भारत के पुनरुत्थान की ओर बढ़ते कदम और विरोध की निरर्थकता
भारत वर्तमान में सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राजनीतिक परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण चरण से गुजर रहा है। पिछले एक दशक में जिन सांस्कृतिक और वैचारिक परिवर्तन की नींव रखी गई थी, वे अब स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे हैं। एक ओर, भारतीयता की पुनर्स्थापना और सनातन संस्कृति का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर, वामपंथी और मैकाले-पुत्रों द्वारा निर्मित भ्रामक कथाएं अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं।
भारतीयता बनाम मैकाले मानसिकता
भारत में लंबे समय तक पश्चिमी विचारधारा और वामपंथी प्रोपेगेंडा के तहत यह भ्रम फैलाया गया कि भारतीय संस्कृति, परंपराएं और धर्म केवल पिछड़ेपन का प्रतीक हैं। इस मानसिकता को बढ़ावा देने का काम ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली और बाद में तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दलों ने किया। इन शक्तियों ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को कमजोर करने के हरसंभव प्रयास किए, जिससे भारत की आत्मा पर गहरा आघात हुआ।
परंतु, अब भारत एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। हिंदुत्व का पुनर्जागरण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। महाकुंभ जैसे आयोजनों का वैश्विक महत्व बढ़ रहा है। सनातन संस्कृति की ओर जनता का आकर्षण बढ़ रहा है। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है और उसकी पहचान पुनः सशक्त हो रही है।
महाकुंभ और सनातन परंपराओं का अपमान
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक जागरण का प्रतीक है। करोड़ों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं, जिससे धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। यह न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। छोटे व्यापारियों, पुजारियों, कारीगरों, परिवहन उद्योग और अन्य कई क्षेत्रों को इससे आजीविका मिलती है।
इसके बावजूद, वामपंथी विचारधारा से प्रेरित नेता और दल, जो केवल अपने वोट बैंक की राजनीति में उलझे रहते हैं, महाकुंभ जैसे आयोजनों का मजाक उड़ाते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का यह कहना कि "गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर होगी, भरपेट खाना मिलेगा, युवाओं को रोजगार मिलेगा?"— उनकी संकुचित सोच और हिंदू विरोधी मानसिकता को उजागर करता है। वे भूल जाते हैं कि सनातन परंपराएं केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं।
हिंदुत्व और सुशासन का संबंध
इतिहास और वर्तमान परिदृश्य यह सिद्ध करते हैं कि जहां हिंदुत्व प्रबल होता है, वहां सुशासन, न्याय, सामाजिक शुचिता, विकास, मानवता और राष्ट्रभक्ति का वर्चस्व रहता है। इसके विपरीत, जहां वामपंथी और राष्ट्रविरोधी शक्तियां हावी होती हैं, वहां सामाजिक अस्थिरता, सांप्रदायिक तनाव और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां बढ़ जाती हैं।
इंडी गठबंधन के कई घटक दल नक्सलियों, जिहादी तत्वों और भारत विरोधी ताकतों को समर्थन देते आए हैं। इनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में तिरंगे का अपमान किया जाता है, राष्ट्रनायकों की निंदा की जाती है, और हिंदुओं के त्योहारों व परंपराओं का मखौल उड़ाया जाता है। ये तत्व केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए भारत को कमजोर करना चाहते हैं, परंतु अब जनता इनके असली चेहरे को पहचान चुकी है।
भारत के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत
आज, भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनः स्थापित कर रहा है। योग, आयुर्वेद, वेदांत दर्शन और सनातन परंपराएं वैश्विक स्तर पर सम्मान पा रही हैं। मंदिरों का आर्थिक योगदान भारत की जीडीपी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भंडारों, मंदिरों में मिलने वाली सेवाओं और धार्मिक पर्यटन से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है।
जिस प्रकार से भारत का पुनर्जागरण हो रहा है, उसे देखकर स्पष्ट है कि निकट भविष्य में वामपंथी और राष्ट्रविरोधी शक्तियां पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएंगी। देश के नागरिक अब हिंदुत्व और भारतीयता के महत्व को समझ चुके हैं और राष्ट्रविरोधी तत्वों के बहकावे में नहीं आने वाले।
भारत का भविष्य उज्ज्वल है, और यह पुनरुत्थान अब रुकने वाला नहीं है। जो लोग अब भी भारतीय संस्कृति, परंपराओं और हिंदुत्व का अपमान कर रहे हैं, वे इतिहास में एक हाशिए पर चले जाने वाले पराजित समूहों में शामिल होंगे। भारत अब आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। यह समय भारत की गौरवशाली परंपराओं को पुनः स्थापित करने और राष्ट्र को सशक्त बनाने का है।
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