श्रद्धांजलि: राममंदिर आंदोलन के योद्धा स्वर्गीय कामेश्वर चौपाल
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श्रद्धांजलि: राममंदिर आंदोलन के योद्धा स्वर्गीय कामेश्वर चौपाल
भारत के सामाजिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक, श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन, एक ऐसा संघर्ष था जिसमें संपूर्ण हिंदू समाज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहभागी रहा। यह केवल एक मंदिर निर्माण का अभियान नहीं था, बल्कि यह सनातन संस्कृति के गौरव की पुनर्स्थापना और राष्ट्रीय एकता का उद्घोष था। इस महायज्ञ में असंख्य रामभक्तों ने योगदान दिया, जिनमें कुछ ने अपने प्राणों की आहुति दी तो कुछ आजीवन इस पावन कार्य में लगे रहे। ऐसे ही एक महान योद्धा थे श्रद्धेय कामेश्वर चौपाल, जिनका जीवन राममंदिर आंदोलन को समर्पित रहा।
राममंदिर आंदोलन: एक संगठित संघर्ष
1980 और 90 के दशक में राममंदिर आंदोलन पूरे देश में जन-जागरण का कारण बना। यह केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को पुनः स्थापित करने का संकल्प था। हिंदू समाज की संगठित शक्ति ने इसे अंतिम परिणति तक पहुंचाया, जबकि मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दल और हिंदू समाज को विभाजित करने वाली शक्तियाँ इसे रोकने का हरसंभव प्रयास करती रहीं। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1990 में कारसेवकों पर गोली चलाने का अमानवीय कृत्य इस बात का प्रमाण था कि सत्ता-लोलुप राजनेताओं के लिए वोटबैंक किसी भी श्रद्धा से अधिक महत्वपूर्ण था। इस क्रूर दमन में अनेकों रामभक्त बलिदान हुए, लेकिन राममंदिर की लौ बुझाई नहीं जा सकी।
कामेश्वर चौपाल: समरसता के प्रतीक
रामजन्मभूमि आंदोलन के शीर्ष नेता श्री अशोक जी सिंघल ने इस संघर्ष की व्यापकता को समझते हुए यह निर्णय लिया कि श्रीराम मंदिर का शिलान्यास समाज के सबसे वंचित वर्ग के व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए, जिससे हिंदू समाज में समरसता का संदेश जाए। इसके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति कामेश्वर चौपाल को चुना गया। 9 नवंबर 1989 को उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर पहली ईंट रखी, जो हिंदू समाज की एकता और समरसता का ऐतिहासिक प्रमाण बन गई।
उनका यह योगदान यहीं समाप्त नहीं हुआ। जब 2020 में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन हुआ, तो उन्हें 15 सदस्यीय ट्रस्ट में शामिल किया गया। यह उनकी निष्ठा और संघर्ष का ही परिणाम था कि एक साधारण परिवार से आने वाला व्यक्ति भारत की आत्मा श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण का अभिन्न हिस्सा बना। उन्होंने संपूर्ण जीवन राममंदिर और सनातन संस्कृति की रक्षा में समर्पित किया।
रामलला के दर्शन और अंतिम विदाई
स्वर्गीय कामेश्वर चौपाल का जीवन यह सिद्ध करता है कि समर्पण और ध्येयनिष्ठा से कोई भी व्यक्ति राष्ट्र व धर्म के लिए अद्वितीय योगदान दे सकता है। उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न 22 जनवरी 2024 को पूरा होते देखा, जब उन्होंने श्रीरामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया। उनके लिए इससे बड़ा कोई सौभाग्य नहीं था।
7 फरवरी 2025 को जब उन्होंने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया, तब वे केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि राममंदिर आंदोलन का एक जीवंत अध्याय बन चुके थे। उनका जीवन उन लाखों हिंदुओं के लिए प्रेरणा रहेगा, जो राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के लिए संघर्षरत हैं।
श्रद्धांजलि
कामेश्वर चौपाल जी का बलिदानी जीवन और संघर्ष हमें यह संदेश देता है कि कोई भी आंदोलन तभी सफल होता है जब उसमें संगठित शक्ति, निष्ठा और आत्मबलिदान की भावना हो। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब पूरा हिंदू समाज एकजुट होता है, तो कोई भी शक्ति उसे रोक नहीं सकती।
उनकी आत्मा प्रभु श्रीराम के श्रीचरणों में स्थान पाए, यही प्रार्थना है।
जय श्रीराम!
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