समृद्धि से संघर्ष तक – छावा और इतिहास का सच
प्रश्न:
भारत जैसा सुखी, समृद्ध और हरा-भरा देश, जहाँ शांति, पवित्रता और समृद्धि थी, उसका विनाश कैसे हुआ? किसने इस धरती को जलाया?
उत्तर:
इस्लामी आक्रमण।
यह मात्र इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि विश्व इतिहास के सबसे क्रूर अत्याचारों की गाथा है, जिसे भुक्तभोगियों से छिपाकर रखा गया। भारतीय सेक्यूलर बिरादरी ने इसे दबाया, क्योंकि वे या तो डरते थे या किसी बड़ी साजिश का हिस्सा थे।
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने की साजिश
भारतीय फिल्मों में दशकों तक भारत के वास्तविक शत्रु को शत्रु की तरह दिखाने से परहेज किया गया।
- 1997 में जेपी दत्ता ने फ़िल्म बॉर्डर बनाई।
- इससे पहले किसी भी भारतीय फ़िल्म में पाकिस्तान को विलेन के रूप में नहीं दिखाया गया था।
- बॉर्डर और ग़दर ने इस वास्तविकता को सामने रखा और सुपरहिट रहीं।
"छावा" – इतिहास की आँखों में आँखें डालने का साहस
छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फ़िल्म "छावा" भी इसी परंपरा का हिस्सा है। पहली बार, इतिहास के उन दर्दनाक पन्नों को खोलने का प्रयास किया गया है, जिनसे लोग बचते रहे हैं।
यह भी पढ़ेंफिल्म का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
मराठा विरासत बनाम मुग़ल बर्बरता
- एक ओर भव्य और दिव्य मराठा संस्कृति, दूसरी ओर पश्चाताप और अपराधबोध से घिरा औरंगज़ेब।
- “जगदंब! जगदंब!” का आध्यात्मिक घोष बनाम पूरे खानदान की लाशों पर खड़ा शैतान।
युद्ध और विचारधारा का संघर्ष
- एक ओर स्वराज्य के लिए बलिदान देने वाले हिंदू योद्धा, दूसरी ओर काम, क्रोध और लालच से भरे भुख्खड़ मुग़ल सैनिक।
- हिंदू संस्कृति, जो आत्मरक्षा के लिए संघर्ष करती रही, बनाम मुग़ल मानसिकता, जो इंसान को मात्र पशु समझती थी।
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इतिहास को देखने का साहस कीजिए!
जो पीढ़ी अपना इतिहास भूल जाती है, वह बार-बार उसी गर्त में गिरने को अभिशप्त रहती है। हम भाग्यशाली हैं कि शांतिकाल में जी रहे हैं, लेकिन यह शांति कब तक?
आज भी चारों ओर औरंगज़ेब की मानसिकता से घिरे हुए हैं।
यदि कोई व्यक्ति अपने ही परिवार को इस बात से कोस रहा है कि "मेरे घर में ऐसा योद्धा क्यों नहीं हुआ?" तो सोचिए, वह आपके परिवार को कैसे बख्शेगा?
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