ट्रंप आगमन और वैश्वीकरण का बदलता परिदृश्य
गत 5 फरवरी को अमेरिका से 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को सैन्य विमान से स्वदेश भेजा गया। हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े इन लोगों की 40 घंटे की यात्रा न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी अपमानजनक रही होगी। ये कोई गरीब लोग नहीं थे; उन्होंने अमेरिका जाने के लिए 50 लाख से 1 करोड़ रुपये तक खर्च किए थे। दुर्भाग्यवश, ये लालच और बेईमान ट्रैवल एजेंटों के जाल में फंस गए।
यह पहली बार नहीं हुआ है। पिछले वर्ष अक्टूबर में भी 100 भारतीयों को अमेरिका ने चार्टर्ड विमान से लौटाया था। अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 के बीच 1100 से अधिक अवैध प्रवासी भारतीय स्वदेश भेजे गए। अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे अधिक नाटकीय बनाते हुए महंगे सैन्य विमानों का उपयोग किया। यह न केवल भारत के लिए शर्मिंदगी का विषय है, बल्कि अमेरिका में वैध रूप से बसे 50 लाख भारतीय मूल के नागरिकों के लिए भी चिंता का कारण है।
अमेरिकी सपने का मोह
आखिर क्यों विकासशील देशों के लोग अमेरिका जाने के लिए इतने उत्सुक रहते हैं? अमेरिका, जिसे 1492 में कोलंबस ने भारत समझकर खोज लिया था, आज एक आर्थिक महाशक्ति है। यहां के औपनिवेशिक इतिहास, विशाल संसाधनों और आर्थिक नीतियों ने इसे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया।
अमेरिका की 34 करोड़ की जनसंख्या भारत का केवल एक चौथाई है, लेकिन इसका भूभाग तीन गुना बड़ा है। यह देश 95,000 किलोमीटर की तटीय रेखा, 256 अरब बैरल तेल भंडार, और वैश्विक जल संसाधनों के 45% हिस्से के साथ प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। इसके सीमावर्ती देश भी भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन, या यूरोप-रूस की तरह तनावग्रस्त नहीं हैं। यही स्थिरता और संसाधन दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करते हैं।
ट्रंप की नीतियां और वैश्वीकरण पर प्रभाव
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अमेरिका को "अमेरिकियों का देश" बनाने पर केंद्रित हैं। वे व्यापारिक प्रतिबंधों, शुल्क युद्धों और कड़े आव्रजन कानूनों के माध्यम से अमेरिका को वैश्वीकरण की जंजीरों से मुक्त करना चाहते हैं। 1 फरवरी को अमेरिका ने मेक्सिको और कनाडा से आयात पर 25% और चीन पर 10% अतिरिक्त शुल्क लगाया, जिसके जवाब में कनाडा-मैक्सिको ने भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया। ट्रंप ने ब्रिक्स (भारत सहित) को अमेरिकी डॉलर के विकल्प तलाशने पर चेतावनी भी दी है।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्मे वैश्वीकरण को ट्रंप की नीतियां गहरा आघात पहुँचा रही हैं। अमेरिका, जो कभी वैश्वीकरण का ध्वजवाहक था, अब उससे दूरी बना रहा है।
नया वैश्विक संतुलन और भारत की भूमिका
इतिहास गवाह है कि विचारधाराएँ और आर्थिक मॉडल स्थायी नहीं होते। वामपंथ अपनी निरंकुशता और मानवता-विरोधी नीतियों के कारण 74 वर्षों में दम तोड़ गया। पश्चिमी देशों ने 1951 में 'वन मॉडल, फिट्स ऑल' का सिद्धांत थोपने की कोशिश की, जिसमें पारंपरिक संस्कृतियों को विकास में बाधा बताया गया। लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी के बाद उन्होंने अपनी गलती महसूस की और 2015 में सांस्कृतिक विविधता को विकास का आधार माना।
आज भारत के लिए अवसर है कि वह पश्चिमी आर्थिक नीतियों के अंधानुकरण के बजाय अपनी संस्कृति और संसाधनों पर आधारित विकास मॉडल अपनाए। अमेरिका जाने का लालच पालने वाले हजारों लोग अब समझ रहे होंगे कि घर की सादा रोटी, विदेश में अपमानित होने से कहीं बेहतर है।
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