जोड़ नहीं धरती पर जिसका वह नगराज हमारा ही है ।नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा ।बहती है क्या कहीं और भी, ऐसी पावन कल कल धारा ।।सम्मानित जो सकल विश्व में महिमा जिनकी बहुत रही है।अमर ग्रंथ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है ।।गायेंगे यश हम सब इसका यह है स्वर्णिम देश हमारा ।आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।
उनकी हर सांस मां भारती की सेवा के लिए समर्पित थी - प्रधानमंत्री मोदी
पिछली 11 दिसम्बर को महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जयंती पर दिल्ली में उन्हें श्रद्धाजलि देते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा-
"सुब्रमण्यम भारती जैसा व्यक्तित्व सदियों में एक आध बार जन्म लेता है। उन्होंने न केवल राष्ट्र प्रेम की भावना जगाई बल्कि लोगों की सामूहिक चेतना को भी जागृत किया। सुब्रमण्यम भारती ने भारत के उत्कर्ष और गौरव का सपना देखा था। महाकवि भारती ऐसे विचारक थे जिनकी हर सांस मां भारती की सेवा के लिए समर्पित थी। सुब्रमण्यम भारती जी की गीता के प्रति गहरी आस्था थी। उन्होंने गीता का तमिल में अनुवाद किया। भारती जी ने 1906 में 'इण्डिया वीकली' शुरू कर पत्रकारिता में क्रांति ला दी थी। राजनीतिक कार्टून युक्त यह पहला तमिल समाचार पत्र था। भारती युवा एवं महिला सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे।"
"भारती जी का काशी में बिताया गया समय वहां की विरासत का हिस्सा बन गया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में महाकवि के योगदान को समर्पित एक पीठ की स्थापना की गई है।"
उल्लेखनीय है कि स्व. महाकवि सुब्रमण्यम भारती की संपूर्ण रचनाओं को 23 खण्डों में संग्रहित करने का कार्य भी सीनी विश्वनाथन द्वारा किया गया है जिसका विमोचन महाकवि के जन्म दिवस पर गत 11 दिसम्बर को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में किया।
उन्होंने 1905 और 1907 में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया और देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अपनी ओजस्वी वाणी और लेखनी के दम पर वे अल्प समय में ही जननायक बन गये।
अंग्रेजों ने दमन चक्र आरम्भ किया और इंडिया पत्रिका के मालिक को गिरफ्तार कर लिया था। अब गिरफ्तारी का अगला शिकार सुब्रमण्यम भारती ही होने वाले थे। इसलिए वे छुप छुपाकर पांडिचेरी पहुंच गये। पांडिचेरी तब फ्रांसीसियों के कब्जे में थी। वे वहां आजाद पंछी की तरह घूमते रहे। इस अवधि में वे महर्षि अरविन्द से मिले और उनसे भारतीय शास्त्रों के बारे में जानकारी प्राप्त की। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के 'वंदेमातरम्' के वे भक्त बन गए और उन्होंने वंदेमातरम् का पद्यवार तमिल भाषा में अनुवाद किया। इस प्रकार उन्होंने वंदेमातरम् को पूरे तमिलनाडु में बच्चे-बच्चे को जुबान पे ला दिया।
सुब्रमण्यम भारती जब बनारस में रह रहे थे तब उन्होंने विद्यार्थियों को पढ़ाया था। इससे उन्हें महसूस हुआ कि बिना शिक्षा के जागरुकता और उनका विकास संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने बच्चों और लड़कियों को शिक्षा पर बहुत बल दिया था।
पांडिचेरी में वे लगभग 10 वर्ष तक रहे। जैसे ही वे पांडिचेरी से निकल कर अंग्रेजों द्वारा शासित भारत में आए, अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेल से छूटने के पश्चात् उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा संचालित 'असहयोग आंदोलन' में भाग लिया। सुब्रमण्यम भारती क्रांतिकारियों की जन्मभूमि बंगाल गये और वहां जाकर उन्होंने बम बनाने, पिस्तौल चलाने और गुरिल्ला युद्ध संचालित करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
सुब्रमण्यम भारती ने स्वदेश गीतांगल, जन्मभूमि, कुयिल् पाट्टु, कण्णन् पाटु, चुयचरितै, तेचिय कीतंकठ जैसी 22 पुस्तकों की रचना की।
महर्षि अरविन्द के संपर्क में आने से उन्हें वैदिक धार्मिक साहित्य में रुचि हुई और उन्होंने धार्मिक साहित्य का अध्ययन किया और टीकाएं भी लिखीं। मात्र 38 वर्ष की आयु में 11 सितम्बर, 1921 को सुब्रमण्यम भारती इस लोक से विदा हो गए लेकिन उनकी रचनाएं, उनके विचार और उनके कर्म हमें सदियों तक प्रेरित करते रहेंगे। प्रखर राष्ट्रभक्त महाकवि सुब्रमण्यम भारती को शत शत नमन !
जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने क्क्तव्य में बताया
सुब्रमण्यम भारती ने तमिल में लिखा था...
एनरु तन्मुय इंधा सुदंधिरा थागम ? एनरु मदियुम एंगल आडिमायिन मोगस ?
जिसका अर्थ है स्वतंत्रता की यह प्यास कब बुझेगी? गुलामी से उबरने की हमारी लालसा कब पूरी होगी?
महाकवि भारती उत्तर-दक्षिण भारत की एकता के कितने बड़े समर्थक थे यह उनकी निम्नांकित पंक्तियों से प्रकट होता है-
काशी नगर, पुलवर पेसुम, उरई तान, कांचियाल, केतपदरकोर, करुवी चेविओम।
इसका अर्थ है कि ऐसा कोई उपकरण होना चाहिए जिसके माध्यम से कांची (तमिलनाडु) में बैठकर बनारस (उत्तर प्रदेश) के संत क्या कह रहे हैं यह सुना जा सके।
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