सनातन महापर्व: आस्था का महासंगम और वामपंथी नैराश्य

भारत में होने वाला महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति का जीवंत साक्ष्य है। यह पर्व डेढ़ महीने तक चलता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु अपनी आस्था की डुबकी लगाकर जीवन को धन्य मानते हैं। 13 जनवरी से 28 जनवरी तक इस महायज्ञ में कहीं भी कोई विघ्न न आने से, तथाकथित प्रगतिशील वामपंथी मीडिया और छद्म सेकुलर राजनीतिक दलों को निराशा हाथ लगी। उन्हें यह सहन नहीं हुआ कि भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से लोग यहाँ आकर ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना के साथ सनातन की भव्यता का अनुभव कर रहे थे।

हिंदुत्व जागरण और वामपंथियों की व्याकुलता
महाकुंभ में लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं के मन में अध्यात्मिकता का संचार हुआ। यह जाग्रत हिंदू चेतना उन लिबरल और वामपंथी शक्तियों के लिए असहनीय थी, जो वर्षों से सनातन पर प्रहार करने में लगी थीं। उन्हें उम्मीद थी कि यह आयोजन विघ्नग्रस्त होगा, प्रशासन असफल होगा, और वे अपनी एजेंडा-धारित पत्रकारिता के माध्यम से सनातन संस्कृति को बदनाम कर सकेंगे। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो वे मायूस होकर बैठे रहे।


भगदड़: वामपंथियों के लिए आशा की किरण, लेकिन निराशा में बदली खुशी
29 जनवरी को जब भगदड़ की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई और दर्जनों श्रद्धालुओं ने अपने प्राण गंवाए, तो वामपंथी पत्रकार और सेकुलर राजनीति करने वाले नेताओं की आंखों में वही चमक आ गई, जैसी एक गिद्ध को मृत शरीर देखकर आती है। उन्होंने तुरंत इसे सनातन विरोधी नैरेटिव गढ़ने का अवसर मान लिया। लेकिन उनकी यह खुशी क्षणिक साबित हुई क्योंकि इस दर्दनाक हादसे के बावजूद हिंदू जागरण अभियान बदस्तूर जारी रहा।

वामपंथी पत्रकारों और राजनीतिक दलों को उम्मीद थी कि साधु-संतों के अखाड़े और श्रद्धालु इस हादसे के कारण निराश होकर सनातन के इस महायज्ञ से विमुख हो जाएंगे। लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा। श्रद्धालुओं की आस्था और भी प्रगाढ़ हो गई। वे और अधिक श्रद्धा से संगम में स्नान करने पहुंचे। सभी अखाड़ों और संत समाज ने इस हादसे को नियति का खेल मानते हुए सनातन धर्म के अभियान को और मजबूत करने का संकल्प लिया। केवल कांग्रेसी झुकाव रखने वाले एकमात्र शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मामले को सनातन विरोधी मोड़ देने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें किसी का साथ नहीं मिला।

बसंत पंचमी स्नान: आस्था का अद्भुत महासागर
बसंत पंचमी के दिन तीसरे और अंतिम अमृत स्नान में जो जनसैलाब उमड़ा, वह अविश्वसनीय था। तीस से अधिक देशों से आए दो करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाकर धर्म और संस्कृति के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की। "हर हर महादेव" और "जय श्रीराम" के गगनभेदी उद्घोषों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज ने इसे सनातन धर्म की अपराजेयता का प्रमाण बताया और कहा कि "सनातन धर्म को फलता-फूलता देखकर हर कोई आनंद में मग्न है।" इस अवसर पर ज्योतिषाचार्य एच.के. शुक्ला ने भी कहा कि "बसंत स्नान की यह घड़ी दिव्यतम है। भारत आज सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त होकर सनातन की भव्यता के साथ निखर रहा है।"


महाकुंभ: एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है, समाज को एकता के सूत्र में बांधता है और पूरी दुनिया को सनातन की शाश्वत शक्ति का आभास कराता है। इसके बावजूद कुछ ताकतें इसे कमजोर करने की साजिश रचती हैं, लेकिन आस्था की ताकत के आगे उनकी योजनाएं बार-बार धराशायी हो जाती हैं।

इस महाकुंभ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सनातन धर्म को न कोई रोक सकता है, न कोई मिटा सकता है। यह अनादि है, अविनाशी है और सदा-सर्वदा प्रगतिशील रहेगा।

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