मातृभाषा: शिक्षा, रोजगार और सांस्कृतिक समृद्धि का आधार

"जिस भाषा को हम अपने हृदय की गहराइयों से नहीं अपनाते, उसमें सृजनात्मकता, मौलिकता और आत्माभिव्यक्ति संभव नहीं।"

21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने, भाषा की महत्ता को समझने और मातृभाषा के संरक्षण हेतु कार्य करने की प्रेरणा देता है। मातृभाषा केवल संचार का साधन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और बौद्धिक विकास का मूल आधार है।

मातृभाषा और रोजगार के अवसर
आज के वैश्वीकृत दौर में यह धारणा बनाई गई है कि केवल अंग्रेजी जानने वाले लोग ही बेहतर नौकरियों के योग्य होते हैं। लेकिन यह एक मिथक है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के एक अध्ययन के अनुसार, मातृभाषा में शिक्षित छात्र अधिक तर्कशील और विश्लेषणात्मक होते हैं।
यूरोपीय संघ के एक शोध के अनुसार, स्थानीय भाषा में कार्य करने वाली कंपनियों की उत्पादकता अधिक होती है।
फ्रांस, जर्मनी, चीन और जापान जैसे देशों में स्थानीय भाषा में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा देकर अर्थव्यवस्था को मजबूत किया गया है।
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अब भारतीय भाषाओं में सेवाएँ प्रदान कर रही हैं, जिससे भारतीय भाषाओं में रोजगार की संभावनाएँ बढ़ रही हैं।
मातृभाषा और विज्ञान-प्रौद्योगिकी
तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में देने के प्रयास कई देशों ने किए हैं, जिससे उनकी वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षमता बढ़ी है।

चीन और रूस ने वैज्ञानिक शोध को अपनी भाषाओं में आगे बढ़ाया और आज वे तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर हैं।
इसरो (ISRO) और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भारतीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की वकालत की थी।
भारत के राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी मातृभाषा में तकनीकी और उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया है।
मातृभाषा और न्याय प्रणाली
भारत में न्यायिक प्रक्रिया अधिकतर अंग्रेज़ी में होती है, जिससे आम नागरिकों के लिए न्याय प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की कार्यवाही अंग्रेज़ी में होती है, लेकिन विभिन्न राज्यों में स्थानीय भाषा में न्याय देने की माँग बढ़ रही है।
मद्रास हाईकोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में हिंदी और तमिल जैसी भाषाओं को मान्यता दी है।
ई-कोर्ट्स परियोजना में स्थानीय भाषाओं में डिजिटल रूप से न्यायिक सेवाएँ देने का प्रयास किया जा रहा है।
मातृभाषा और सांस्कृतिक गौरव
भाषा केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपराओं का दर्पण भी होती है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से होती है।
रवींद्रनाथ ठाकुर ने बांग्ला भाषा को समृद्ध बनाया और भारत को पहला नोबेल पुरस्कार दिलाया।
पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा और प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नया आयाम दिया।
हमारी जिम्मेदारी
शिक्षा में मातृभाषा को प्राथमिकता दें।
बैंकिंग, न्यायालय और सरकारी कार्यालयों में भारतीय भाषाओं का उपयोग बढ़ाएँ।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर मातृभाषा को बढ़ावा दें।
बच्चों को स्थानीय भाषाओं में किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
निष्कर्ष
मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक समृद्ध, आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र की पहचान है। यदि भारत को विश्वगुरु बनना है, तो हमें अपनी भाषाओं को महत्व देना होगा। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हमें यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि हम अपनी भाषाओं को संरक्षित और समृद्ध बनाएँगे।

"जो राष्ट्र अपनी भाषा को भूल जाता है, वह अपनी पहचान भी खो देता है।"

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